भोपाल के बाहरी इलाके बैरसिया में स्थित विश्व हिंदू परिषद की एक गौशाला में 4609 गायों की हत्या 5 साल में कर दी गईं।
ये हत्याएं शिवराज सरकार के बीते 5 साल में हुई हैं। इसे राज्य समर्थित गौ हत्या माना जाना चाहिए, क्योंकि ये सरकारी और सामाजिक अनुदान पर चल रही थीं।
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लेकिन चूंकि ये गौशाला विश्व हिंदू परिषद की है, इसलिए पालतू मीडिया चुप है।
विवेक पांडेय की RTI बताती है कि भोपाल की 28 गौशालाओं को सरकार से2015-2020 तक 5.42करोड़ का अनुदान मिला।
इसमें से 32% अनुदान बैरसिया की गौ शाला को मिला, यानी 1.78 करोड़।
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जिस गौशाला में हज़ारों गायों की
हत्या की गईं, उसे विहिप ट्रस्ट की ओर से अशोक जैन चलाता है। जैन विश्व हिंदू परिषद से जुड़े ट्रस्ट का अध्यक्ष है। अब आप इस नृशंस हत्याकांड का राज़ समझ सकते हैं।
जैन की पत्नी आशा 4 बार बीजेपी पार्षद रह चुकी हैं। अब वे शिवराज सरकार पर ही लापरवाही का आरोप लगा रही हैं।
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उनका दावा है कि सरकार ने गौशाला के 1800 से ज़्यादा गायों के लिए 11 महीने से पैसा नहीं दिया। उधर, राज्य पशुपालन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर मई में 40 लाख देने का दावा कर रहे हैं।
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अब आप विहिप की ऐसी गौशालाओं को गौ पालन केंद्र कहें या सरकारी संरक्षण में प्रायोजित गौ हत्या केंद्र- मर्ज़ी आपकी।
अब जबकि न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह साफ कर दिया है कि भारत ने ही इजरायल से 2017 में 2 बिलियन डॉलर के सौदे में पेगासस स्पाईवेयर भी खरीदा था, भक्तों को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
जासूसी भारत में एक सनातन परंपरा रही है। यह घर से शुरू होकर सड़क से दफ़्तर तक हर जगह व्याप्त है।
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खासकर, बहन-बेटियों की।
इसीलिए पेगासस पर हम कुछ मित्रों की सीरीज को ज़्यादातर ने हवा में उड़ा दिया था।
मेरा-आपका निजी कुछ भी नहीं। लेकिन अगर नरेंद्र मोदी सरकार अपने ही मंत्रियों, बाबुओं और विपक्षी नेताओं, पत्रकारों की जासूसी करवाये तो इसका मतलब है कि सरकार डरपोक है।
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डरता वही है, जो गलत होता है। असुरक्षित होता है। मोदी कह सकते हैं कि वे बचपन से ही असुरक्षित, शक्की थे और यह सिलसिला नागपुर में उनकी ट्रेनिंग से लेकर गुजरात की सत्ता प्राप्ति के बाद भी जारी रहा।
ये डोवाल, NSA, राष्ट्रीय सुरक्षा-ये सब बहाने हैं। अपनी बेशर्मी को छिपाने के।
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भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय की ओर से 26 जनवरी के इस निमंत्रण पत्र में नीचे छोटे अक्षरों में एक वाक्य लिखा है, आंवला का पौधा उगाने के लिए इस कार्ड को बोएं। Sow this card to grow an Amla Plant.
क्या..? ये कार्ड लगाएंगे तो आंवला का पेड़ उगेगा..??? हाँ यह सही है ...! भारत ने ऐसे
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अद्भुत काम किए हैं जिनकी कल्पना करना मुश्किल है,न कि केवल सामूहिक स्तर पर। (वाकई मोदी है तो मुमकिन हैं)
गणतंत्र दिवस परेडका निमंत्रण कार्ड सीड पेपर से बना होताहै।इस पेपर को प्लांटेबल भी कहा जाता है।यह वानस्पतिक और तकनीकी भाषा में बायोडिग्रेडेबल इको पेपर है।एक कागज जिसके तत्व
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प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के तत्वों में समा जाते हैं।वहाँ कुछ नहीं बचा है। पर्यावरण के संरक्षण के लिए इससे बेहतर और अनुकरणीय क्या हो सकता है!
गणतंत्र दिवस परेड के लिए यह निमंत्रण कार्ड नम मिट्टी की एक पतली परत में दफन है, ध्यान से थोड़े से पानी और धूप के बीच पानी पिलाया जाता है।
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ठिठुरता हुआ गणतंत्र
'मैं ओवरकोट में हाथ डाले परेड देखता हूं. प्रधानमंत्री किसी विदेशी मेहमान के साथ खुली गाड़ी में निकलती हैं.रेडियो टिप्पणीकार कहता है,‘घोर करतल-ध्वनि हो रही है’मैं देख रहा हूं, नहीं हो रही है.हम सब तो कोट में हाथ डाले बैठे हैं.बाहर निकालने का जी नहीं हो रहाहै.
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हाथ अकड़ जाएंगे.लेकिन हम नहीं बजा रहे हैं, फिर भी तालियां बज रहीं हैं. मैदान में जमीन पर बैठे वे लोग बजा रहे हैं, जिनके पास हाथ गरमाने के लिए कोट नहीं है. लगता है, गणतंत्र ठिठुरते हुए हाथों की तालियों पर टिका है.गणतंत्र को उन्हीं हाथों की ताली मिलतीं हैं, जिनके मालिक के पास हाथ
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छिपाने के लिए गर्म कपड़ा नहीं है. पर कुछ लोग कहते हैं, ‘गरीबी मिटनी चाहिए.’ तभी दूसरे कहते हैं, ‘ऐसा कहने वाले प्रजातंत्र के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं.गणतंत्र समारोह में हर राज्य की झांकी निकलती है. ये अपने राज्य का सही प्रतिनिधित्व नहीं करतीं. ‘सत्यमेव जयते’ हमारा मोटो है मगर
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रवांडा एक अफ्रीकी महाद्वीप है जिसकी राजधानी किगली है।
रवांडा की कुल आबादी में बहुसंख्यक हूतू समुदाय का हिस्सा85प्रतिशत है लेकिन लंबे समय से तुत्सी अल्पसंख्यकों का देश पर दबदबा था।
साल 1959में बहुसंख्यक हूतू ने तुत्सी राजतंत्र को उखाड़ फेंका।इसके बाद हज़ारों
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तुत्सी लोग अपनी जान बचाकर युगांडा समेत दूसरे पड़ोसी मुल्कोंमें पलायन करगए।
1994में6अप्रैल को किगली(रवांडा)में हवाई जहाज पर बोर्डिंगके दौरान रवांडाके राष्ट्रपति हेबिअरिमाना और बुरुन्डियान के राष्ट्रपति सिप्रेन की हत्या करदी गई।
इसमें सवार सभी लोग मारेगए।किसने यह जहाज़ गिरायाथा,2
इसका फ़ैसला अब तक नहीं हो पाया है।मगर इसके लिए बहुसंख्यक हूतू चरमपंथियोंको ही ज़िम्मेदार मानते हैं
जिसके बाद तुत्सी नरसंहार शुरू हुआ जिसे रवांडा नरसंहार कहा गया।करीब100दिनों तक चले इस नरसंहार में5लाख से लेकर दस लाख तुत्सी लोग मारे गए।तब ये संख्या पूरे देश रवांडाकी आबादीके करीब
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■ विज्ञान कहता हैं कि एक नवयुवक स्वस्थ पुरुष यदि सम्भोग करता हैं तो,उस समय जितने परिमाण में वीर्य निर्गत होताहै उसमें बीस से तीस करोड़ शुक्राणु रहते हैं..यदि इन्हें स्थान मिलता,तो लगभग इतने ही संख्या में बच्चे जन्म ले लेते!
वीर्य निकलते ही बीस तीस करोड़ शुक्राणु पागलोंकी तरह
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गर्भाशयकी ओर दौड़ पड़ते है..भागते भागते लगभग तीन सौ से पाँचसौ शुक्राणु पहुँच पाते हैं उस स्थान तक।
बाकी सभी भागनेके कारण थक जाते है बीमार पड़ जाते है और मर जातेंहैं!!!
और यह जो जितने डिम्बाणु तक पहुंच पाया, उनमेसें केवल मात्र एक महाशक्तिशाली पराक्रमी वीर शुक्राणु ही डिम्बाणुको2
फर्टिलाइज करता है,यानी कि अपना आसन ग्रहण करता हैं!!
और यही परम वीर शक्तिशाली शुक्राणु ही आप हो, मैं हूँ ,हम सब हैं !!
कभी सोचा है इस महान घमासान के विषय में?इस महान युद्ध के विषय में?
👉 आप उस समय भाग रहे थे..तब जब आप की आँख नहीं थी, हाथ,पैर,सिर,टाँगे, दिमाग कुछ भी नही था..
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