प्रश्न = रामायण काल में लोग बिन साबुन के कपड़े कैसे धो लेते थे? क्या कपड़े साफ भी हो पाते थे? Image
इस कहते हैं अज्ञान या फिर अज्ञानता कहिये. हम आज के भारतीयों की सबसे बड़ी समस्या यही है.

आपने यह चित्र तो बार बार देखा होगा लेकिन यह कभी नहीं सोचा कि इस चित्र के पीछे की सच्चाई क्या है.

जी हाँ, आप कहेंगे कि इसमें सोचना क्या है. हनुमान जी पहाड़ उठा कर ले जा रहे हैं.
मित्रो, इस चित्र की सच्चाई यह है कि उस समय भी वैद्य (चिकित्सक) महाशय यह बात जानते थे कि सुदूर उत्तर में उत्तराखंड में एक पर्वत पर एक ऎसी जड़ी बूटी पायी जाती है जो प्रभु राम के मूर्छित पड़े अनुज लक्षमण की प्राण रक्षा करने में उपयोगी है
सोचिये, उस समय चिकित्सा का स्तर इतना ऊँचा था और प्राकृतिक औषधि का ज्ञान इतना व्यापक था.

फिर आप यह भी सोच सकते हैं कि उस समय के लोग जो चिकित्सा और औषधि की इतनी अच्छी जानकारी रखते थे, वे अपना शरीर धोने के योग्य वस्तुओं का ज्ञान नही रखते होंगे. Image
ऊपर और नीचे दिये गये चित्र उत्तराखंड में उस स्थान के हैं जिसे संजीवनी बूटी वाला स्थान माना जाता है. यह स्थान जोशीमठ - विष्णुप्रयाग से धौली गँगा नदी के किनारे नीति दर्रा यानि नीति पास की तरफ जाने वाले मार्ग पर स्थित है. इसे द्रोणागिरी पर्वत या मणिकूट पर्वत भी कहते हैं. Image
इस इलाके को अब नन्दा देवी बायोस्फेयर रिजर्व में शामिल किया गया है दरअसल हम लोग भूल गये है कि भारत हजारों सालों से दुनिया में सभ्यता और संस्कृति में अग्रणी राष्ट्र रहा है.
आक्रांताओं ने हमारे प्राचीन ज्ञान के संग्रह को नष्ट करने के साथ साथ बहुत सी गलत बातें भी हमारे दिमाग में भर दी हैं.

क्या आपने कभी सोचा है कि मन्दिरों और अन्य धार्मिक स्थलों के अलावा ज्ञान के मन्दिरों को क्यों तोड़ा - जलाया गया?
चेहरा या बाल धोने के लिये तरह तरह के उबटन, रीठा - शिकाकाई आदि के बारे में हर एक भारतीय को जानकारी होती है. कपड़े धोने के लिये कुछ ख़ास तरह की मिट्टियों का उपयोग किया जाता था
मैंने एक बार पहाड़ में एक बुजुर्ग महिला को देखा था. उन्होंने एक पेड़ की कुछ टहनियाँ काटीं. उनकी छाल को खींच कर निकाल लिया, उस छाल को एक पत्थर पर रख कर एक छोटे से पत्थर से थोड़ा कूटा और लीजिये उनका साबुन तैयार हो गया. Image
तब पता चला कि अपने बालों को अच्छे से धोने के लिये पहाड़ की महिलायें यही तरीका अपनाती हैं.

वैसे यहाँ कोरा में ही मुझे ऐसे ही एक सवाल के उत्तर में कबीरदास जी के दोहे मिले हैं जिनमें साबुन शब्द है.
मूरख को समुझावते, ज्ञान गाँठि का जाय ।

कोयला होय न ऊजला, सौ मन साबुन लाय ॥

एक अन्य दोहा इस प्रकार हैं-

निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय।

बिन पानी साबुन बिना, निरमल करै सुभाय।।

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Jan 20
राम और माता शबरी " संवाद " के सुंदर भाव । Image
माता सबरी बोली- यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो राम तुम यहाँ कहाँ से आते ? " भगवान राम गंभीर हुए । कहा , " भ्रम में न पड़ो अम्मा ! राम क्या रावण का वध करने आया है ? छी ... अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से वाण चला कर भी कर सकता है ।
राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है अम्मा , ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था !
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Jan 20
उद्धवजी द्वारा भगवान् की लीलाओं का वर्णन

( उद्धवजी कह रहे हैं ) चराचर जगत् और प्रकृति के स्वामी भगवान् ने जब अपने शान्त - रूप महात्माओं को अपने ही घोररूप असुरों से सताये जाते देखा , Image
तब वे करुणाभाव से द्रवित हो गये और अजन्मा होने पर भी अपने अंश बलरामजी के साथ काष्ठ में अग्नि के समान प्रकट हुए ॥ अजन्मा होकर भी वसुदेवजी के यहाँ जन्म लेने की लीला करना , सबको अभय देने वाले होने पर भी मानो कंस के भय से व्रजमें जाकर छिप रहना और अनन्तपराक्रमी होने पर भी
कालयवन के सामने मथुरापुरी को छोड़कर भाग जाना- भगवान् की ये लीलाएँ याद आ आकर मुझे बेचैन कर डालती हैं ॥ उन्होंने जो देवकी - वसुदेवकी चरण - वन्दना करके कहा था- पिताजी माताजी ! कंसका बड़ा भय रहनेके कारण मुझसे आपकी कोई सेवा न बन सकी आप मेरे इस अपराधपर ध्यान न देकर मुझपर प्रसन्न हों ।
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Jan 19
हमारे विभिन्न ग्रंथो में भगवान शिव का अवलोकन करने के बाद जो रिजल्ट आता उसके अनुसार शिव अजन्मा,अनन्त,अविनाशी, निराकारी ,साकार,अखण्ड ऊर्जा ,आदि योगी,जन्म म्रत्यु से परे,जिसका कोई नियम नही,ब्रमांड नियंता,त्रिकालदर्शी, Image
पूरा ब्रमांड शिव से ही उत्तपन्न है ओर सब जड़,चेतन स्वर्ग ,नरक ,सब शिव से ही उत्तपन्न होते हुए है ओर अपनी यात्रा पूरी करके वापस शिव में ही विलीन होजाते है ! सत्य ही शिव ! शिव ही एक मात्र ऐसे भगवान है जो आधुनिक विज्ञान के सबसे नजदीक है
बिग बैंग थ्योरी,क्वांटम थ्योरी,का अध्ययन करने एवम पुराणों के अनुसार भगवान शिव के बारे में जैसे बताया गया है यदि उस पर गहराई से विचार करे तो समझ मे आएगा अरे इनमे तो बहुत समानताएं है यानी ये बिग बैंग ओर क्वांटम थ्योरी तो शास्त्रो में पहले से ही मौजूद है
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Jan 15
प्रश्न = पुराणों में जब विष्णु भगवान ने वराह का रूप लिया था। तब उन्होंने पृथ्वी को समुद्र की गहराई से बचाकर बाहर निकाला था तो आप हमें यह बताएं कि पृथ्वी आखिर समुद्र में कैसे डूबी क्योंकि समुद्र तो पृथ्वी में ही है तो पृथ्वी कौन से समुद्र में डूबी थी ??????
पहली बात ये है कि किसी भी पुराण में ये नहीं लिखा है कि हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में छिपाया था। दशावतार की कथा सबसे विस्तार में विष्णु पुराण में मिलती है। इसके अतिरिक्त 24000 श्लोकों वाले वाराह पुराण में भी इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।
दोनों ग्रंथों में साफ़-साफ लिखा है कि हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को "रसातल" में छिपा दिया।

पुराणों में 14 लोकों का वर्णन है। इसमें से जो सात लोक पृथ्वी से ऊपर की ओर हैं वे हैं - भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक और ब्रह्मलोक।q
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Jan 14
प्रश्न = मादा ऑक्टोपस को दुनिया की सबसे महानतम मां क्यों कहते हैं ?

बेहतरीन सवाल !

क्योकि मादा ऑक्टोपस जितनी कोई माँ अपने बच्चो के लिए नहीं कर सकती।

मादा ऑक्टोपस जब अंडे पोषित करने की शुरुआत करती है तब उसकी मृत्यु की घडी की भी शुरआत हो जाती है।
ऑक्टोपस माँ अपने जीवन में सिर्फ एकबार प्रेगनेंट हो सकती है।

मादा ऑक्टोपस 4-5 महीने तक गर्भवती रहती है फिर पानी का तापमान इत्यदि सही रहने पर अंडे देना शुरू करती है। एक एक करके अंडे अपने शरीर से बाहर निकालती है। यह क्रिया महीने तक चलता है और हजारों की संख्या में अंडे निकलते है।
माँ इन अंडो को एक साथ बटोरकर कई अंगूर के गुच्छे जैसी लड़ी जैसी तैयार करती है।

अब ऑक्टोपस मॉम के सामने अंडो को बचाने की चुनौती है।

वो समुद के अंदर, चट्टानों के निचे गुफा में, इन अंगूरी रुपी गुच्छों को सहेज कर रख देती है। ये गुच्छे चट्टानों से चिपके रहते है।
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Jan 14
प्रश्न = जब कर्ण ने अपने एक सवाल पर 🍁 श्रीकृष्ण से पूछा मेरा क्या दोष था तो उसपर श्रीकृष्ण का जवाब क्या था ?
कर्ण ने कृष्ण से पूछा - मेरा जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्याग दिया। क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ?

द्रोणाचार्य ने मुझे सिखाया नहीं क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था।
परशुराम जी ने मुझे सिखाया तो सही परंतु श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे उस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, मुझे उसका विस्मरण होगा, क्योंकि उन्हें ज्ञात हो गया की मैं क्षत्रिय हूं।

केवल संयोगवश एक गाय को मेरा बाण लगा और उसके स्वामी ने मुझे श्राप दिया जबकि मेरा कोई दोष नहीं था।
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