ओ३म् (ॐ) या ओंकार को प्रणव कहा जाता है, ओम तीन शब्द 'अ' 'उ' 'म' से मिलकर बना है, जो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा त्रिलोक भूर्भुव: स्व: भूलोक भुव: लोक तथा स्वर्ग लोक का प्रतीक है।
ओ३म् को पद्मासन में बैठ कर जप करने से मन को शांति तथा एकाग्रता की प्राप्ति
होती है। वैज्ञानिकों तथा ज्योतिषियों को कहना है कि ओम तथा एकाक्षरी मंत्र का पाठ करने में दाँत, नाक, जीभ सबका उपयोग होता है यह शब्द कई बीमारियों से रक्षा करके शरीर के सात चक्र (कुंडलिनी) को जागृत करता है।
"ह्रीं" बीज मन्त्र
यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है। इसमें
ह = शिव, र = प्रक्रति, ई = महामाया, नाद विश्वमाता, बिंदु = दुःख हर्ता । इस प्रकार इस माया बीज का तात्पर्य हुआ - शिवयुक्त विश्वमाता मेरे दुःखो का हरण करें।
"श्रीं" बीज मन्त्र
इसमें चार स्वर व्यंजन शामिल है। इसमें
श = महालक्ष्मी, र = धन-ऐश्वर्य, ई = तुष्टि, अनुस्वार= दुःखहरण, नाद का तात्पर्य है, विश्वमाता। इस प्रकार 'श्रीं' बीज का अर्थ है - धन ऐश्वर्य-सम्पत्ति, तुष्टि पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी मेरे दुःखों का नाश करें।
ऐ बीज मंत्र
यह सरस्वती बीज है, इसमें ऐ सरस्वती, अनुस्वार = दुःखहरण, इस प्रकार "ऐं" बीज = का तात्पर्य हुआ - हे मां सरस्वती! मेरे दुःखों का अर्थात् अविद्या का नाश करें।
"क्रीं" बीज मन्त्र
इसमें चार स्वर व्यंजन शामिल है। इसमें क = काली, र = ब्रह्म, ई = कार महामाया, अनुस्वार = दुःखहरण, इस प्रकार 'क्रीं' बीज का अर्थ हुआ - ब्रह्म शक्ति सम्पन्न महामाया काली मेरे दु:खों का हरण करें।
"ह्रौं" बीज मन्त्र
यह ह्रौं प्रसाद बीज है। इसमें ह्र= शिव, औ = सदाशिव, अनुस्वार = दुःखहरण, इस बीज का अर्थ है - शिव तथा सदाशिव कृपा कर मेरे दुःखों का हरण करें।
"क्लीं" बीज मन्त्र
यह काम बीज है। इसमें क= कृष्ण अथवा काम, ल= इंद्र, ई = तुष्टिभाव, अनुस्वार सुखदाता, इस “क्लीं” बीज का अर्थ है - कामदेव रूप श्री कृष्ण भगवान मुझे सुख सौभाग्य और सुंदरता दें।
"गं" बीज मंत्र
यह गणपति बीज है। इसमें ग = गणेश, अनुस्वार = दुःखहर्ता, जिसका अर्थ है - श्री गणेश मेरे विघ्नों को, दुःखों को दूर करें।
"हूँ" बीज मन्त्र
यह "हूँ" कूर्च बीज है। इसमें ह = शिव, ॐ = भैरव, अनुस्वार = दुःखहर्ता, इसका अर्थ है - हे! असुर संहारक शिव मेरे दुःखों का नाश करें।
कई बीज मन्त्र है जो अपने आप में मन्त्र स्वरुप है।
"शं" शंकर बीज
"फ्रौं" हनुमत् बीज
"क्रौं" काली बीज
"दं" विष्णु बीज
"हं" आकाश बीज
"यं" अग्नि बीज
"" जल बीज
"लं" पृथ्वी बीज
"ज्ञं" ज्ञान बीज
"भ्रं" भैरव बीज
Credit goes to - astrotips (book)
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हनुमान चालीसा की वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और ज्योतिषी व्याख्या एवं इसके अद्भुत लाभ🧵
🔹 ध्वनि और आवृत्ति का प्रभाव, ऊर्जा
🔹श्वसन और हृदय स्वास्थ्य
🔹 ज्योतिष उपाय के साथ जानिये
हनुमान चालीसा, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह चालीसा 40 छंदों में भगवान हनुमान की स्तुति में लिखा गया एक ऐसा भक्ति स्तोत्र है। यह केवल एक प्रार्थना नहीं है, बल्कि भगवान हनुमानजी की महिमा और उनके गुणों का गान है। इसे न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बल्कि आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से भी गहन शोध और अध्ययन से मानसिक और शारीरिक और आध्यात्मिक विकास के लिए भी लाभकारी माना गया है।
हनुमान चालीसा का वैज्ञानिक महत्व
हनुमान चालीसा न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथ है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी अत्यधिक है। इसके पाठ से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन प्राप्त होता है। इसका नियमित जाप मन, शरीर और आत्मा को एकाकार करने में सहायक है।
यदि इसे वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो यह एक प्रकार का साउंड थेरेपी (Sound Therapy) है, जो हमारी समग्र स्वास्थ्य स्थिति को बेहतर बनाता है।जानिए इसके वैज्ञानिक महत्व को –
1. ध्वनि और आवृत्ति का प्रभाव (Sound and Frequency Effect)
हनुमान चालीसा का उच्चारण विशिष्ट ध्वनियों और लयबद्धता से युक्त है, जो हमारे मस्तिष्क और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इसके जाप से उत्पन्न ध्वनि तरंगें अल्फा वेव्स (Alpha Waves) उत्पन्न करती हैं, जो तनाव कम करने और मानसिक शांति प्रदान करने में सहायक होती हैं।
संस्कृत और अवधी शब्दों का उच्चारण शरीर की कोशिकाओं को कंपन करता है, जिससे ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।
2. मनोवैज्ञानिक लाभ (Psychological Benefits)
हनुमान चालीसा का नियमित पाठ डर, चिंता और अवसाद को कम करने में मदद करता है। इसमें ऐसे शब्द और कथन हैं जो मानसिक साहस और आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं, जैसे
“नासे रोग हरे सब पीरा”
“मन क्रम वचन ध्यान जो लावे”
ये पंक्तियाँ हमारे अवचेतन मन को सकारात्मकता से भर देती हैं।
उड़िया बाबाजी महाराज ने कामाख्या में मां जगदंबा की आराधना की तो मां साक्षात प्रकट हुईं और उनको एकाकार कर लिया।
परम पूज्यपाद श्री उड़िया बाबाजी महाराज भारत के सिद्ध संतों में एक थे। उनका अद्भुत जीवन संपूर्ण समाज के लिए एक आदर्श रूप था। उनकी कृपा से असंख्य लोगों में भक्ति और ज्ञान की जागृति हुई। आज भी उनकी परंपरा में परमपूज्य स्वामी श्री अखंडानंद सरस्वती एवं उनके कृपा पात्र जगदगुरु शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती के आशीर्वाद से वर्तमान में श्री उड़िया बाबा आश्रम वृंदावन धाम में सुचारू रूप से चल रहा है।
उनके समकालीन संतों में पूज्य स्वामी श्री करपात्री जी महाराज, श्री हरि बाबा जी, श्रीश्री मां आनंदमई, स्वामी श्री गंगेश्वरानंद जी महाराज, स्वामी श्री शरणानंद जी व अन्यान्य महान संत उनके साथ वेदांत सत्संग करते रहे। श्री उड़िया बाबा जी के अनन्य भक्तों में जगदगुरु शंकराचार्य श्री शांतानंद सरस्वती, स्वामी श्री प्रबोधानंद सरस्वती, महर्षि कार्तिकेय जी, श्री पलटू बाबा जी, गोवर्धन के सिद्ध संत पंडित गया प्रसाद जी, स्वामी सिद्धेश्वराश्रम जी व अन्य संतों के नाम उल्लेखनीय हैं।
परम पूज्यपाद श्री उड़िया बाबा जी महाराज को बाल्यकाल से ही अनंत सिद्धियां प्राप्त थीं। मां अन्नपूर्णा उनको सिद्ध थीं। कैसा भी बीहड़ जंगल हो, सभी लोगों के भोजन की व्यवस्था वह अपनी सिद्धि से कर दिया करते थे। जहां कहीं भी वे रहते बराबर भंडारों का तांता लगा रहता था। उन्होंने अनेक भक्तों को प्राण दान दिया। रोग मुक्त किया। आर्थिक संकटों से उवारा एवं अन्य आपत्तियों से रक्षा की। भक्त उनका भगवान शिव के भाव से रुद्राभिषेक करते तो कभी कृष्ण रूप में उनकी झांकियां सजाते। कई उत्सवों पर भक्त इष्ट रूप में उनका पूजन- अर्चन करते थे। वह भक्तों के लिए सबकुछ करते हुए भी इस भाव से रहते थे कि जैसे उन्होंने कुछ नहीं किया।
उड़िया बाबाजी महाराज ने कामाख्या में मां जगदंबा की आराधना की तो मां साक्षात प्रकट हुईं और उनको एकाकार कर लिया। कालांतर में वह नित्य निरंतर समाधि में लीन रहते थे परमपूज्य स्वामी श्री अखंडानंद जी महाराज के कथनानुसार उड़िया बाबाजी का स्वरूप अलौकिक था। बाबा के विचार का उत्कर्ष, चित्त की समाधि, जीवन की प्रेममयता और रहने की सादगी पास रहकर देखने योग्य थी। भक्त लोग उनको सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान मानते थे। बहुतों के तो वह महज़ सद्गुरु ही नहीं बल्कि इष्टदेव भी थे। उन्होंने अपने निजी संस्मरण में एक अद्भुत प्रसंग का उल्लेख किया है।
18 पुराणों का संकलन महृर्षि वेदव्यास जी ने संस्कृत भाषा में किया है। 🧵
पुराणों में दी गई जानकारी कौनसी है !
कृपया पूरा #thread अवश्य अंत तक पढ़े
हिन्दू धर्म के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रन्थों में एक है पुराण। ‘पुराण’ का शाब्दिक अर्थ है, ‘प्राचीन’ या ‘पुराना’। पुराणों की रचना मुख्यतः संस्कृत में हुई है, किन्तु कुछ पुराण क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचे गए हैं। इनमें हिन्दू देवी-देवताओं का और पौराणिक मिथकों का बहुत अच्छा वर्णन है। इनकी भाषा सरल और कथा कहानी की तरह है। पुराणों की कुल संख्या अठारह है।
इसमें अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गयी हैं। पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएँ, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है। विभिन्न पुराणों की विषय-वस्तु में बहुत अधिक असमानता है। इतना ही नहीं, एक ही पुराण के कई-कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं जो परस्पर भिन्न-भिन्न हैं। हिन्दू पुराणों के रचनाकार अज्ञात हैं और ऐसा लगता है कि कई रचनाकारों ने कई शताब्दियों में इनकी रचना की है।
महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः पुराण समर्पित किये गये हैं। आइए जानते है 18 पुराणों के बारे में।
1. ब्रह्म पुराण
ब्रह्म पुराण’ गणना की दृष्टि से सर्वप्रथम गिना जाता है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि यह प्राचीनतम है। काल की दृष्टि से इसकी रचना बहुत बाद में हुई है। इस पुराण में साकार ब्रह्म की उपासना का विधान है। इसमें ‘ब्रह्म’ को सर्वोपरि माना गया है। इसीलिए इस पुराण को प्रथम स्थान दिया गया है। कर्मकाण्ड के बढ़ जाने से जो विकृतियां तत्कालीन समाज में फैल गई थीं, उनका विस्तृत वर्णन भी इस पुराण में मिलता है। यह समस्त विश्व ब्रह्म की इच्छा का ही परिणाम है। इसीलिए उसकी पूजा सर्वप्रथम की जाती है।
इस पुराण में 246 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, छठवें, आठवें, बारहवें और मंगल को कर्ज का कारक ग्रह माना जाता है। कुंडली में मंगल ग्रह के कमजोर होने पर और मंगल के पाप ग्रह से जुड़ने पर या छठवें, आठवें और बारहवें में नीच स्थिति में होने पर यानी मंगल अगर कर्क राशि में हैं तो व्यक्ति ज्यादातर समय कर्ज में रहता है। अगर मंगल पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़े तो कर्ज होता है लेकिन मुश्किल से उतरता है। शास्त्रों में मंगलवार और बुधवार के दिन कर्ज के लेन देन को वर्जित बताया गया है। इन दिनों कर्ज लेने से व्यक्ति कर्ज आसानी से चुका नहीं पाता।
इस मंदिर में करें पूजा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, उज्जैन में स्थित ऋणमुक्तेश्वर महादेव की शनिवार के दिन पूजा अर्चना करें। यहां पुजारी पूजा करवाते हैं और शनिवार के दिन की गई पूजा को पीली पूजा कहते हैं। मान्यता है कि पीली पूजा करने से बहुत जल्द कर्ज से मुक्ति मिल जाती है। पीली पूजा में सभी तरह की पूजा की चीजें पीली होती हैं, जिनको महादेव को अर्पित किया जाता है।
कहीं जानें-अनजानें में आप तो नहीं ख़रीद रहें है हलाल प्रॉडक्ट !🧵
अब तो दवाईयों से लेकर सौंदर्य उत्पाद जैसे शैम्पू, और लिपस्टिक,अस्पतालों से लेकर फाइव स्टार होटल तक , रियल एस्टेट से लेकर हलाल टूरिज्म और तो और हलाल डेटिंग, यहाँ तक की शाकाहारी प्रॉडक्ट बेसन, आटा, मैदा जैसे शाकाहारी उत्पादों तक के हलाल सर्टिफिकेशन पर पहुँच गई है। हद तो तब हो गई जब आयुर्वेदिक औषधियों तक के लिए भी हलाल सर्टिफिकेट !
हलाल सर्टिफिकेट मांस तक सीमित ना होकर रेस्ट्रोरेंट या फाइव स्टार होटलो में परोसी जाने वाली हर चीज जैसे तेल, मसाले चावल, दाल सब कुछ हलाल सर्टिफिकेट की होनी चाहिए। और जब यह हलाल सर्टिफाइड शाकाहार या मांसाहार रेल या विमानों में परोसा जाता है तो हिन्दुओं , सिखों और गैर मुस्लिम को भी परोसा जाता है।
हलाल प्रमाणित उत्पाद का मतलब है कि उत्पाद इस्लामी कानून के अनुसार स्वीकार्य या स्वीकार्य है। इस प्रमाणन को प्राप्त करने के लिए उत्पादों के लिए, उन्हें एक स्वीकार्य स्रोत से होना चाहिए जैसे कि गाय या चिकन और इन कानूनों के अनुसार वध।
ये गैर मुस्लिम जिनकी धार्मिक मान्यताएं हलाल के विपरीत झटका मांस की इजाजत देती हैं वो भी इसी का सेवन करने के लिए विवश हो जाते हैं। लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात जो समझने वाली है वो यह कि इस हलाल सर्टिफिकेट को लेने के लिए भारी भरकम रकम देनी पड़ती है जो गैर सरकारी मुस्लिम संगठनों की झोली में जाती है
वास्तु शास्त्र के वैज्ञानिक रहस्य और मानव जीवन पर प्रभाव 🧵
#thread
🔹 वास्तु शास्त्र की प्राचीनता
🔹 त्रेता युग में वास्तु शास्त्र
🔹 द्वापर युग में वास्तु शास्त्र
🔹 वास्तु पुरुष, वास्तु शास्त्र में दिशाओं का महत्त्व
वास्तु शास्त्र के वैज्ञानिक रहस्यों का मानव जीवन पर प्रभाव पड़ता है । वास्तु शास्त्र अद्भुत विज्ञान और रहस्य है। यह एक प्राचीन विज्ञान है। वेदों और पुराणों में वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का वर्णन है। वास्तु शास्त्र अथर्ववेद का अंग है। वेदों में वास्तुशान्ति के अनेक मंत्र उपलब्ध हैं। अतः वास्तु शास्त्र उतना ही प्राचीन है जितने वेद प्राचीन हैं ।
वास्तु शास्त्र का सम्बन्ध दिशाओं ऊर्जा से है। इसमें दिशाओं को आधार बनाकर भूखण्ड, भवन, मन्दिर या निर्माण के आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक किया जाता है। जिससे मानव जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव ना डाल सके और सकारात्मक प्रभाव पड़े।
इस सृष्टि के साथ मानव जीवन भी पञ्च महाभूत – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है और यही तत्व जीवन और सृष्टि को प्रभावित करते हैं। इसलिए वास्तु शास्त्र अद्भुत विज्ञान और रहस्य से भरा हुआ है।
वास्तु शास्त्र की प्राचीनता
आजकल नए नए विद्वान इसको architecture बताते हैं। जैसे की वो इसके ज्ञाता हो। उनको वास्तु शास्त्र का अध्ययन करना चाहिए।
वास्तु शास्त्र में शिल्प और ज्योतिष का समावेश होता है। इसकी प्राचीनता का मैं आपको प्रमाण देते है
त्रेता युग में वास्तु शास्त्र
त्रेता युग में भगवान श्री राम ने अनेक स्थानों पर वास्तु शास्त्र का प्रयोग किया था। भगवान श्री राम ने रावण से प्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग रामेश्वरम की वास्तु प्रतिष्ठा कराई थी।
भगवान श्री राम ने वनवास के समय पंचवटी में घास फूस से अपनी झोपड़ी बनाई। वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार वायु और प्रकाश की समुचित व्यवस्था को देख कर श्री राम प्रसन्न हो
हे लक्ष्मण ! हम इस पर्णशाला के अधिष्ठाता वास्तु देवता का पूजन यजन करेंगे। क्योंकि दीर्घ जीवन की इच्छा करने वाले पुरुषों को वास्तुशांति अवश्य करनी चाहिए। वास्तु शास्त्र की प्रमाणिकता एवम् उपयोगिता का इससे उत्कृष्ट उदाहरण और क्या हो सकता हैं।