रवांडा एक अफ्रीकी महाद्वीप है जिसकी राजधानी किगली है।
रवांडा की कुल आबादी में बहुसंख्यक हूतू समुदाय का हिस्सा85प्रतिशत है लेकिन लंबे समय से तुत्सी अल्पसंख्यकों का देश पर दबदबा था।
साल 1959में बहुसंख्यक हूतू ने तुत्सी राजतंत्र को उखाड़ फेंका।इसके बाद हज़ारों
1
तुत्सी लोग अपनी जान बचाकर युगांडा समेत दूसरे पड़ोसी मुल्कोंमें पलायन करगए।
1994में6अप्रैल को किगली(रवांडा)में हवाई जहाज पर बोर्डिंगके दौरान रवांडाके राष्ट्रपति हेबिअरिमाना और बुरुन्डियान के राष्ट्रपति सिप्रेन की हत्या करदी गई।
इसमें सवार सभी लोग मारेगए।किसने यह जहाज़ गिरायाथा,2
इसका फ़ैसला अब तक नहीं हो पाया है।मगर इसके लिए बहुसंख्यक हूतू चरमपंथियोंको ही ज़िम्मेदार मानते हैं
जिसके बाद तुत्सी नरसंहार शुरू हुआ जिसे रवांडा नरसंहार कहा गया।करीब100दिनों तक चले इस नरसंहार में5लाख से लेकर दस लाख तुत्सी लोग मारे गए।तब ये संख्या पूरे देश रवांडाकी आबादीके करीब
3
20फीसदी के बराबर थी।
इस नरसंहार में हूतू जनजाति से जुड़े चरमपंथियोंने अल्पसंख्यक तुत्सी समुदायके लोगों और अपने राजनीतिक विरोधियोंको निशाना बनाया।
आपको पताहै कि रवांडाको इस स्थीतिमें लाने का ज़िम्मेदार रवांडाका रेडियो"रेडियो रवांडा" था।
रेडियो रवांडा’ रवांडा के बहुसंख्यक हुतू
4
समुदायकी भावनाओंको भड़कानेके लिए झूठा प्रोपोगेंडा चलाताथा।
रेडियो रवांडा हुतू समुदायसे कहताथा कि अल्पसंख्यक तुत्सी लोग राजतन्त्र कायम करने की कोशिश कर रहेहैं।
जैसे भारतमें हिन्दूवादी कहतेहैं कि मुसलमान इस्लामी राज्य लानेकी कोशिश कर रहेहैं।
रेडियो रवांडा यह प्रोपगंडा फैलाती थी 5
कि अल्पसंख्यक तुत्सी लोग हुतू लोगों को गुलाम बनाकर रखेंगे जैसे भारत मे डराया जाता है कि मुसलमान अपनी आबादी बढ़ाकर और लव जिहाद कर के हिन्दू समाज पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहे हैं।
इन रेडियों रवांडा के स्टेशनों ने हुतू और तुत्सी समुदाय के बीच किसी भी बातचीत या शांति समझौते का
6
खुलकर विरोध किया था।
शांति के प्रयासों के खिलाफ अभियान चलाया और हुतू मिलिशिया समूहों का समर्थन किया। जैसे भारत मे तथाकथित किसी हिन्दू सेना का समर्थन करती मीडिया नज़र आ जाती है।
रेडियो रवांडाके फैलाए प्रोपगंडाके कारण अल्पसंख्यक तुत्सीयोंके जनसंहार से पहलेही सैकड़ो तुत्सीयों की
7
लिंचग कर दिया गया था।
मीडिया ने लिंच करने वालोंको हीरो बना दिया था।तुत्सीयों को शैतान बताया गया। अल्पसंख्यक तुत्सी औरतोंको बहुसंख्यक हुतू मर्दों को प्रेम जाल में फंसाने वाली औरतोंके रूप में प्रचारित कियागया।
उसके बाद जो न्यायप्रिय बहुसंख्यक हुतू अल्पसंख्यक तुत्सीयोंके पक्षमें8
थे उनके ख़िलाफ़ भी इसी तरह का प्रोपोगेंडा चलाया गया। उनको गद्दार, देशद्रोही बोला गया।
कोशिश की गई कि कैसे भी इन सेक्यूलर हुतुओं की बातों का असर हुतू समाज पर न पड़े। अंत मे इस प्रोपोगेंडा का असर हुआ। हूतू समुदाय से जुड़े लोगों ने अपने तुत्सी समुदाय के पड़ोसियों और 9
रिश्तेदारों को मार डाला।
उन्होंने तुत्सीयों की औरतोंको सेक्स स्लेव बना दिया।तुत्सी महिलाओं को मारनेसे पहले उनके साथ सामुहिक बलात्कार किएगए।
रेडियो रवांडा ने देखतेही देखते पूरे हुतू समुदाय को हत्यारा-बलात्कारी बना दिया।रेडियों रवांडा से लगातार तुत्सी लोगोंको मारनेकी लिस्ट जारी
10
की जाती और फिर हुतू उन्हें मार देते।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने पहले इसे आंतरिक मामला बताया फिर नस्लीय संघर्ष बोला।जब मामला हाथ से निकल गया तब जा कर अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसे जनसंहार कहा।
ठिठुरता हुआ गणतंत्र
'मैं ओवरकोट में हाथ डाले परेड देखता हूं. प्रधानमंत्री किसी विदेशी मेहमान के साथ खुली गाड़ी में निकलती हैं.रेडियो टिप्पणीकार कहता है,‘घोर करतल-ध्वनि हो रही है’मैं देख रहा हूं, नहीं हो रही है.हम सब तो कोट में हाथ डाले बैठे हैं.बाहर निकालने का जी नहीं हो रहाहै.
1
हाथ अकड़ जाएंगे.लेकिन हम नहीं बजा रहे हैं, फिर भी तालियां बज रहीं हैं. मैदान में जमीन पर बैठे वे लोग बजा रहे हैं, जिनके पास हाथ गरमाने के लिए कोट नहीं है. लगता है, गणतंत्र ठिठुरते हुए हाथों की तालियों पर टिका है.गणतंत्र को उन्हीं हाथों की ताली मिलतीं हैं, जिनके मालिक के पास हाथ
2
छिपाने के लिए गर्म कपड़ा नहीं है. पर कुछ लोग कहते हैं, ‘गरीबी मिटनी चाहिए.’ तभी दूसरे कहते हैं, ‘ऐसा कहने वाले प्रजातंत्र के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं.गणतंत्र समारोह में हर राज्य की झांकी निकलती है. ये अपने राज्य का सही प्रतिनिधित्व नहीं करतीं. ‘सत्यमेव जयते’ हमारा मोटो है मगर
3
■ विज्ञान कहता हैं कि एक नवयुवक स्वस्थ पुरुष यदि सम्भोग करता हैं तो,उस समय जितने परिमाण में वीर्य निर्गत होताहै उसमें बीस से तीस करोड़ शुक्राणु रहते हैं..यदि इन्हें स्थान मिलता,तो लगभग इतने ही संख्या में बच्चे जन्म ले लेते!
वीर्य निकलते ही बीस तीस करोड़ शुक्राणु पागलोंकी तरह
1
गर्भाशयकी ओर दौड़ पड़ते है..भागते भागते लगभग तीन सौ से पाँचसौ शुक्राणु पहुँच पाते हैं उस स्थान तक।
बाकी सभी भागनेके कारण थक जाते है बीमार पड़ जाते है और मर जातेंहैं!!!
और यह जो जितने डिम्बाणु तक पहुंच पाया, उनमेसें केवल मात्र एक महाशक्तिशाली पराक्रमी वीर शुक्राणु ही डिम्बाणुको2
फर्टिलाइज करता है,यानी कि अपना आसन ग्रहण करता हैं!!
और यही परम वीर शक्तिशाली शुक्राणु ही आप हो, मैं हूँ ,हम सब हैं !!
कभी सोचा है इस महान घमासान के विषय में?इस महान युद्ध के विषय में?
👉 आप उस समय भाग रहे थे..तब जब आप की आँख नहीं थी, हाथ,पैर,सिर,टाँगे, दिमाग कुछ भी नही था..
3
टेन प्लस टू व्यवस्था जब लागू हुई, ग्यारहवी के बाद से, विषय विशेष को चुनना होता था। कुछ राज्यों मे तो नवी से ही विषय चयन हो जाता था। तब एक ट्रेण्ड चला करता था - सबसे होशियार विद्यार्थी गणित लेते, कम होशियार विज्ञान, और कम होशियार कामर्स 9/1
और गदहे आर्ट्स के सब्जेक्ट लेते।
यह वर्गीकरण सत्य नही है, कई अच्छे विद्यार्थी चयन करके भी कोई विषय लेते। लेकिन अधिकांश जिन्हे कैरियर गाइडेंस उपलब्ध नही था, इस आधार पर भेंड़चाल मे विषय चयन करते। कईयों के मां बाप भी लड़के के आर्ट्स लेने पर बड़े शर्मिदा होते और बच्चे को गणित
9/2
लेने का दबाव डालते।
थ्री इडियट मे आपने देखा ही है - "मेरा बेटा इंजीनियर बनेगा ..."
तब व्हाइट कालर जाब्स,गणित-विज्ञान वालों को उपलब्ध थे,दुकानदारी वाले परिवार के बच्चे कामर्स ले लेते। इस तरह भारतीय सोसायटी मे इतिहास, पालिटिकल साइंस,नागरिक शास्त्र, लोक प्रशासन, राजव्यवस्था,
9/3
सौभाग्य ना सब दिन सोता है!
देखें आगे क्या होता है!!
आशावादी लोग्स राष्ट्रकवि की इन पंक्तियों को बार बार दुहराते हैं, खासकर तब, जब भाग्य उनका साथ नहीं दे रहा होता है! ..तो वे इन्ही लाइनों के साथ खुद को तसल्ली दे लेते हैं! कुछ अंग्रेजी *
1
खोदने वालेHope for the bestयाGood luckभी कहते हुए सुनाई देजातेहैं!!
भूमिका बांधनेका लब्बोलुआब ये है कि हर कोई ये मानकर चलताहै कि एक न एक दिन भाग्य उसका साथ जरूर देगा!!विधाता इतना क्रूर नहींहो सकता!
लेकिन इसी देशमें एक प्रजाति ऐसी भीहै जिसके करम में सौभाग्यवती होनेका सुख लिखाही 2
नहीं विधाता ने!!
बदनसीब इंसान के बारे में कहा जाता है कि करम फूट गये हैं बिचारे के! इनके करम में मानों विधाता ने 300किलो RDXबांधकर विस्फोट करा दिया हो! ऐसा नसीब है इनका!
इस प्रजाति का नाम है -अंधभक्त!!
बिचारे जबसे पैदा लिए... सदमे ही सदमे खा रहे! एक सदमे से उबरे नहीं कि दूसरा
3