कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ रहे जनरल वीपी मलिक अपनी किताब "इंडियाज मिलिट्री कॉन्फ्लिक्टस एंड डिप्लोमेसी" में कहते हैं कि युद्ध के दौरान जब उन्होंने आर्म्स और एम्यूनशन की शॉर्टेज पर सरकार का ध्यान आकर्षित कराया था, तब उस समय के एक सीनियर
ब्यूरोक्रेट ने उनकी इस बात पर आलोचना की थी कि उन्होंने प्रेस में कहा था कि "हमारे पास जो कुछ भी है हम उसके साथ लड़ेंगे।"

जनरल मलिक कहते हैं कि जबकि उस समय शॉर्टेज का कारण बजटरी सपोर्ट में लगातार कमी और एक ऑलमोस्ट नॉन फंक्शनल प्रोक्योरमेंट सिस्टम था।
अब सोंचिये कि ऐसा क्यों था? राव, देवगौड़ा, गुजराल के बाद अटल जी की सरकार थी जो मात्र कुछ ही महीने पुरानी थी। तो यह लगातार कमी जो कि सालों की थी वो किस कारण थी और ऐसा बंद सा पड़ा प्रोक्योरमेंट सिस्टम था, वो किस कारण था?

जनरल मलिक बताते हैं कि रक्षा मंत्री के साथ होने वाली
मॉर्निंग मीटिंग्स में एक सीनियर ब्यूरोक्रेट ने उनसे कटाक्ष करते हुए कहा, "जनरल मलिक आप हर समय हथियारों का रोना रोते रहते हैं जबकि पिछले साल मैं जबलपुर आर्डिनेंस डिपो गया था और मैंने देखा कि वहाँ पर हजारों राइफल्स बहुत अच्छी स्थिति में रखी हुई हैं।"

जनरल मलिक कहते हैं कि वे
उसकी इस अज्ञानता पर शॉक हो गए और उन्होंने कहा कि आपको पता होना चाहिए कि हथियारों का अर्थ सिर्फ राइफल नही होता और हमने जिन हथियारों की जरूरत की लिस्ट बनाकर सरकार को दी है उनमें राइफल्स हैं ही नही।

अब सोंचिये जब इन सीनियर लेवेल पर बैठे उस समय के नौकरशाहों के हाल ऐसे थे तो
सरकारें किस तरह चलती होंगी।

और यह भी सोंचिये कि उनके हाल ऐसे क्यों थे?

जनरल मालिक एक और वाकया बताते हुए कहते हैं कि कारगिल युद्ध के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई घायल सैनिकों से मिलने गए थे। वहाँ उन्होंने एक सैनिक से पूछा कि वो उसके लिए क्या कर सकते हैं? उत्तर में उस
सैनिक ने कहा कि वो ठीक है और कुछ ही दिनों में वह अपनी यूनिट चला जायेगा और फिर से देश के लिए लड़ने को तैयार हो जाएगा। लेकिन उसने प्रधानमंत्री से प्रार्थना की कि वे सैनिकों को हल्के वेपन और दूसरे एक्विमेंट्स प्रोवाइड करवाएं ताकि जवान उन्हें लेकर आसानी से पहाड़ों पर चढ़ सकें और
अधिक निपुणता से लड़ सकें।

अब सोंचिये कि आजादी के पचास साल के बाद भी आखिर सैनिकों को हल्के हथियार और दूसरे साजोसामान क्यों नही मिल पा रहे थे?

सोंचिये और आज की स्थिति से तुलना कीजिये।

आपको पता चल जाएगा कि आपको किसे चुनना चाहिए।

यूपी में भी और केंद्र में भी।
केंद्र का रास्ता यूपी से ही होकर जाता है।

याद रखियेगा। कोई ढिलाई न हो,कोई वोट न छूटे।
साभार
राघव शुक्ला
@Sabhapa30724463 @badal_saraswat @Sunnyharsh44 @Trishul_Achuk @ShashibalaRai12 @chhotiradha @BablieVerma72 @arunbajpairajan @drpandeyanil @PNRai1 @NyLahBaLoch @eurasiawale

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Jan 25
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*
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Jan 23
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*शब्द*
शब्द *रचे* जाते हैं,
शब्द *गढ़े* जाते हैं,
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शब्द *तौले* जाते हैं,
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... इस प्रकार

शब्द *बनते* हैं,
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Jan 22
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Jan 22
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मीडिया तब पूरी तरह से कांग्रेस के इशारों पर काम करता था, ये न्यूज़ उनके एजेंडे को सूट नहीं करती थी अतः कवरेज भी नहीं मिली,

तब जाटों द्वारा एक महापंचायत का आवाह्न किया गया और उस आह्वान पर महापंचायत में सम्मिलित होने के बाद वहां से लौटते समय शांतिदूतों की भीड़ द्वारा घात लगाकर
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Jan 21
हर चीज पर प्रश्न उठाना लोकतंत्र है, चाहे शहीद जवानों की ज्योति क्यों ना हो! लोकतंत्र में प्रश्न को दबाया नहीं जा सकता!

इसलिए राष्ट्र पर जब भी प्रश्न उठेगा एक राष्ट्रभक्त अवश्य डिफेंस में आएगा। विश्व में शायद ही ऐसा कोई देश होगा जिसने अपने संप्रभुता की लड़ाई में शहादत दी हो और
उसके पास अपना वॉर मेमोरियल ना हो। प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन लड़ा तो मित्र राष्ट्र की तरफ से सहादत के लिए इंडिया गेट भारत में बना दिया।

लेकिन जब 1971 के युद्ध में हमारे 3,843 सैनिक शहीद हुए तो उसी इंडिया गेट में एड हॉक अरेंजमेंट किया गया और अमर जवान ज्योति जलाई गई। न कि अलग से
कोई छोटा सा स्मारक भी बनाया गया। कितने शर्म की बात है यह?

मोदी जी ने 2019 में स्मारक बनवाया। नाम है नेशनल वॉर मेमोरियल। 26,466 शहीद सैनिकों के सम्मान में। आज उस अमर जवान ज्योति को नेशनल वॉर मेमोरियल में ले जाया जाएगा, दोपहर के 3:30 में।

अब इसको लेकर भी प्रश्न उठाया जा रहा। एक
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