'द कश्मीर फाइल्स' के बहाने-
कश्मीर के हिन्दू नरसंहार की 20 नृशंस कहानियाँ
विवेक अग्निहोत्री के फिल्म निर्देशन से परे, (मैंने फिल्म नहीं देखी है, तो अभी समीक्षा नहीं करूँगी)
ये कुछ कहानियाँ है जिनके बारे मे मैंने 2020 की जनवरी में लिखा था। अगर आप फिल्म देखने जा रहे है तो ये
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कहानियाँ पढ़ कर जाइए।
मै अगर फिल्म देखूँगी तो उसकी समीक्षा भी फिल्म के आधार पर ही करूँगी
परंतु कुछ कहानियाँ कही जानी चाहिए। चर्चा आवश्यक है।
25 जून 1990 गिरिजा टिकू नामक कश्मीरी पंडित की हत्या के बारे मे आप जानेंगे तो सिहर जाएँगे। सरकारी स्कूल मे लैब असिस्टेंट का काम करती थी
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आतंकियो के डर से वो कश्मीर छोड़ कर जम्मू मे रहने लगी। एक दिन किसी ने उसे बताया कि स्थिति शांत हो गई है, वो बांदीपुरा आ कर अपनी तनख्वाह ले जाए। वो अपने किसी मुस्लिम सहकर्मी के घर रुकी थी।
आतंकी आए, उसे घसीट कर ले गए। वहाँ के स्थानीय मुसलिम चुप रहे क्योंकि किसी काफ़िर की तकलीफ
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से उन्हे क्या लेना-देना?
गिरिजा का सामूहिक बलात्कार किया गया, बढ़ई की आरी से उसे दो भागो मे चीर दिया गया, वो भी तब जब वो जिंदा थी।
ये खबर कभी अखबारो मे नहीं दिखी।
4 नवंबर 1989 को जस्टिस नीलकंठ गंजू को दिनदहाड़े हायकोर्ट के सामने मार दिया गया। उन्होंने मुसलमान आतंकी मकबूल भट्ट
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को इंस्पेक्टर अमरचंद की हत्या के मामले में फाँसी की सजा सुनाई थी। 1984 में जस्टिज नीलकंठ के घर पर बम से भी हमला किया गया था। उनकी हत्या कश्मीरी हिन्दुओं की हत्या की शुरुआत थी।
7 मई 1990 को प्रोफेसर के एल गंजू और उनकी पत्नी को मुसलमान आंतंकियों ने मार डाला। पत्नी के साथ सामूहिक
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बलात्कार भी किया।
22 मार्च 1990 को अनंतनाग जिले के दुकानदार PN कौल की चमड़ी जीवित अवस्था मे शरीर से उतार दी गई और मरने को छोड़ दिया गया।
तीन दिन बाद उनकी लाश मिली
उसी दिन श्रीनगर के छोटा बाजार इलाके मे BK गंजू के साथ जो हुआ वो बताता है कि सिर्फ मुसलमान आतंकी ही इस लम्बे चले
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धार्मिक नरसंहार की चाहत नही रखते थे, बल्कि स्थानीय मुसलमानो का पूरा सहयोग उन्हे मिलता रहा।
कर्फ्यू हटा था तो BK गंजू, टेलिकॉम इंजीनियर, अपने घर लौट रहे थे।
उन्हे इस बात का अंदाजा नही था कि उनका पीछा किया जा रहा है, हालाँकि घर के पास आने पर उनकी पत्नी ने यह देख लिया। उनके घर
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में घुसते ही पत्नी ने दरवाजा बंद कर दिया। दोनों ही घर के 3 फ्लोर पर चावल के बड़े डब्बो मे छुप गए।
आतंकियो ने छान मारा, वो नही मिले।
जब वो लौटने लगे तो मुसलिम पड़ोसियो ने उन आतंकियो को वापस बुलाया और बताया कि वो कहाँ छुपे थे।
आतंकियो ने उन्हें बाहर निकाला, गोलियाँ मारी, और जब
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खून चावल में बह कर मिलने लगा, तो जाते हुए मुसलमान आतंकियो ने कहा- "इस चावल में खून को मिल जाने दो
और अपने बच्चों को खाने देना। कितना स्वादिष्ट भोजन होगा वो उनके लिए।"

-12 फरवरी 1990 को तेज कृष्ण राजदान को उनके एक पुराने सहकर्मी ने पंजाब से छुट्टियों मे उनके श्रीनगर आने पर
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भेंट की इच्छा जताई।
दोनो लाल चौक की एक मिनि बस पर बैठे। रास्ते मे मुसलिम मित्र ने जेब से पिस्तौल निकाली और छाती मे गोली मारी। इतने पर भी वो नहीं रुका, उसने राजदान जी को घसीट कर बाहर किया और लोगो से बोला कि उन्हें लातो से मारे।
फिर उनके पार्थिव शरीर को पूरी गली मे घसीटा गया
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और नजदीकी मस्जिद के सामने रख दिया गया ताकि लोग देखे कि हिन्दुओ का क्या हश्र होगा।
24 फरवरी 1990 को अशोक कुमार काज़ी के घुटनो मे गोली मारी गई
बाल उखाड़े
थूका गया फिर
पेशाब किया गया उनके ऊपर।
किसी भी मुसलमान दुकानदार ने, जो उन्हे अच्छे से जानते थे, उनके लिए एक शब्द तक नही कहा
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जब पुलिस का सायरन गूंजा तो भागते हुए उन्होंने बर्फीली सड़क पर उनकी पीड़ा का अंत कर दिया।
5 दिन बाद नवीन सप्रू को भी इसी तरह बिना किसी मुख्य अंग मे गोली मारे, तड़पते हुए छोड़ा गया, मुसलिमो ने उनके शरीर के जलने तक जश्न मनाया, नाचते और गाते रहे।
30 अप्रैल 1990 को कश्मीरी कवि और
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स्कॉलर सर्वानंद कौल प्रेमी और उनके पुत्र वीरेंदर कौल की हत्या बहुत भयावह तरीके से की गई।
उन्होंने सोचा था कि 'सेकुलर' कश्मीरी उन्हे नही भगाएँगे, इसलिए परिवार वालो को लाख समझाने पर भी वो कश्मीरी सेकुलर भाइयो के नाम पर रुके रहे।
एक दिन 3 सेकुलर आतंकी आए, परिवार को एक जगह बैठाया
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और कहा कि सारे गहने-जेवर एक खाली सूटकेस मे रख दे
उन्होंने प्रेमी जी को कहा कि वो सूटकेस ले ले और उनके साथ आएँ।
घरवाले जब रोने लगे तो उन्होंने कहा, अरे! हम प्रेमी जी को कोई नुकसान नही पहुँचाएँगे। हम उन्हें वापस भेज देंगे।
27 साल के बेटे वीरेन्द्र ने कहा कि पिता को अँधेरे मे
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वापसी मे समस्या होगी, तो वो साथ जाना चाहता है
"आ जाओ, अगर तुम्हारी भी यही इच्छा है तो!"
दो दिन बाद दोनो की लाशे मिली।
तिलक करने की जगह को छील कर चमड़ी हटा दी गई थी।
पूरे शरीर पर सिगरेट से जलाने के निशान थे, हड्डियाँ तोड़ दी गईं थी
पिता-पुत्र की आँखें निकाल ली गई थी। फिर दोनो
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को रस्सी से लटकाया गया था, और उनकी मृत्यु सुनिश्चित हो, इसके लिए गोली भी मारी गई थी।
मुजू और दो अन्य लोगो को आतंकियो ने किडनैप किया और कहा कि कुछ लोगो को खून की जरूरत है, तो उन्हे चलना होगा।
आतंकियो ने उनके शरीर का सारा खून बहा दिया और उनकी मृत्यु हो गई।
9 जुलाई 1990 को
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हृदयनाथ और राधाकृष्ण के सर कटे हुए मिले
26 जून 1990 को BL रैना जब अपने परिवार को जम्मू लाने के लिए कश्मीर जा रहे थे, तो आतंकियो ने घेर कर मार दिया। 3 जून को, आतंकियो ने उनके पिता दामोदर सरूप रैना की हत्या घर मे घुस कर की थी। उन्होंने पड़ोसियो से मदद माँगी, मुसलिम थे, नही आए
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अशोक सूरी के भाई को गलती से आतंकियो ने उठा लिया। उसे खूब पीटा, टॉर्चर किया और पूरे शरीर को सिगरेट से जलाने के बाद, अधमरे हो जाने पर, बताया कि वो तो उसके भाई के मारना चाहते थे। उसे छोड़ दिया गया।
वो किसी तरह घर पहुँच कर भाई को भाग जाने की सलाह देने लगे।
भाई ने सलाह नहीं मानी।
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आधी रात को वो आतंकी घर मे आए, लम्बे चाकू से गर्दन काटी और मरने छोड़ कर चले गए।
सोपोर के चुन्नीलाल शल्ला इंस्पेक्टर थे। कुपवाड़ा मे पोस्टिंग होने पर उन्होंने दाढ़ी बढ़ा रखी थी कि उन्हे आतंकी पहचान न सके। एक दिन आतंकी खोजते हुए आए और उन्हे पहचान नहीं पाए,
और वापस जाने लगे।
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उनके साथ ही एक मुसलमान सिपाही भी काम करता था। उसने आतंकियो को वापस बुलाया और बताया कि दाढ़ी वाला ही शल्ला है।
आतंकी कुछ करते उस से पहले उनके मुसलमान सहकर्मी ने छुरा निकाला और पूरा दाहिना गाल चमड़ी सहित छील दिया। चुन्नी लाल अवाक् रह गए।
तब मुसलमान सिपाही ने कहा, "अबे सूअर!
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तेरे दूसरे गाल पर भी जमात-ए-इस्लामी वाली दाढ़ी नही रखने दूँगा"
फिर छुरे से दूसरी तरफ भी काट दिया गया।
उसके बाद आतंकियो के साथ मिल कर चुन्नीलाल के चेहरे पर हॉकी स्टिक से ताबड़तोड़ प्रहार किया गया और फिर आतंकियों ने कहा-
"दोगले, तेरे ऊपर गोली बर्बाद नही करेंगे हम।"
रक्त बहते
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रहने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

28 अप्रैल 1990 को भूषण लाल रैना के साथ जो हुआ वो आतंकियो की क्रूरता सटीक तरीके से बयान करता है।
अगले दिन अपनी माँ के साथ घाटी छोड़ने की योजना थी, सामान बाँध रहे थे। आतंकियो की एक टोली आई और रैना के सर में नुकीला छड़ घोंप कर हमला किया। उसके
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बाद उन्हें खींच कर बाहर निकाला गया, कपड़े उतार कर एक पेड़ पर कीले ठोंक कर लटकाने के बाद वो उन्हे तड़पाते रहे। भूषण बार-बार कहते रहे कि वो उन्हें गोली मार दे, आतंकियो ने इंतजार किया, गोली नही मारी।

25 जनवरी 1998 की रात को वन्धामा गाँव के 23 कश्मीरी हिन्दुओ की हत्या
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पूर्वनिर्धारित तरीके से की गई।
एक बच्चा जो बच गया, उसने बताया कि आतंकी आर्मी की वर्दी में आए, चाय पिया, और अपने वायरलेस सेट पर संदेश का इंतजार करने लगे।
जब खबर आ गई कि सारे कश्मीरी पंडितो के परिवार को एक साथ फँसा लिया गया है, तब एक साथ AK 47 से उनकी नृशंस हत्या कर दी गई।
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उसके बाद हिन्दुओ के मंदिर तोड़ दिए गए और घरों मे आग लगा दी गई।
अगर सिक्खो की बात करे तो कई सिक्खो को उनके परिवार के साथ 1990 से 1992 के बीच इसी क्रूरता से मारा गया।
इनमे कई J&K पुलिस के सिपाही या अफसर भी शामिल थे

क्रमशः......

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Mar 13
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