आपको इस पोस्ट पर गर्व होना चाहिए,साथ ही बीजेपी को थैंक्यू भी बोलना चाहिए।
वज़ह यह है कि200साल अंग्रेजों की ग़ुलामी करते हम एक बार फ़िर उन्हीं अंग्रेजों के ग़ुलाम हो चुके हैं।
बेरोज़गारी,महंगाई और परिवारकी बदहाली ने भारतीय मजदूरों को ग़ुलामी की बेड़ियां पहनने पर मजबूर किया है।
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ये कहानी 185 साल पुरानी ब्रिटिश कंपनी पीएण्डओ की है, जिसने 2500 भारतीय कर्मचारियों को "ग़रीबी भत्ते" यानी महज़ 2.38$ प्रतिघंटे (181 रुपये) की मजदूरी पर रखा है।
इससे पहले इसी कंपनी ने फिलीपींस के मजदूरों को 263 रुपये प्रतिघंटे पर रखा था। विरोध हुआ तो भारतीय मजदूर रखे गए।
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दिवालिया हो चुकी इस कंपनी ने पिछले साल 800ब्रिटिश नाविकों को नौकरी से हटा दिया था। फिर उसे10मिलियन डॉलर की आपदा राहत सहायता मिली थी।
लिवरपूल से डबलिन के रूट पर चलने वाले कंपनी के दो जहाजों में2500नाविक हैं।मूंगफली खिलाकर काम लेने के कारण इन्हें "शर्मनाक जहाज़"का खिताब मिला है।
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भारतीय बसावट की सभ्यता अन्य सभ्यताओं से ज़्यादा अलग नही रही है।यह आदिम युग में “क़बीला “ रहा। सामंती युग में यह “प्रजा “ हो गया ,और अंग्रेज़ी साम्राज्य ने इसे “ ग़ुलाम “ बना दिया। कांग्रेस ने ग़ुलामी तोड़ कर इसे आज़ादी दिया और ख़ुदमुख़्तारी का अधिकार देकर इसे “नागरिक” बनाया । 4/1
47 इसका बँटवारा हो गया। एक ( पाकिस्तान ) ने अपने को - पहले “धर्म “ बनाया, फिर छोटे छोटे कबीले में बंट कर प्रायश्चित करने लगा । इसके उलट भारत ने अपने को नागरिक बनाया । आज भारत फिर घूम कर पाकिस्तान की डगर चल पड़ा है और यहाँ का नागरिक कूद कर क़बीला बन गया है ।हिंदू , मुसलमान
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सिख ,मराठा ,गुजराती ,ब्राह्मण ,अहीर , बनिया , कबीले ही कबीले ।
क़बीला क़ायम करना ,एकाधिकारवादी सत्ता का खेल है जिस पर उसकी उमर फैलती है । प्रबुद्ध जनों ,जनतंत्र में यक़ीन रखने वालों का दाइत्व बनता है क़ि कबीलायी तमीज़ को नष्ट करके नागरिक सभ्यता को मज़बूत करें ।
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हम दोनो ने बहुत मेहनत की क़ि राष्ट्रभक्त की शिनाख्त करने का कोई अचूक नुस्ख़ा बना लें । हम समाजवादी कांग्रेसी ,वह खाँटी गिरोही , लेकिन बच्चन जी ( हरिवंश जी ) हम दोनो का कान उमेठ कर जीवनसूत्र देते हैं - गाज गिरी कब मदिरालय पर , कंचन बरसा कब मंदिर पर ? मंदिर मस्जिद भेद बढ़ाते ,
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मेल कराती मधुशाला॥फ़लसफ़े में उतरे तो - बीरबल अकबर के दरबार में हाज़िर मिले - हुजूरे आला!ख़ादिम ने दुनिया नाप लिया है ,आप जहाँ तसरीफ रखे हैं यही मरकज़ है यानी दुनिया बहुत छोटी है।हम और हमारा दोस्त एक नुक़्ते पर राज़ी हो गया -बनाने वाला बड़ा होता है की बेचनेवाला बड़ा होता है ?
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इसी “ बड़े” को राष्ट्रभक्त के नाध दो क़ि कौन है राष्ट्र भक्त ?
बनानेवाला या बेचनेवाला ?
गिरोही अनंत में चला गया - मत पूछ क्या गुजरती है दिल पर ? । हमारा बेटा , परदादी की सहेजी हुई पीतल की कलछुल बेच कर सिम ख़रीद रहा है । 4/3
शकुनि एक भला आदमी था,जो कि कुरुवंश के लोगो द्वारा 90साल तक सताया गया था।
असल में हुआ यह कि हस्तिनापुर के मौजूदा राजा के पिताजी के पिताजी ने एक बार गंधार पर किया था अटैक,और बम मारकर सब धुआं धुआं कर दिया।।
गंधार उर्फ कंधार तब एक इंडिपेंडेंट सॉवरिन नेशन था।
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उसने नाटो से मदद मांगी और जिसने मदद नही की। नतीजा सेनानायक भीष्म में कन्धार किंग की फोर वाइफ और फोर्टी बच्चो को मार डाला।
इस कत्लेआम के बारे में हर शब्द इतिहास से मिटा दिया गया।वामपंथी व्यास की सम्पूर्ण महाभारत इस विषय पर मौन है।
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खैर, तो कंधार को हस्तिनापुर में एनेक्स कर
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एक प्रोविंस बना लिया गया।शकुनि काफी छोटा था।उसकी बहन बेहद रूपवती थी।
चूंकि अब इंडिया वाले कंधार की लड़कियों से ब्याह कर सकते थे।सो युद्ध का सोल पर्पज था। इसलिए सबसे पहले भीष्म ने अपने अंधे रिश्तेदार धृतराष्ट्र का गांधारीसे का ब्याह रचा दिया।
छोटेसे शकुनि को दुल्हनका संगी बनाकर
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