#तुम_सोन_चिर्रैया_थे_लंका_सोने_की_थी #बहुत_महँगा_पड़ा_ये_सर्कस
सच्चा धार्मिक परिवर्तित करता है।मदारी प्रभावित करता है👉उसकी पोटली मे मनोरंजन के सब सामान होते है👉समय,हवा और भीड़ की माँग का पूरा ख्याल रखता है।उसी हिसाब से तमाशे दिखाता है,जैसी भीड़ की माँग हो। भीड़ की भाव भंगिमा
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पढने मे माहिर होता है।कब रोना है, कब शेर की खाल ओढ कर अपने को जंगल का एक मात्र राजा सिद्ध करना है, कैसे जादू से चवन्नि निकल कर लोगों के बटुवे खाली करने है इस कला का सिद्धहस्त होता है।लोगों की जेब काटता नही,बल्कि लोग स्वतः बटुवे खाली कर उसके सुपुर्द कर देते है। वो अन्धों की भीड़
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तैयार करता है। जो परिवर्तित होने को राजी नही होते वो किसी से प्रभावित होकर👉उसको अपना मार्गदर्शक मान कर अनुसरण को राजी हो जाते है। वो भीड़ का भरपूर दोहन करता है और भीड़ दोहन को खुशी राजी रहती है।
इसीलिये दुनिया मे सच्चे आदमी की मौजूदगी चाल बाज और मदारियों के लिये खतरनाक है।
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इसलिये चालक और मदारी सबसे पहले सच्चे आदमी को और भीड़ के लिये नुकसानदेह सिद्ध करते है और हासिये पर डाल देते है। वो जानते है कि अगर ये कुछ दिन भी ठहरा तो मदारी का खेला बिगड़ जायेगा। मदारी के पास सिर्फ एक द्रष्टि होती है👉तमाशे अनवरत चलते रहने चाहिए बस पब्लिक को ऊबने से पहले
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उसके हाथ कोई दूसरा झुनझुना होना चाहिए। उसके पास भविष्य की कोई द्रष्टि नही होती। देश का दुर्भाग्य है कि जिन मदारियों का खेल देख कर हमे 1रुपए का सिक्का देकर निकल जाना था, हमने उनको घर की ताली पकड़ा दी।
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कश्मीर में जोशीजी की एकता यात्रा यात्रा, और लाल चौक में झंडा फहराने की हुनक पर पोस्ट लिखी। उस पर एक जने कमेंट किये है- तो क्या वहां तिरंगा फहराना गलत है???
जवाब जरा साइंटिफिक है।
By 👉 @RebornManish
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पानी हाइड्रोजन के दो अणु और ऑक्सीजन के एक अणु से बना होता है। पानी का
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नैसर्गिक गुण है,की वह आग बुझा देता है। जहां कहीं आग लगे, वहां पानी डालना चाहिए।
लेकिन अगर टेम्परेचर बहुत ज्यादा हो, जैसे कि 5000 डिग्री। तब अगर पानी डालेंगे, तो ऑक्सीजन और हाइड्रोजन अलग अलग हो जाएंगे। अब वे अपने अपने गुण पर काम करेंगे।
हाइड्रोजन ज्वलनशील है,पेट्रोल का बाप।
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खुदई ईंधन है, जो ऑक्सीजन के साथ मिल जाये तो इतनी तेजी से जलेगा की विस्फोट हो जाये।
तो पानी अब आग नही बुझायेगा। औऱ भड़कायेगा।
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आपकी देशभक्ति, झंडा तिरंगा वही पानी है, जो जलती साम्प्रदायिक और क्षेत्रीय भावनाओ को , आम तौर पर ठंडा करके भारतीय बना देता है। नॉर्मलसी ला देता है।
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भारत में लोकतंत्र जिस मुकाम तक पहुंच चुका है,अब न्यायालय और सामान्य प्रशासन जैसे विभाग बंद कर दिए जाने चाहिए।एक अपराध पर पुलिस आरोपी की सारी संपत्ति लूट ले।
लोकरुचि के मुताबिक होना तो यह भी चाहिए, कि वह उनके बच्चों का कत्ल भी करे और औरतों की आबरू भी लूट ले।इससे दो फायदे होंगे।
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पहला ये,कि तत्काल न्याय मिलेगा और तारीख पर तारीख बंद हो जाएगी।दूसरा ये,कि लोग सरकारके सामने खड़े नहीं होंगे।
ऐसा करने से जनताकी गाढ़ी कमाईका जो पैसा सफेद हाथियोको पालने पर खर्च होरहा है,उससे देशके हर नुक्कड़ और चौपाल पर अत्याधुनिक अस्त्र–शस्त्र से पुलिस की तैनाती की जा सकेगी।
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जो सरकार के खिलाफ बोले, उसे बीच चौराहे पर ठोक दो। इससे अवांछित संपत्ति और अवांछित लोगों को मिटाया जा सकता है। वन नेशन और वन ये–वो के साथ वन कलर, वन आइडियोलॉजी, वन रिलीजन और ऐसे राष्ट्रवादी वन–वन की बहार आ जायेगी।
देश को विचार तो इस पर भी करना चाहिए, कि वन सेक्स की थ्योरी पर
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सरदार पटेल की सुपुत्री मणि बेन पटेल 26 मार्च सन 1931 को यूरोप जाने से पहले महात्मा गांधी से आत्मीयता से गले मिलती हुईं ।
सरदार पटेल एक कामयाब वकील थे और उन्होंने अपने बेटे डाया भाई पटेल और बेटी मणिवेन को अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा दिलवाई थी।
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पत्नी के असामयिक निधन के बाद दोनों संतानों को मुंबई में अंग्रेज़ गवर्नेस के पास छोड़कर वल्लभभाई पटेल बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गए थे। वहां से लौटने के बाद उनकी वकालत बहुत अच्छी चमक गई थी।
लेकिन महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह ने उन्हें सोचने को मजबूर कर दिया और इससे
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सरदार के जीवन की दिशा बदल गई। धीरे-धीरे वो गांधी से जुड़े और अपना सबकुछ उन्होंने आंदोलन में झोंक दिया।
मणि बेन पटेल गांधीजी द्वारा चलाये गए सविनय अवज्ञा आंदोलन , भारत छोडो आंदोलन में सक्रिय रहीँ व कई बार जेल भी गईं। सरदार पटेल के निधन के पश्चात मणिबेन ने नेहरू के आग्रह पर
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बेशर्म,
जिस यूपी के अभी ताजा नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 38% लोग गरीबी रेखा से नीचे उतर गये हों और 44% लोग कुपोषण के शिकार हो गये हों।
उस प्रदेश का तथाकथित सन्यासी इस विशाल आयोजन के साथ करोड़ों रुपए खर्च करके शपथग्रहण कर रहा है।
देश के लोगों कांग्रेस से तुमको बहुत तकलीफ थी
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लेकिन उसने सादगी से सदैव शपथ लेकर तुमको गरीबी से उठाया है।
जब अंबानी ने मुंबई में एंटीलिया बनवाया तो रतन टाटा ने कहा था कि जिस मुंबई में एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी हो वहां अमीरी की नुमाइश अच्छी नहीं लगती।
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ये देश के लोगों के बौद्धिक स्तर पर बुल्डोजर चलने जैसा है जो मानसिक दीवालियेपन की वजह से चीजों के निर्धारण में असमर्थ व अपंग हो चुके हैं।
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द्वारका का विस्तार हो चुका था।अखण्ड द्वारका समझ लीजिए,जिसकी पताका कश्मीर से कन्याकुमारी तक फहराती थी।चहुं ओर शांति थी,खुलापन था,मौजमस्ती और आजादी थी।
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तो द्वारकाधीश के भक्तो को मजाक सूझा।एक युवक के पेट मे लोकपाल बांधकर सप्तर्षियों के पास पहुचें-पूछा,
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अन्ना, बताओ इसके पेट से लड़का होगा या लड़की ???
अन्ना भन्ना गए। उनकी आंख में स्कैनर था। बोले- इसके पेट एक जोकपाल होगा, और तुम सबके सत्यानाश का कारण बनेगा,
भर्र भों.. उड़ती पुडती रगड़ती की कुंडी छू...ऐसा मंत्र बोलकर शाप दे दिया।
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अब तो भक्त घबराए, चाणक्य के पास पहुचें।
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उन्होंने सलाह दी- पेट का मूसल घिस दो, समुद्दर में बहा दो। मामला खत्म।
तो भक्तों ने डिजिटल समुद्र के किनारे मूसल घिसा, और चूरा "अंतर्जाल" में बहा दिया।
नही बहाना था।
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चूरा था जहरीला, पूरे अंतर्जाल में फैल गया। सभी प्रजाजनों के हाथ मे मोबाइल थे, अंतर्जाल से लाइव जुड़े थे।
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