भारत की प्राचीनतम स्थली अजमेर को आधुनिक युग में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के प्रतीक के रूप में देखा जाता रहा है। अजमेर का नाम आते ही भारतीयों के मन में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह प्रतीकात्मक रूप से बस चुकी है।
राजनीतिक और सामाजिक रूप से इस दरगाह को हिंदू-मुस्लिम सामाजिक सौहार्द के रूप में परिभाषित कर दिया गया।
वे हिंदुत्ववादी नेता जो हिंदू जनमानस पर अपनी छाप छोड़ते हैं वह भी आए दिन इस दरगाह पर चादर लिए माथा टेकते दिखाई पड़ते हैं।
आए दिन किसी भी सेलिब्रिटी, नेता की खबर अजमेर में आपको इस दरगाह पर चढ़ाते हुए मिल जाएगी।
अजमेर दरगाह को हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के रूप में ही स्थापित किया गया। इसलिए आपको तथाकथित हिंदुवादी प्रधानमंत्री,गृहमंत्री की तस्वीरें और खबरें भी इस दरगाह पर जाने की मिल जाएंगी।
इसके विपरीत इसी अजमेर से लगभग 10 किलोमीटर दूर अरावली पर्वतमाला की सुरम्य घाटी में अजयसर गांव के पास “अजोगंध महादेव मंदिर” नामक प्राचीन मंदिर स्थित है|
यह ऐतिहासिक अजयमेरु नगर (अजमेर) के संस्थापक चौहान क्षत्रिय राजा अजयपाल का स्मृति रूपी यह प्राचीन मंदिर जो अजोगंध महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है, को कहीं इतिहास के कोने में विस्मृत कर दिया गया है, हिंदूवादियों की नजर आज तक इस मंदिर में नहीं पड़ी,
ना ही इसे हिंदू जनमानस में कभी समाहित किया गया।
प्राचीन काल से ही क्षत्रिय सन्यास लेने के बाद भी हथियार व सवारी (घोड़ा आदि) का त्याग नहीं करते थे| साथ ही उनके आप-पास रहने वाले साधू, चरवाह आदि अपनी सुरक्षा व अन्य समस्याओं के लिए भी उन्हीं पर निर्भर रहते थे|
पुष्कर के आस-पास रहने वाले साधुओं को मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा तंग करने व पशु पालकों का पशुधन लूटने वालों को राजा अजयपाल सन्यासी होने के बावजूद वहां दण्ड देते रहे | डा. मोहनलाल गुप्ता ने अपनी इतिहास पुस्तक में यहाँ राजा अजयपाल द्वारा शिव की तपस्या करने का उल्लेख किया है|
बाबा अजयपाल चौहान ने ना केवल अजमेर की स्थापना की और बल्कि नागौर के गजनवी गवर्नर बहलिम को हराया,गजनवी सुल्तान बेहराम शाह को हराकर इस शहर को कला और साहित्य का केंद्र बनाया। उनके कई चांदी और तांबे के सिक्के पाए गए।
बाबा अजयपाल शैव थे लेकिन जैन धर्म और वैष्णवो को भी संरक्षण दिया।
उनके दरबार में अनेक श्वेतांबर और दिगंबर संत निवास करते थे। वह शिव के लकुलीश रूप की पूजा करता थे, वे नाथ सम्प्रदाय का अनुयायी थे।
वे पुष्कर में साधुओं को बचाने के लिए भोमिया बन गए थे।
इतने स्वर्णिम इतिहास के बावजूद अजमेर के संस्थापक और पूज्यनीय बाबा अजयपाल पर किसी राजनीतिक बुद्धिजीवी की नजर नहीं पड़ी यहां तक अजमेर जैसे विशाल शहर की स्थापना करने वाले इस महापुरुष की वहां कोई प्रतिमा तक नहीं। #ajmer#Rajput#history#ancienthistory#sanatandharma#सनातनधर्म
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सन 1510
गोआ के तात्कालिक मुश्लिम शासक यूसुफ आदिल शाह को पराजित कर पुर्तगालियों ने गोआ में अपनी सत्ता स्थापित की। अगले पच्चीस तीस वर्षों में गोआ पर पुर्तगाली पूरी तरह स्थापित हो गए। फिर शुरू हुआ गोआ का ईसाईकरण।
कुछ लोग उनकी कथा के प्रभाव में आ कर धर्म बदल लिए और ईसाई हुए। जो धन ले कर बदले उन्हें धन दिया गया, जो भय से बदल सकते थे उन्हें भयभीत कर बदला गया। और जो नहीं बदले..?
गांव के बीच मे एक हिन्दू को खड़ा करा कर उसे आरा से चीरा जाता, हिन्दू युवतियों को नग्न कर सँड़सी से उनके स्तन नोचे जाते.. स्त्रियों को नग्न कर उनकी दोनों टांगो में दो रस्सी बाँध दी जाती और दोनों रस्सियां दो घोड़ों से जोड़ दी जातीं।
बचपन में हम देखते थे कि हल चलाते में अगर बैल गोबर मूत्र आदि करे तो किसान कुछ देर के लिए हल रोक देते थे ताकि बैल आराम से नित्यकर्म कर सके।
जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं!
यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा!
उस जमाने का देसीघी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि 2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है ! उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था!
टिटहरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है...हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टिटहरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था! उस जमाने में आधुनिकशिक्षा नहीं थी!
हरिसिंग नलवा ज्यांच्या भीतीमुळे पठाण आजही स्त्रियांचे कपडे घालतात. आज ज्याला पठाणी सूट म्हणतात तो सलवार कमीज आहे जो तेथील स्थानिक महिला परिधान करतात.
एकदा एका म्हातार्या सरदारजींनी भाषणादरम्यान मोठ्या आवाजात म्हटले होते की... अहो, या धर्मांतरित मुस्लिमांची आज काय स्थिती आहे......?
आपले पूर्वज हरीसिंग नलवा यांनी पठाणांना सलवार घालायला लावली. आजही हे पठाण आम्हा शीखांच्या भीतीने सलवार घालतात.
मियां गुल औरंगजेब हे पाकिस्तानचे माजी राष्ट्रपती आणि हुकूमशहा अयुब खान यांचे जावई आणि बलुचिस्तानचे माजी राज्यपाल आहेत, त्यांनी देखील ही गोष्ट कबूल केली होती.
इन्ही सात दिनों में गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार बलिदान हो गया था। इधर हिन्दुस्तान क्रिसमस के जश्न में डूबा एक दूसरे को बधाइयां देता है। एक वह वक्त भी था जब पंजाब में ये सात दिन हर परिवार जमीन पर सोता था।
क्योंकि माता गूजरी ने ये रातें, दोनों छोटे बच्चो के साथ सरहिन्द के किले में, ठंडी बुर्ज में गुजारी थी खाली फर्श पर।
जब वो नवाब वजीर खां की गिरफ्त में थीं। यह सात दिन भारत के इतिहास में शोक का सप्ताह होता है, उत्सव का नही।
आज पंजाब समेत पूरा हिन्दुस्तान जश्न में डूब जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी के बलिदान को इस अहसान फरामोश कुछ लोग ने सिर्फ 300 साल में भुला दिया। जो सभ्यता अपना इतिहास, अपने नायकों के बलिदान को भूल जाती हैं वो खुद विस्मृत इतिहास बन जाती है। यह वक्त कोरल संगीत का नही..
बलिदानी गुरु के शोक और स्मृति में डूबने का है
सिंगापुर में अंग प्रत्यारोपण का यह नियम लागू नहीं है कि अंग किसी डायरेक्ट ब्लड रिलेटिव ने डोनेट किया हो
जबकि भारत में किडनी या लीवर सिर्फ ब्लड रिलेटिव ही डोनेट कर सकता है
अमर सिंह ने भी सिंगापुर में अपनी किडनी बदलवाई थी और वह किडनी उन्हें किसने डोनेट किया यह गुप्त रखा गया
अमर सिंह भी चाहते तो अपनी बेटी को महान बना देते
और हां किडनी ट्रांसफर करने के 2 घंटे के बाद कोई भी व्यक्ति हॉस्पिटल में पोज देते हुए फोटो सेशन नहीं कर सकता.
किडनी निकालते समय जो एनस्थीज़िया दिया जाता है उसका असर कम से कम 12 घंटे तक रहता है और पेट के बगल में चीरा लगाकर किडनी निकाली जाती है व्यक्ति बैठ कर के विक्ट्री पोज में सेल्फी नहीं ले सकता भाई