(1/5)शादी के बाद बरसों तक घरेलू हिंसा का शिकार हुईं शिवांगी गोयल उन औरतों के लिए मिसाल हैं, जिन्हें लगता है कि अब कुछ नहीं हो सकता। शिवांगी की सात साल की बेटी है। ससुराल में काफ़ी समय तक हिंसा झेलने के बाद, शिवांगी ने अपने माता-पिता के पास लौटने का फ़ैसला किया।
(2/5)शिवांगी ने तलाक़ के लिए अदालत में अर्ज़ी दी। इतना सब कुछ होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। शिवांगी का बचपन का सपना था UPSC एग्ज़ाम पास करके प्रशासनिक सेवा में जाने का। वापस आने के बाद, शिवांगी ने अधूरे सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया।
(3/5)कड़ी मेहनत और शिवांगी की ज़िद का नतीजा है कि शिवांगी इस बार UPSC क्लियर करने में ना सिर्फ़ कामयाब रहीं, बल्कि ऑल इंडिया 177 रैंक भी ले आईं।
शिवांगी का कहना है कि वह उन महिलाओं को संदेश देना चाहती हैं, जो शादी के बाद घरेलू हिंसा झेलती हैं और सोचती हैं कि यही उनकी नियति है।
(4/5)उन्हें अपने आप पर भरोसा करना चाहिए। कड़ी मेहनत और लगन से हर बुरी परिस्थिति से बाहर निकला जा सकता है।
शिवांगी की कामयाबी ने उन अनगिनत महिलाओं में भरोसा ज़रूर जगाया है, जिन्हें लगता है कि शादी के बाद कामयाबी का रास्ता बंद हो जाता है।
(1/5)यूपीएससी में हिंदी मीडियम के अभ्यर्थियों में टॉप करने वाले रवि कुमार सिहाग ने 18वीं रैंक लाकर साबित किया है कि हिंदी का परचम भी नतीजों में बुलंद रहा है।
यूपीएससी में 17वीं रैंक तक टॉपर्स अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थी हैं।
(2/5)जबकि हिंदी माध्यम से टॉप करने वाले 18वें नंबर पर रवि कुमार सिहाग हैं। रवि कुमार सिहाग की ऑल इंडिया रैंक तो 18 है, लेकिन हिंदी माध्यम में इनकी रैंक टॉप की है। रवि ने यह परीक्षा कुल चार बार दी है और चार प्रयासों में से तीन बार सफल रहे हैं।
(3/5)राजस्थान के रवि उनके परिवार और गांव से पहले आईएएस बनेंगे। हिंदी मीडियम से ही ग्रेजुएशन कर चुके रवि ने कभी भाषा को किसी तरह की दिक्कत नहीं माना। कॉलेज की पढ़ाई के बाद, रवि ने साल 2016 में एक साल तक यूपीएससी की तैयारी की और चार बार परीक्षा दी।
(1/12)इस साल के यूपीएससी नतीजे देश के सामने हैं। टॉप 3 में देश की तीन बेटियों का नाम गूँज रहा है। श्रुति शर्मा को इस परीक्षा में पहला स्थान, अंकिता अग्रवाल को दूसरा और गामिनी सिंगला को तीसरा स्थान हासिल हुआ है। इन तीनों की कामयाबी सिर्फ़ इनकी कामयाबी नहीं है,
(2/12)बल्कि मुश्किलों के आगे हिम्मत ना हारने वाले हर इंसान की कामयाबी का सबक़ इनकी कहानियों में छुपा हुआ है। इस परीक्षा को टॉप करने वाली दिल्ली की श्रुति शर्मा को दूसरी कोशिश में कामयाबी मिली, लेकिन हम सबके लिए असली कहानी उनकी पहली कोशिश में है।
(3/12)श्रुति ने पिछले साल भी यह परीक्षा दी थी, तब ना कहीं ढोल नगाड़े थे और ना बधाई देने वालों का जमावड़ा। क्योंकि श्रुति पिछले साल की कोशिश में महज़ एक नंबर की कमी से यूपीएससी के इंटरव्यू में नहीं जा पाई थीं। असल में श्रुति यह एग्ज़ाम इंग्लिश में देना चाहती थीं,
(1/10) जैसे-जैसे हम बड़े होते है, हममें से अधिकांश लोगों को माध्यमिक बोर्ड परीक्षाओं के महत्व के बारे में बताया जाता है। क्या आप जानते हैं, हमारे एजुकेशनल जर्नी का सबसे निर्णायक समय तब होता है, जब हमें यह डिसाइड करना होता है कि हमें अपने जीवन में क्या बनना है... @manav_rachna
(2/10) या फिर करियर के रूप में कौनसा पेशा चुनना है। भले ही यह कदम कितना ही महत्वपूर्ण क्यों न हो, फिर भी हमारे देश में बच्चे अपनी रुचि को ध्यान में रखकर करियर नहीं चुनते, बल्कि वे वही करते हैं, जो उनके परिवारवाले या दोस्त उनसे करने को कहते हैं।
(3/10) हर इंसान के अंदर एक अलग रचनात्मकता, प्रतिभा या जूनूनहोता है, जिसे वह समाज की अपेक्षाओं के सामने अंदर ही दबा देने को मजबूर हो जाता है। यह ना सिर्फ उनके अंदर छिपी प्रतिभा को दबा देता है, बल्कि उनके पूरे करियर ग्रोथ को भी सीमित कर देता है।
(1/17)30 दिसंबर, 1930 को डॉ. भीमराव आंबेडकर ने लंदन से रमाबाई को एक पत्र लिखा था, उसी पत्र का सम्पादित संपादित अंश।
रमा! कैसी हो रमा तुम?
तुम्हारी और यशवंत की आज मुझे बहुत याद आई। तुम्हारी यादों से मन बहुत ही उदास हो गया है। मेरी बौद्धिक ताकत बहुत ही प्रबल बन गई है।
(2/17)शायद मन में बहुत सारी बातें उमड़ रही हैं। हृदय बहुत ही भाव प्रवण हो गया है। मन बहुत ही विचलित हो गया है और घर की, तुम सबकी बहुत यादआ रही है। तुम्हारी यादआ रही है। यशवंत की याद आ रही है। मुझे तुम जहाज पर छोड़ने आयी थी। मैं मना कर रहा था। फिर भी तुम्हारा मन नही माना।
(3/17)तुम मुझे पहुंचाने आई थी। मैं राउंड टेबल कांफ्रेंस के लिए जा रहा था। हर तरफ मेरी जय-जयकार गूंज रही थी और ये सब तुम देख रही थी। तुम्हारा मन भर आया था, कृतार्थता से तुम उमड़ गयी थी।तुम्हारे मुंह से शब्द नही निकल रहे थे।परंतु, तुम्हारी आंखें,जो शब्दों से बयां नहीं हो पा रहा था,
(1/6)गुरबक्श सिंह ढिल्लों का जन्म 18 मार्च 1914 को पंजाब के एक गाँव में हुआ। ढिल्लों बचपन से ही दिमाग से तेज थे, पढ़ने-लिखने में उन्हें काफी रूचि थी। शुरुआत में वह स्पष्ट नहीं थे कि उन्हें आगे क्या करना है। उनका पूरा ध्यान बस ज्यादा से ज्यादा पढ़ने पर था।
(2/6)इसी बीच, एक दिन किसी ने उन्हें सेना में भर्ती होने की सलाह दी! फिर क्या था, उनके दिल में यह बात घर कर गयी और उनके जीवन का लक्ष्य सेना में भर्ती होना बन गया।
साल 1936 के आसपास भारतीय सेना से उन्हें बुलावा आया। वह 14वीं पंजाब रेजिमेंट की प्रथम बटालियन का हिस्सा बनाए गए।
(3/6)उन्होंने अपनी कार्यशैली से सीनियर्स को काफी प्रभावित किया। आगे चलकर उन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध में हिस्सा लेने का मौका मिला, इस जंग में उन्होंने विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब दिया था।
हालांकि, अंत में वह जापान द्वारा युद्धबन्दी बना लिये गये थे।
(1/5)80 के दशक में रामायण धारावाहिक को घर-घर तक पहुंचाने वाले रामानंद सागर का जन्म 29 दिसंबर 1917 को ब्रिटिश इंडिया के पंजाब में हुआ था। अब यह जगह पाकिस्तान के लाहौर में है। रामानंद सागर के बचपन का नाम चंद्रमौली चोपड़ा था। रामानंद को उनकी नानी ने पाला और
(2/5)उन्होंने उनका नया नाम रामानंद सागर रखा। परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी, इसलिए रामानंद को कम उम्र से ही काम करना शुरू करना पड़ा। उन्होंने उन दिनों ट्रक क्लीनर और चपरासी की नौकरी भी की है।
1940 में रामानंद सागर पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर में असिस्टेंट स्टेज
(3/5)मैनेजर के तौर पर काम करने लगे। यहीं से उन्हें राज कपूर के साथ काम करने का मौका भी मिला। साल 1950 में उन्होंने प्रोडक्शन कंपनी सागर आर्ट कॉरपोरेशन बनाई। रामानंद सागर के कई सीरियल और फिल्में पॉपुलर हुईं लेकिन 'रामायण' की सबसे ज्यादा चर्चा रही।