झण्डे ही झंडे हैं।
सारे चीन के है।
चीन के भीतर चीन के हैं।
एक ठो मेन झंडा है, जिसे आप पहचानते है।
पांच औऱ झण्डे है
उसके बाद दो झण्डे और हैं..
किसके???
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चीन में 5 ऑटोनॉमस क्षेत्र हैं। उनके नाम खोजना आपका काम है। ऑटोनॉमस क्षेत्र का
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मतलब जहां का लोकल प्रशाशन, वहां के लोकल कस्टम्स, लोकल बॉडी के द्वारा चलाया जाता है। मुख्य चीन के बहुत से कानून यहां लागू नही होते।
ये पांच क्षेत्र, प्राचीन काल से स्थानीय ट्राइब के द्वारा रूल किये जाते रहे हैं, लेकिन वो बीजिंग वाले राजा को सुप्रीम मानते थे। यानी बीजिंग राजा के
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कुछ बेसिक नियम के अलावे बाकी में स्वत्रंत।
अपना झंडा,अपना कानून,अपना शासन।इस व्यवस्था को माओ ने पहले खारिज किया।लेकिन असन्तोष देखा तो वापस लागू किया। चीनी पासपोर्ट,बॉर्डर्स पर चीनी सेना,संचार व्यवस्था चीन के कंट्रोल में।बाकी अपने क्षेत्र में सरपंची करते रहो।
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इसको शार्ट में 370 कहते हैं।
चीन देश का झंडा देखिए। लाल झण्डे के कार्नर में सितारे हैं। इसमे एक बड़ा, 5 छोटे सितारे दिखेंगे। अब आप जान गए, कि ये पांच छोटे सितारे कौन हैं???
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ये व्यवस्था चीन में आज से नही, 1950 के दशक से, माओ के दौर से लागू है। जरा सोचिए, हमारी एक 370 से
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गांव फ़टी रहती है,देशद्रोह देशद्रोह फीलिंग आती है।और चीन5जगह370मेन्टेन करता है।
(असल में7जगह।1990में ब्रिटेनसे ट्रांसफर होनेके बाद हांगकांग और मकाओ भी ऑटोनॉमस दर्जा दिये गए हैं)
मैप देखिए।50%चीन ही मेनलैंड कहलाता है। बाकी ऑटोनॉमस उप-देश हैं। अपना झंडा, अपना कानून, अपना शासन।
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अरे भाई, चीन को क्या डर नही लगता? ये सब टूटकर मंगोलिया, सेंट्रल एशिया या पाकिस्तान में मिल गए तो??
बिल्कुल लगता है जनाब।इसलिए बार्डर पर अपनी सेना रखता है, विदेश सम्पर्क नही रखने देता। इसके बाद जो बचा, लोकल एस्पिरेशन है, बकैती है।
रामाधीर सिंह की भाषा मे - "छोटा कम्युनिटी है,
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ऑटोनॉमसी करना चाहता है। करने दो..."
चीन को जो चाहिए, बखूबी ले रहा है। मंगोलियन ऑटोनॉमस क्षेत्र से कोयला मिलता है, शिनजियांग क्षेत्र से रेयर अर्थ मेटल... इन्ही के बूते, दुनिया मे उसकी बादशाहत बन रही है।
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कश्मीर में दंगा फसाद, आतंकवाद का यही कारण है। हमने उन्हें 370 देने की
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सॉवरिन गांरटी दी थी।बकायदा अपने मेन संविधान मे लिख दिया था।
फिर हम कच्ची जुबान निकले,पलटी खा गए। डरते थे कि एरिया हाथसे निकल जायेगा।फीर उत्तरप्रदेश,बिहार,एमपी,गुजरात वालोको चिढ़ है कि उनके राज्यको स्पेशल ट्रीटमेंट नही,तो कश्मीर किस खेत की मूलीहै??
खींचो ससुरे का स्पेशल स्टेटस।8
हटाओ 370..
तो कांग्रेस ने 370 ऑफिशियली तो नही हटाया था,मगर कुल 96 स्पेशल राइट में से 80-85 प्रावधान धीरे धीरे खींच लिए थे।
असन्तोष इसलिए पैदा हुआ था।कश्मीर के पास,ले देकर अपना झंडा बचा था, उसे मोदी जी ने आकर फाड़ दिया।
तो कश्मीरियों को लाकडाउन करके,सन्सद में झंडा फाड़ दिया।
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इस तरह वो बरियार बहादुर हो गए, हम सबको अच्छा लगा। जश्न मनाया।
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अब कश्मीरी पंडित।
जब असन्तोष फैला,तो राजनीतिक मूवमेंट हुआ। आटोनमी प्रेमी चुनाव लड़े।
हार रहे थे।लेकिन हार सुनिश्चित करने को इलेक्शन रिग किया गया,तो कुछेक हारे हुए कैंडिडेट ने तंजीमें बना की,विद्रोह पर उतर आए।
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विद्रोहियों ने सरकारी तंत्र में बैठे अफसरों को मारने का प्लान किया।
इंटेलिजेंस, पुलिस, रेडियो,दूरदर्शन प्रशासन, जज। अब कश्मीर का दुर्भाग्य यह, कि वहां प्रशासन के उच्च, मध्यम, निम्न पदों पर कश्मीरी पण्डित का एकतरफा बाहुल्य था।
वक्त आने पर इसे हिन्दू मुस्लिम रंग दे दिया गया।
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मुस्लिम ठोकने पर 35% वोट मिल जाते हैं।
सरकार बन जाती है।
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पहले सरकारे घाव सुखाकर देश स्ट्रांग करने के लिए बनती थी। आजकल सरकार, दोबारा सरकार बनाने के लिए बनती है। घाव कुरेदकर वोट पाना एक सफल नीति है। अपना बदन ब्लेड से काटना, हमे तुरत फुरत वीर-वीर फील कराया जाता है।
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लेकिन ब्लीडिंग बॉडी, कमजोर होकर खत्म हो जाती है। तभी तो चीन ने इतने झण्डे, इतने स्वशासी क्षेत्र पाल रखे हैं।
भीख मांगना भी एक पेशा है। यह काफी प्रेरणादायी पेशा है। अलग अलग प्रकार के भिखारी होते हैं, मगर सबसे सक्सेसफुल वे होते हैं, जो विकलांग हैं, चोटिल हैं।
वे जब कभी भीख मांगते है, अपनी चोट, या क्षत विक्षत हिस्सा जरा सा सामने कर देते हैं।
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दरअसल भीख देने वाले के सामने उस गले कटे अंग को लाना, केयरफुल और साइंटिफिकली डेवलप्ड बिजनेस स्ट्रेटेजी होती है।
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न्यूटन के अनुसार दी गयी भीख की मात्रा देने वाले के हृदय में करुणा के समानुपातिक होती है। जबकि आइंस्टीन के अनुसार यह करुणा विकल अंग, या चोट और घाव की भयावहता के
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सीधे समानुपातिक होती है।
तो इसका मतलब यह हुआ कि चोट की भयावहता पर भीख व्यवसाय का प्रॉफिट निर्भर है।
तो इसका रिवर्स देखेंगे, तो मतलब यह होगा कि घाव का सूखना, ठीक हो जाना, बिजनेस ग्रोथ के लिए एक बड़ा खतरा है।
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30 साल भीख मांगकर खाने वाले नेता की पार्टी इस भिखारी मानसिकता
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जंगल का सबसे ताकतवर, विशालकाय, इंटेलिजेंट, सामाजिक, शाकाहारी जीव, जिसे ऐसे गगनभेदी नारों से मूर्ख बनाकर सवारी गांठी जाती है।
हाथी सिकंदर के दौर से, मालिकों की लड़ाइयां लड़ता रहा है, उनका हौदा पीठ पर ढोता रहा है। शीश का दान कर, वह
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पूजनीय बन सकता है,मगर राजा नही।
नो पॉलिटिक्स- ऑनली वाइल्डलाइफ सीरीज में गिरगिट, शेर,गैंडे,जंगली गधे, मगरमच्छ, उल्लू, गिद्ध पर बात हो चुकी है, मगर हाथी यहां हमसे भी उपेक्षित रह गया था।
तो आज बात हमारी, याने हाथी की..
साहबान, कदरदान, मितरों,मूर्खो।
आप जानते हैं कि धरती पर
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चलने वाला सबसे विशालकाय मेमल, हाथी है। संस्कृत के हस्ति शब्द से इसका प्रादुर्भाव है। जहां सारे हाथी पकड़कर सेवा में लाये जायें, वह माइथोलॉजिकल शहर हस्तिनापुर कहलाया।
अंग्रेजी में एलिफेंट कहते है, जो ग्रीक शब्द एलिफ़ास से बनता है।एलिफ़ास का मतलब है आइवरी, याने वो दांत, जो बड़े
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राजस्थान और छत्तीसगढ़ के इन शानदार स्कूलों के लिए धन्यवाद अरविंद केजरीवाल..
जी नही। ये स्कूल तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान के कांग्रेसी सरकारें ही बना रही हैं। मगर इसका श्रेय कहीं न कहीं दिल्ली सरकार, मनीष सिसोदिया और केजरीवाल को जाता है।
इसलिए, कि सरकारे एक दूसरे से सीखती है।
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दिल्ली की सरकार ने स्कूलों को लेकर जो सिरियस एप्रोच शुरू की,उसकी चुनावी सफलता ने दूसरी सरकारों को प्रेरणा दी है।
राजस्थान की ओल्ड पेंशन लागू कराने को भी भूपेश बघेल ने कॉपी किया है।पिछले हफ्ते सरकारी कार्यालयों में समय पूर्व होली खेली गई, जश्न हुआ।
अजीत जोगी की "मितानिन योजना"
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को केंद्र ने देश भर में "आशा वर्कर" योजना के रूप में लागू किया था। राजस्थान की RTI और रोजगार गारंटी स्कीम को देश की आरटीआई और मनरेगा में ढाला गया।अम्मा कैंटीन को छत्तीसगढ़ में दाल भात केंद्र के रूप में शुरू किया गया था,जो असफल रही। पर उसकी जगह अभी "गढ़ कलेवा" चल रहा है, सफल है।
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बहुत जोर शोर से कश्मीर पर किसी प्रोपेगेंडा फिल्म का जिक्र चल रहा है,क्योंकि हमे समयाभाव के कारण फिल्मे देखनेका अवसर नहीं मिलता तो हमने देखी भी नहीं( लास्ट फिल्म फना देखी थी,आमिर खान की वो भी कश्मीर के बैकग्राउंड पर बनी थी )
लेकिन कथित कश्मीर फाइल्स की चर्चा और जिक्र सुनकर यकीन
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हो गया है कि भारतमें अन्दर तक घुसपैठ हो चुकी है।
शीत युद्ध के समय की हॉलीवुड फिल्मे देखे तो उनमें अकेला रैंबो सोवियत मिलेट्री अड्डों में घुसकर सबको नेस्तनाबूत कर देता है।
फिर चीन की फिल्म देखे तो उसमे चिंग पिंग अपने मार्शल आर्ट्स से ही गोरोंको बर्बाद करके निकल लेताहै।एक फिल्म
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में तो काफी मारा पीटी के बाद हीरो बचकर निकलता है और चीन का पासपोर्ट दिखाता है इसी के साथ द एंड का बैनर लग जाता है( इस प्रकार की चाइनीज फिल्मे दो तीन साल से आ रही है )
जब हम तेजी से विश्व शक्ति बनने की ओर बढ़ रहे थे तो पड़ोसी का मनोबल तोड़ने के लिए हमारे यहांभी Hero,The spyजैसी
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महाभारत कथामें अंकित रहस्यमयी व्यूहरचना,जो युद्ध के तेरहवें दिन रची गयी थी। सात परतों में अपने कमजोर और मजबूत सैनिकों का ऐसा संयोजन की हर दीवार को बगल की दीवार का सहयोग मिले,और दुश्मन कुचल दिया जाये।
देखने मे लगता है कि यह डिफेंसिव है।पर व्यूह के सैनिक स्थिर नही
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वे घूम रहे हैं,आगे चल रहे हैं।लेकिन इसके साथ पूरा व्यूह भी दुश्मन की तरफ बढ़ रहा है।इस व्यूह को रचना और चलाना आसान काम नही। पर बना लिया,तो इसे तोड़ना औऱ कठिन।
चक्रव्यूह की सात परतें हैं।हर परत के बारे में बताता हूँ।
पहली परत, प्रोपगंडा है।टीवी, रेडियों, अखबार,और सोशल मीडिया
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पर महारथी इसकी कमान सम्हालते हैं।फेक तस्वीरें,फेक डेटा,फेक उपलब्धियां,ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल..हाथ का भाला है। तो नकली इतिहास, आइडिओलिजी, क्रिया प्रतिक्रिया की थ्योरी इनकी ढाल है।
दूसरी परत पैसा है। इसमे कानून काम आता है। पैसे लेन देंन की अनुमत प्रक्रिया ऐसी, की व्यूहकर्ता का
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अगर झटके में सोचने बैठें तो पाएंगे पूरे विश्व में रुस द्वारा दिए गए कम्युनिज्म से भी दसियों गुना ज्यादा लोकप्रिय और दिल खोलकर आजमाई गई चीज AK 47 ही है. इसको दुनिया के कोने कोने के लोगों ने बगैर किसी नैतिक दुविधा के खुले दिल से अपनाया और ये
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उनकी आशाओं पर उम्मीद से ज्यादा खरी उतरी.
लेनिन, दोस्तोवस्की और चेखव से ज्यादा संसार मेंAK 47को जानने और चाहने वाले लोग हैं.
एक अनुमान के अनुसार एक करोड़ से ज्यादा AK 47अभी तक बन कर प्रचलन में आ चुकी है अगर एक एके 47 अपने लगभग पचास साल के पूरे जीवन काल में दस से बारह हाथों में
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भी गई हो तो मान लीजिए भारत की लगभग पूरी आबादी के बराबर लोग इसे अपने हाथों में थाम चुके हैं.
अनुमान है कि धरती पर हर सत्तर व्यक्ति पर एक एके 47 राइफल विद्यमान है और हर साल लगभग ढाई लाख लोग धरती पर इसका शिकार होते हैं.
एके 47 का संतुलन और इसकी शक्ति इसे धरती का सबसे आकर्षक और
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