🔘 पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नि, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं, सब मिलते हैं । क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है #Thread @IndiaTales7
🔘 वेसे ही सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है । जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है --
🔘 #ऋणानुबन्ध : पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी
भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये
🔘 #शत्रु_पुत्र : पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर
माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा । हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होगा ।
🔘 #उदासीन_पुत्र : इस प्रकार की सन्तान ना तो माता-पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है । बस, उनको उनके हाल पर
मरने के लिए छोड़ देती है । विवाह होने पर यह माता-पिता से अलग हो जाते हैं ।
🔘 #सेवक_पुत्र : पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है । जो बोया है, वही तो काटोगे । अपने माँ
-बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी, वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा ।
🔘 आप यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं । इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है । जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह
भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है । यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बन्द करने के पश्चात घर से निकाल दिया तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी । यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा ।
🔘 इसलिये जीवन
में कभी किसी का बुरा ना करें । क्योंकि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे, उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी । यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं । यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा
राशि से सौ रुपये निकल गये ।
🔘 #ज़रा_सोचिये, "आप कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जाओगे ? जो चले गये, वो कितना सोना- चाँदी साथ ले गये ? मरने पर जो सोना-चाँदी, धन-दौलत बैंक में पड़ा रह गया, समझो वो व्यर्थ ही कमाया। औलाद अगर अच्छी और लायक है तो उसके लिए कुछ भी
छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है, खुद ही खा-कमा लेगी और औलाद अगर बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्ज़ी धन छोड़कर जाओ, वह चंद दिनों में सब बरबाद करके ही चैन लेगी ।"
🔘 मैं, मेरा, तेरा और सारा धन यहीं का यहीं धरा रह जायेगा, कुछ भी साथ नहीं जायेगा । साथ यदि कुछ जायेगा भी
तो सिर्फ नेकियाँ ही साथ जायेंगी । इसलिए जितना हो सके नेकी कर, सतकर्म कर ।
श्रीमद्भभगवतगीता--
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*क्रिश्चियन* लड़की ने कहा कि.. यीशु हमारे लिए सूली पर लटके और मर गए।
मैंने कहा, पगली भगवान शिव ने हमारे लिए जहर पिया और जिंदा है।
(स्वयं पढ़ें और बच्चों को भी अनिवार्यतः पढ़ाएं*_.. 🙏
एक ओर जहां *ईसामसीह* को सिर्फ चार कीलें ठोकी गई थीं, वहीं *भीष्म पितामह* को धनुर्धर
अर्जुन ने सैकड़ों बाणों से छलनी कर दिया था।
तीसरे दिन कीलें निकाले जाने पर ईसा होश में आ गए थे, वहीं पितामह भीष्म ५८ दिनों तक लगातार बाणों की शैय्या पर पूरे होश में रहे और जीवन, अध्यात्म के अमूल्य प्रवचन, ज्ञान भी दिया तथा अपनी इच्छा से अपने शरीर का त्याग किया था।
सोचें कि
पितामह भीष्म की तरह अनगिनत त्यागी महापुरुष हमारे भारत वर्ष में हुए हैं, तथापि सैकड़ों बाणों से छलनी हुए पितामह *भीष्म को जब हमने भगवान नहीं माना, तो चार कीलों से ठोंके गए ईसा को गॉड क्यों मानें*??
ईसा का भारत से क्या संबंध है?
२५ दिसंबर हम क्यों मनाएं?
क्यों बनाएं हम अपने
#ये_बिहारी_लेडिज नाक से लेकर पूरे ऊपर मांग तक orange #सिंदूर (भखरा सिंदूर) भर लेती हैं....
ये कहकर मज़ाक बनाने वालों के लिए ये पोस्ट है,,
शादी में दुल्हन को सिंदूर सुबह के समय में लगाया जाता है। नारंगी सिंदूर की तुलना सुबह होने के समय सूर्य की लालिमा से की जाती है, जिसका रंग
नांरगी होता है। माना जाता है कि बिहार और झारखंड में नारंगी सिंदूर लगाने की पीछे मान्यता है कि जिस तरह सूरज लोगों की जिंदगी में नया सवेरा , खुशहाली और उमंग लाता है, उसी तरह माना जाता है कि नारंगी सिंदूर भी दुल्हन की जिंदगी में खुशहाली लाता है। यही कारण है कि सात फेरे और सिंदूर
की रस्म सुबह के समय में की जाती है,,ये सिंदूर सूरज की लालिमा को दर्शाता है।
कथाओं के अनुसार सिंदूर का नाक तक लगाने का संबंध मां पार्वती से है। जब मां पार्वती ने रक्तबीज राक्षस को मारा था तब उनका सिंदूर नाक तक फैल गया था। इसी वजह से हिंदू धर्म में महिलाएं नाक तक लंबा सिंदूर
दुनिया में भारत एक आस्था का केंद्र है। यहां पर कई चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर हैं।
इनमें कई ऐसे मंदिर हैं जिनके रहस्यों को आज तक वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं।
ऐसा ही एक भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर है जो दक्षिण भारतीय राज्य केरल के थिरुवरप्पु में स्थित है। #Thread
#श्रीकृष्ण_मंदिर_तिरुवरप्पु। यह दुनिया का सबसे असामान्य मंदिर है।
यह मंदिर २३.५८x७ खुला रहता है। यहाँ भगवान कृष्ण हमेशा ही विराजमान रहते हैं।डेढ़ हजार वर्ष पुराना यह मंदिर केरल के कोट्टायम जिले में तिरुवरप्पु में स्थित है। मान्यता है कि यंहा भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिष्ठित
विग्रह हमेशा भूख में रहते हैं इसलिए यह मंदिर ११.५८ घंटे, ३६५ दिन खुला रखा जाता है।
इस मंदिर की एक और ख़ासियत यह है कि पुजारी को दरवाज़ा खोलने के लिए चाबी दी जाती है तो साथ में एक कुल्हाड़ी भी दी जाती है।
लोगों का मानना है कि कृष्ण भूख बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं और इसलिए
ऊपर श्रीमती विशाखा हरी और उनके बेटे राजगोपाला हरी की तस्वीर है।
श्रीमती विशाखा हरी सीए में स्वर्ण पदक विजेता हैं और हमारे प्राचीन सनातन धर्म, पुराण, इतिहास, वेद और शास्त्रों के बारे में व्यापक ज्ञान रखती हैं।
वह किसी MNC में शामिल हो सकती थी/विदेश जाकर करोड़ों रुपए कमा सकती थी।
लेकिन उसने हमारे पुराणों, इतिहासों, वेदों और शास्त्रों का प्रचार करने के लिए एक कर्नाटक गायक और हरिकथा के निर्माता बनने का फैसला किया।
उनके अधिकांश हरि कथा तमिल भाषा में हैं।
श्रीमती विशाखा हरि के परिवार द्वारा अपने एकमात्र पुत्र को विशाखा हरि के पदचिन्हों पर चलने और हरि कथाओं
की परंपरा को जारी रखने के लिए महान प्रयास।
*हम हिंदू होने के नाते, कम से कम विशाखा हरी और अन्य हिंदू धर्म प्रचारक के सभी आयोजनों में शामिल होकर अपने धर्म से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित करें। * * *
हिन्दू युवाओं को विशाखा हरी जैसे उच्च शिक्षित लोगों से प्रेरित होकर हमारे
#गौ_सेवा_का_फल:-
आज से लगभग ८ हजार वर्ष पूर्व त्रेता युग में अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दिलीप के कोई संतान नहीं थी।
एक बार वे अपनी पत्नी के साथ गुरु वसिष्ठ के आश्रम गए। गुरु वसिष्ठ ने उनके अचानक आने का प्रयोजन पूछा। तब राजा दिलीप ने उन्हें अपने पुत्र पाने
की इच्छा व्यक्त की और पुत्र पाने के लिए महर्षि से प्रार्थना की।
महर्षि ने ध्यान करके राजा के निःसंतान होने का कारण जान लिया।
उन्होंने राजा दिलीप से कहा, “राजन! आप देवराज इन्द्र से मिलकर जब स्वर्ग से पृथ्वी पर आ रहे थे l
तो आपने रास्ते में खड़ी कामधेनु को प्रणाम
नहीं किया। शीघ्रता में होने के कारण आपने कामधेनु को देखा ही नहीं, कामधेनु ने आपको शाप दे दिया कि आपको उनकी संतान की सेवा किये बिना आपको पुत्र नहीं होगा।”
महाराज दिलीप बोले, “गुरुदेव! सभी गायें कामधेनु की संतान हैं। गौ सेवा तो बड़े पुण्य का काम है, मैं गायों की सेवा