भीख मांगना भी एक पेशा है। यह काफी प्रेरणादायी पेशा है। अलग अलग प्रकार के भिखारी होते हैं, मगर सबसे सक्सेसफुल वे होते हैं, जो विकलांग हैं, चोटिल हैं।
वे जब कभी भीख मांगते है, अपनी चोट, या क्षत विक्षत हिस्सा जरा सा सामने कर देते हैं।
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दरअसल भीख देने वाले के सामने उस गले कटे अंग को लाना, केयरफुल और साइंटिफिकली डेवलप्ड बिजनेस स्ट्रेटेजी होती है।
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न्यूटन के अनुसार दी गयी भीख की मात्रा देने वाले के हृदय में करुणा के समानुपातिक होती है। जबकि आइंस्टीन के अनुसार यह करुणा विकल अंग, या चोट और घाव की भयावहता के
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सीधे समानुपातिक होती है।
तो इसका मतलब यह हुआ कि चोट की भयावहता पर भीख व्यवसाय का प्रॉफिट निर्भर है।
तो इसका रिवर्स देखेंगे, तो मतलब यह होगा कि घाव का सूखना, ठीक हो जाना, बिजनेस ग्रोथ के लिए एक बड़ा खतरा है।
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30 साल भीख मांगकर खाने वाले नेता की पार्टी इस भिखारी मानसिकता
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इसलिए सरकार ने घाव देखना टैक्स फ्री कर दिया है। लेकिन ये बता दूं कि यह पार्टी आम भिखारियों से बेहद बेहद ज्यादा शातिर है। वो ऐसे, कि वो आपके ही घाव नोचकर हरे कर रही है,
इसे जानते हो?अजगर..
ये जब किसीको जकड़ता है,बहुत धीरे धीरे। कोई जल्दबाजी नहीं होती..
ये अगल से गुजरताहै,बगल से निकलता है,और फिर अपना पाश बना कर धीरे धीरे अपने आप को कसताहै ..ये प्राणी भी समझताहै की गलेमें सांसकी नली है उसे कस देनाहै और शिकार खत्म..
पर एक नए नजरिये से सोचिये ..
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क्या शिकारको अपने शरीरका इतना ज्ञान होता है?शिकार अपने बारेमें नहीं जानता उस से ज्यादा शिकारी जानताहै..
जब अजगर लपेटताहै तो हड्डियाँ तक चकनाचूर कर देता है, पर सब कुछ धीरे..धीर..धीरे..आराम से..टूटी हड्डियों से शिकार संघर्ष नहीं कर पाता..देखने वाले को लगता है शिकार खुद को बचाने
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को लड़ता क्यों नहीं है?
आराम का अपना एक एडवांटेज है,शिकार कोई जल्दबाजी नही करता छूटने की..उसको लगता है ये कुश्ती है..कभी भी छुट लेंगे..लेकिन ये कभी..कभी नही आता..
देश की हड्डियाँ चटक रही है..धीरे धीरे एक व्यवस्था के अजगर ने..अपनी गिरफ्फ्त में ले लिया है,अब संघर्ष थोडा ज्यादा
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पत्नी - तुम बदल गए हो।
आजकल मुझेसे ठीक से बात भी नहीं करते..
पति - नही काम में बिजी था।
पत्नी -2-3 दिन से तुम काम का बहाना बना रहे हो... तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो..
पति - नहीं..बस थोड़ी टेंशन है।
पत्नी - तुम हमेशा अपनी टेंशन मुझसे छुपाते हो..मुझे बताओ..हम दोनों मिलके कोई
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सोल्यूशन निकलते हैं...तुम कुछ तो बताओ? आख़िर परेशानी क्या है..?
पति - तो, लो सुनो..
टीडीएस फ़ाइल करना है,
इनकम टैक्स फ़ाइल करना है,
प्रॉपर्टी टैक्स देना है,
जीएसटी फ़ाइल करना है,
कस्टम डिपार्टमेंट में शिपमेंट अटक गया है,
उधारी आ नहीं रही है,
मार्केट में ग्राहकी है नहीं,
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ऊपर से सीलिंग का पन्गा लगा हुआ है,
मार्च क्लोज़िंग पे क्लोज़िंग पर ध्यान दूँ ?
अकाउंटेंट आ नहीं रहा है...उसे रोज़ गाली दे रहा हूँ !!
हांगकांगमें एक डकैतीके दौरान,बैंक लुटेरा बैंक में सभीको चिल्लाया:
"हिलना मत।पैसा सरकारका है।आपका जीवन आपकाहै।"
बैंक में सभी लोग चुपचाप लेटगए।
इसे"माइंड चेंजिंग कॉन्सेप्ट"कहा जाता है,जो पारंपरिक सोचको बदल देताहै।
जब एक महिला उकसावे से मेज पर लेटगई, तो डाकू उस पर चिल्लाया:
"कृपया सभ्य बनें!यह एक डकैतीहै और बलात्कार नहीं!"
इसे"बीइंग प्रोफेशनल"कहा जाताहै।केवल उसपर ध्यान केंद्रित करें जो आपको करनेके लिए प्रशिक्षित किया गयाहै!
जब बैंकलुटेरे घरलौटे,तो छोटे डाकू(एमबीए प्रशिक्षित)ने पुराने डाकू(जिसने प्राथमिक विद्या.मे केवल6वर्ष पूरा कियाहै)क़ो बताया
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"बिग ब्रदर,आइए गिनें कि हमें कितना मिला।"
बड़े डाकूने खंडन किया और कहा:
"तुम बहुत मूर्ख हो।इतना पैसाहै कि हमें गिनने में लंबा समय लगेगा।आज रात,टीवी समाचार हमें बताएगा कि हमने बैंक से कितना लूटा!"
इसे कहतेहैं"अनुभव"।आजकल,कागजी योग्यताओं से अधिक महत्वपूर्ण अनुभवहै!
लुटेरों के चले
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कूका पाड़े। फोक सिंगर, आतंकी, रिंग लीडर, सरकारी जंगजू, विधायक...
प्रो इंडियन टेरेरिस्ट
कश्मीर में1986के चुनाव में कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस का गठजोड़ था। जिसे जीतना ही था। सब जानते थे कि आएगा तो फारूक ही,
फारुख नही तो कौन?जनता पूछती थी।
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तो चुनाव आते आते फारुखका विकल्प बनना शुरू हुआ।
छोटे मोटे संगठन,नेशनल कांफ्रेंस के असन्तुष्ट, कुछ मुल्ले मौलवी मिलकर किला लड़ाये।नाम हुआ मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट..
फारुख,नई दिल्ली का अंध समर्थक,गैर इस्लामी जीवन शैली वाला,विदेश में पढ़ा हुआ शेख अब्दुल्ला का लड़का
तो इसका विपक्ष,
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याने MUFघोर इस्लामी,स्थानीय गरीब गुरबो के बेटे,और 370विरोधी होना ही था।
अब जरा मजे की बात ये की 370 विरोधी तो आप भी हैं, MUFभी था। तो कन्फ्यूज न हों। कश्मीर में 370 का मतलब इंडिया से जुड़ाव होता है। 370 का समर्थन करना, प्रो इंडिया होना होता है,जो फारुख थे।
झण्डे ही झंडे हैं।
सारे चीन के है।
चीन के भीतर चीन के हैं।
एक ठो मेन झंडा है, जिसे आप पहचानते है।
पांच औऱ झण्डे है
उसके बाद दो झण्डे और हैं..
किसके???
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चीन में 5 ऑटोनॉमस क्षेत्र हैं। उनके नाम खोजना आपका काम है। ऑटोनॉमस क्षेत्र का
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मतलब जहां का लोकल प्रशाशन, वहां के लोकल कस्टम्स, लोकल बॉडी के द्वारा चलाया जाता है। मुख्य चीन के बहुत से कानून यहां लागू नही होते।
ये पांच क्षेत्र, प्राचीन काल से स्थानीय ट्राइब के द्वारा रूल किये जाते रहे हैं, लेकिन वो बीजिंग वाले राजा को सुप्रीम मानते थे। यानी बीजिंग राजा के
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कुछ बेसिक नियम के अलावे बाकी में स्वत्रंत।
अपना झंडा,अपना कानून,अपना शासन।इस व्यवस्था को माओ ने पहले खारिज किया।लेकिन असन्तोष देखा तो वापस लागू किया। चीनी पासपोर्ट,बॉर्डर्स पर चीनी सेना,संचार व्यवस्था चीन के कंट्रोल में।बाकी अपने क्षेत्र में सरपंची करते रहो।
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