#काश्मीर_फाईल्स
यहूदियों के #चार_दर्दनाक_निर्वासन_हुए!! भारत के अतिरिक्त पूरे विश्व मे वे जहां भी गये, उन पर लोमहर्षक अत्याचार हुए। पशुओ से भी बदतर व्यवहार किया गया।
क्या क्या नही सहा!!
अपने उन 2500 वर्षों के दुर्दिनो के कटु अनुभवो को उन्होंने भुलाया नही। महाकाव्यो मे जगह दी
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गीत बनाये।
हृदय मे संजोकर रखा।
सुबह शाम मंत्र की तरह पाठ किया और कठोर परिश्रम करते हुए बीच मे जब भी सुस्ताने को बैठे, उस दर्द भरे गीत के साथ चार आँसू बहाकर चिंगारी जलती रखी
यदि भारत मे हिंदुओ पर हुए अत्याचारो का ऐसा ही लेखा जोखा रखा जाता तो समुद्रो जितनी स्याही कम पड़ जाती
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पूरी #पृथ्वी_जितना_कागज भी छोटा पड़ जाता। विश्व के सभी वृक्षो की टहनियो से बनी लेखनी भी थक जाती।
हिंदुओ पर अंतिम तीन आघात-
मुस्लिम आक्रमण
अंग्रेजो के अत्याचार और
स्वराज के पश्चात सेक्युलर शासको की उपेक्षा
ने उनको इस अवस्था मे लाकर पटक दिया है कि वे संवेदना शून्य हो गए हैं।
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बिल्कुल निश्चेतक की चपेट मे
वे अपने उन कड़वे दिनो को बिल्कुल भी याद नही करना चाहते।
वे इतने निराश, हताश और उपेक्षित है कि उस दिशा मे सोचना ही नही चाहते।
जब कोई हिन्दुओ के पुनर्जागरण या अभ्युत्थान की बात करता है तो उसे लगता है यह कोई एलियन आ गया है।
क्योंकि कला, साहित्य,
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मीडिया और प्रिंटिंग प्रेस ने विगत सात दशक तक ऐसा खतरनाक ब्लैक आउट कर रखा है कि हिंदुओ के लिए यह कल्पना से भी परे की बात है कि कोई उनकी अंतरात्मा को भी अभिव्यक्ति दे सकता है!
और आज, जबकि 1990 के कश्मीर जैसे कई टापू उग आए है, बहिन बेटी को इधर उधर भेजने मे संकोच है, लम्बी हरी
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मीनारे उग आई है
चहुँ ओर अनजानी भाषा के धमकी भरे आलाप गूंज रहे है
वह अपने 10x10 के कमरे मे और अधिक चुप्पी से दुबक कर सिमट जाना चाहता है।
लेकिन, ठहरिये!
यह तो कोई समाधान नही हुआ।
तुम्हारा वह छोटा दड़बा कभी भी भूमिसात किया जा सकता है।
मात्र 32 वर्ष पहले ही ऐसे प्रयोग हुए थे
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जिनका घाव अभी भी नासूर है।
आंखें बंद मत कीजिये।
देखिये। #kashmir_files नग्न सच्चाई है।
सिक्खो ने 1947 की रक्त रंजित ट्रेने भुला दी, और परिणाम सामने है।
देखिये और विचार कीजिए कि बिल्कुल यही स्थिति मेवात, आजमगढ़, नोएडा, मेरठ, रामपुर, बंगाल, शामली.
बहुत लंबी सूची है।
कशमीर फाईल
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उसी श्रद्धा से देखनी चाहिए जैसे यहूदियो ने अपने पुराने गीतो को संजोकर नई पीढ़ी को सुनाया।
एक प्रयोग कीजिए- अपने दस मित्रो को कहिए कि वे आपके साथ यह फ़िल्म देखने चलें।
कुछ बहाने बनाएंगे, और कुछ तुरंत साथ चलेंगे।
बस यही तुम्हारा सुरक्षा मीटर है।
इसी से पता चलेगा कि उन टापुओ के
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फूटते लावे में, संकट के समय कौन बहाने बनाएगा और कौन साथ देगा। #Jaihind #KashmirFiles
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ऐसे ही 1989 से 1992 के बीच 6 बार ईसाई मिशनरी स्कूलो पर आतंकियो ने बम धमाके किए।
ये कहानियाँ आज क्यों!
इन कहानियो को अभी कहने का मतलब क्या है?
इन कहानियो को अभी कहने का मतलब मात्र यह है कि इसमें से 99% कहानियो के पात्रो का नाम आपको याद भी नही होगा। इसलिए, इन्हे इनके शीशे की
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तरह साफ दृष्टिकोण मे मै आपको बताना चाहती हूँ कि
शाब्दिक भयावहता जब इतनी क्रूर है तो उनकी सोचिए जिनके साथ ऐसा हुआ होगा?
ये किसी फिल्म के दृश्य नही है जहाँ नाटकीयता के लिए आरी से किसी को काटा जाता है
किसी की खोपड़ी मे लोहे का रॉड ठोक दिया जाता है
किसी की आँखें निकाल ली जाती है
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किसी के दोनो गाल चाकू से चमड़ी सहित छील दिए जाते है
किसी के तिलक लगाने वाले ललाट को चाकू से उखाड़ दिया जाता है
ये सब हुआ है
और लम्बे समय तक हुआ है
इसमे वहाँ के वो मुसलमान भी शामिल थे, जो आतंकी नहीं थे
बल्कि किसी के सहकर्मी थे, किसी के पड़ोसी थे, किसी के जानकार थे।
'द कश्मीर फाइल्स' के बहाने-
कश्मीर के हिन्दू नरसंहार की 20 नृशंस कहानियाँ
विवेक अग्निहोत्री के फिल्म निर्देशन से परे, (मैंने फिल्म नहीं देखी है, तो अभी समीक्षा नहीं करूँगी)
ये कुछ कहानियाँ है जिनके बारे मे मैंने 2020 की जनवरी में लिखा था। अगर आप फिल्म देखने जा रहे है तो ये
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कहानियाँ पढ़ कर जाइए।
मै अगर फिल्म देखूँगी तो उसकी समीक्षा भी फिल्म के आधार पर ही करूँगी
परंतु कुछ कहानियाँ कही जानी चाहिए। चर्चा आवश्यक है।
25 जून 1990 गिरिजा टिकू नामक कश्मीरी पंडित की हत्या के बारे मे आप जानेंगे तो सिहर जाएँगे। सरकारी स्कूल मे लैब असिस्टेंट का काम करती थी
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आतंकियो के डर से वो कश्मीर छोड़ कर जम्मू मे रहने लगी। एक दिन किसी ने उसे बताया कि स्थिति शांत हो गई है, वो बांदीपुरा आ कर अपनी तनख्वाह ले जाए। वो अपने किसी मुस्लिम सहकर्मी के घर रुकी थी।
आतंकी आए, उसे घसीट कर ले गए। वहाँ के स्थानीय मुसलिम चुप रहे क्योंकि किसी काफ़िर की तकलीफ