एकाग्र चित्त होकर जरूर से पढ़े और साथ ही उन लोगों को भी भेजें जो अतीत में छलने से छुपाए गये सत्य से वंचित रहे।
इतिहास की एक अविस्मरणीय दुर्घटना:
१९२० में अचानक भारत की तमाम मस्जिदों से दो पुस्तकें वितरित की जाने लगी! एक पुस्तक का नाम था “कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी", (1/17)
और दूसरी पुस्तक का नाम था "उन्नीसवीं सदी का लंपट महर्षि"! ये दोनों पुस्तकें "अनाम" थीं! इसमें किसी लेखक या प्रकाशक का नाम नहीं था, और इन दोनों पुस्तकों में भगवान श्री कृष्ण, हिंदू धर्म, इत्यादि पर बेहद अश्लील, बेहद घिनौनी बातें लिखी गई थीं!
और इन पुस्तकों में तमाम देवी- (2/17)
देवताओं के बेहद अश्लील रेखाचित्र भी बनाए गए थे!
और धीरे-धीरे, ये दोनों पुस्तकों को भारत की हर एक मस्जिद में से वितरित की जाने लगीं!
यह बात जब गांधी तक पहुंची, तो गांधी ने इसे "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" की बात बता कर, गौण कर दिया, और कहा भारत में सब को अपनी बात रखने का (3/17)
हक है!
लेकिन इन दोनों पुस्तकों से, भारत का जनमानस बहुत उबल रहा था!
फिर १९२३ में लाहौर स्थित "राजपाल प्रकाशक" के मालिक "महाशय राजपाल जी" ने एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसका नाम था "रंगीला रसूल"!
उस पुस्तक के लेखक का नाम गुप्त रखा गया था, और लेखक की जगह लिखा था "दूध का दूध, (4/17)
और पानी का पानी"।
हालांकि उस पुस्तक के असली लेखक पंडित चंपूपति थे, जो इस्लाम के जाने-माने विद्वान थे!
और सबसे अच्छी बात यह थी, कि उस पुस्तक में कहीं कोई झूठ नहीं था, बल्कि तमाम सबूतों के साथ, बकायदा आयत नंबर, हदीस नंबर, इत्यादि देकर, कई बातें लिखी गई थीं!
देढ वर्षों तक (5/17)
"रंगीला रसूल" बिकता रहा पूरे भारत में! कहीं, कोई बवाल नहीं हुआ! लेकिन एक दिन अचानक २८ मई १९२४ को गांधी ने अपने समाचारपत्र "यंग इंडिया" में एक लंबा-चौड़ा लेख लिखकर, "रंगीला रसूल" पुस्तक की खूब निंदा की, और अंत में ३ पंक्तियां ऐसी लिखी:
"मुसलमानों को स्वयं ऐसी पुस्तक (6/17)
लिखने वालों को सजा देनी चाहिए!"
गांधी का ये लेख पढ़कर, पूरे भारत के मुसलमान भड़क गए! और "राजपाल प्रकाशक" के मालिक महाशय राजपाल जी के ऊपर ३ वर्षों में ५ बार हमले हुए, लेकिन गांधी ने एक बार भी हमले की निंदा नहीं की!
मजे की बात यह कि कुछ मुस्लिम विद्वानों ने उस पुस्तक (7/17)
"रंगीला रसूल" का मामला लाहौर उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) में दायर किया!
हाईकोर्ट ने चार इस्लामिक विद्वानों को न्यायालय में खड़ा करके, उनसे पूछा कि इस पुस्तक की कौन सी पंक्ति सही नहीं है, आप वह बता दीजिए!
चारों इस्लामिक विद्वान इस बात पर सहमत थे, कि इस पुस्तक में कोई गलत (8/17)
बात नहीं लिखी गई है!
फिर लाहौर उच्च न्यायालय ने महाशय राजपाल जी पर मुकदमा खारिज कर दिया! और उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया...!!
फिर उसके बाद, ३ अगस्त १९२४ को गांधी ने "यंग इंडिया" समाचारपत्र में एक और भड़काने वाला लेख लिखा, और इस लेख में उन्होंने इशारों इशारों में ऐसा लिखा (9/17)
था कि "जब व्यक्ति को न्यायालयों से न्याय नहीं मिले, तब उसे अपने आप प्रयास करके न्याय ले लेना चाहिए!"
उसके बाद महाशय राजपाल जी के ऊपर दो बार और हमले के प्रयास हुए, और अंत में ६ अप्रैल १९२९ का हमला जानलेवा साबित हुआ, जिसमें मोहम्मद इल्म दीन नामक एक युवक ने, गदा से महाशय (10/17)
राजपाल जी के ऊपर कई वार किए, जिनसे उनकी जान चली गई!
जिस दिन उनकी हत्या हुई, उसके ४ दिन बाद गांधी लाहौर में थे, लेकिन गांधी महाशय राजपाल जी के घर पर शोक प्रकट करने नहीं गए, और ना ही अपने किसी संपादकीय में महाशय राजपाल जी की हत्या की निंदा की!
उसके बाद, अंग्रेजों ने (11/17)
मुकदमा चलाकर, मात्र ६ महीने में महाशय राजपाल जी के हत्यारे इल्म दीन को फांसी की सजा सुना दी।
और वो भी इसलिए कि इस देश में पूरा हिंदू समाज उबल उठा था, और अंग्रेजो को लगा कि यदि उन्होंने जल्दी फांसी नहीं दी, तब अंग्रेजी शासन को भी खतरा हो सकता है!
उसके बाद ४ जून १९२९ को (12/17)
गांधी ने अंग्रेज वायसराय को चिट्ठी लिखकर महाशय राजपाल जी के हत्यारे की फांसी की सजा को माफ करने का अनुरोध किया था!
और उसके अगले दिन, अपने समाचारपत्र "यंग इंडिया" में एक लेख लिखा था, जिसमें गांधी ने यह साबित करने का प्रयत्न किया थी कि यह हत्यारा तो निर्दोष है, नादान है, (13/17)
क्यों कि उसे अपने धर्म का अपमान सहन नहीं हुआ, और उसने गुस्से में आकर यह हत्या करने का निर्णय लिया!
दूसरी तरफ, तब के जाने-माने बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्नाह ने भी, लाहौर हाईकोर्ट में बकायदा एक बैरिस्टर की हैसियत से, इस मुकदमे में पैरवी करते हुए, यह कहा था, कि अपराधी (14/17)
मात्र १९ वर्ष का लड़का है, लेकिन इसने जघन्य अपराध किया है! इसके अपराध को कम नहीं समझा जा सकता! लेकिन इसकी आयु को देखते हुए, इसकी फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दी जाए, या फिर इसे काले पानी जेल में भेज दिया जाए!
लेकिन अंग्रेजों ने ३१ अक्टूबर १९२९ को महाशय राजपाल जी के (15/17)
हत्यारे मोहम्मद इल्म दीन को लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया!
२ नवंबर १९२९ को गांधी ने "यंग इंडिया" में इल्म दीन को फांसी देने को इतिहास का काला दिन लिखा!
अब आप स्वयं समझ सकते है कि गाँधी किस किस्म के मानव थे!
यू तो विरासत में हमे ऐसे भी सीएम मिले हैं... जो प्रेस रिलीज करते थे। चाँदी का मुकुट और सोने का सिंघासन भेट करने वालो के परिवार में दो-दो या तीन लोकसभा टिकट तक मिल जाते थे। सारे पार्टी के विधायक, सासंद, पधाधिकारी एक पाती में (1/8)
बैठते थे और महरानी अपना सिंघासन लगाती थी और जीवित अपनी मुर्तिया भी सरकारी पैसे से लगाती थी। जबकी वो दलित की बेटी हैं।
हमे ऐसे भी सीएम मिले हैं जब राज्य जल रहा हो... तब सैफई में ठुमके लगते थे। मजे की बात हैं ये उसी पार्टी के द्वारा स्थापित सीएम थे... जिन्होंने जनता दल (2/8)
बस इसलिये तोड़ा था क्युकी छोटे चौधरी को परिवारवाद के नाम पर सूबे का सीएम बनते नही देख सकते थे। दूसरी तरफ विरासत में ऐसे भी पीएम मिले हैं... जो खानदानी रईसों की शाही भोजो में शिष्टाचार वश गए जरूर हैं मगर जिस पाती में बैठकर खाना खाये हैं... उस पर भाजपा के धुर विरोधी (3/8)
देशद्रोही जोड़ो यात्रा से पप्पू ने देश दुनिया के सारे देश विरोधी एक प्लेटफार्म पर लाने का काम किया।
जॉर्ज सोरेस, BBC या हिंडेनबर्ग को दिक्कत भारत से है अड़ानी से नही, अड़ानी को मोहरा बना के ये 'भारत में लोकतांत्रिक पुनरुद्धार' को रोकना चाहते थे उसे पूर्ण रूप से बाधित (1/4)
करना चाहते हैं।
आज अडानी रिपोर्ट का इस्तेमाल कर हताश जॉर्ज सोरोस खुलकर मोदी सरकार के खिलाफ आ गए हैं। आने वाले चुनाव वाकई दिलचस्प है ये चुनाव, मात्र चुनाव भर नही होगा ये चुनाव पानीपत का चौथा युद्ध सरीखा होगा.. भारतीय की सेना का नेतृत्व अनुभवी प्रधानमंत्री मोदी कर रहे है (2/4)
जिनकी सेना में एस जयशंकर, अजीत डोभाल, राजनाथ सिंह, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, हेमंत बिस्वाशर्मा जैसे श्रेष्ठ योद्धा है और विरोधी सेना में देश के सारे वामी, कामी,आपिए, सापिये, टुकड़े टुकड़े गैंग, गज़वा ए हिंद वाली गैंग, जेहादी, और विदेश में बसे वे सभी तत्व जो भारत से (3/4)
जितने भी फ्रॉड गुरु होते हैं ज्यादातर में एक बात आपको कॉमन मिलेगी कि उनमें से कोई भी जन्म से ब्राह्मण नहीं होता..
मदनी जब अपने मंच से सनातनीयो, सिखों और जैनों को गाली दे रहा था, सब सभी संत मंच से चले गए लेकिन यह धूर्त कालनेमि चिदानंद सरस्वती उर्फ संतोष अरोड़ा मंच पर (1/6)
बैठा रहा।
यह कालनेमि संतोष अरोड़ा उर्फ चिदानन्द सरस्वती अपने जवानी के दिनों में यूरोप कमाने के लिए गया था जैसा कि हर पंजाबी युवक का एक सपना होता है। वहां जाकर संतोष अरोड़ा उर्फ चिदानंद सरस्वती ने देखा कि मेहनत मजदूरी करके पैसा कमाने में बहुत मुश्किल है, फिर इसने भारत (2/6)
आकर संत का चोला ओढ़ लिया और यह ज्यादातर ध्यान यूरोप में दिया खासकर यूरोप की नौजवान लड़कियों में।
इसके साथ एक स्विट्जरलैंड की लड़की रहती है जो इसकी निजी सचिव है।
ऑफिस के आश्रम में जाएंगे तब आपको स्वीटजरलैंड इटली इत्यादि की नौजवान लड़कियां मिलेंगी। इसका आचरण और इसका तौर (3/6)
सन्त रविदास मुझे सदैव प्रिय रहे। हिन्द महासागर के तीर पर बसे उस वैचारिक महासागर जिसे सत्य-सनातन कहते हैं, में किसी एक नदी का जल नहीं है। उसमें हजार धाराएं आ कर गिरी हैं। उसकी मुख्य वैदिक धारा में भी शैव, वैष्णव और शाक्त की त्रिवेणी है, तो (1/10)
उसी के साथ साथ कबीरपंथ, नाथपन्थ, शरभंग, सखी, लिंगायत, और जाने कितनी समानांतर धाराएं बहती रही हैं। इनमें आपसी द्वंद भी रहा, वैचारिक असहमतियां भी रहीं, पर एक दूसरे को चोटिल करने या समाप्त करने का घिनौना भाव नहीं रहा। सब एक सुंदर बगिया के रङ्ग बिरंगे फूल थे।
सन्त रविदास (2/10)
ऐसी ही एक धारा के जनक हैं, जो दिखती तो थोड़ी अलग है पर है नहीं। वे भी राम और कृष्ण के आदर्शों की बात करते हैं, वे भी वेद और पुराणों की ही बात करते हैं। वे ईश्वर की भक्ति करने और बिना दूसरों को चोट पहुँचाए जीने की बात कहते हैं। यही तो सनातन का मूल स्वर है।
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का प्रयोग करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है। आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक करायें तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।
(1/23)
रूद्राभिषेक अनेक पदार्थों से किया जाता है और हर पदार्थ से किया गया रुद्राभिषेक अलग फल देने में सक्षम है जो की इस प्रकार हैं:-
1) जल से अभिषेक:
– हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें।
– भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें।
(2/23)
– ताम्बे के पात्र में ‘शुद्ध जल’ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें।
– ॐ इन्द्राय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें।
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें।
– शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें।
(3/23)
राम को अपने अपने तरीके से समझने का हक सबको है। लेकिन राम के प्रति किसी के समझ को तिरस्कृत करने की हमें सख्त अनुमति नहीं है। बाबा तुलसीदास ने राम के मानस रूप को रामचरितमानस में गाया है। सांसारिक समझ की एक जिज्ञासा भरी प्रश्न है, कि क्या रामचरितमानस तुलसीदास जी की कल्पना है? (1/11)
और जब यही प्रश्न द्वेष का रूप ले लेता है तब यह सवाल किसी चंद्रशेखर और स्वामी प्रसाद मौर्य का होता है।
मुरारी बापू ने बड़ी शालीनता और सत्य निष्ठा से उत्तर दिया है: रूप, नाम, लीला और धाम को जब किसी कल्पना के स्तर पर देखोगे तो धोखे का सौदा होगा। यह कब तक चलेगा? कल्पना लंबी (2/11)
नहीं चलती। शाश्वत तो सत्य ही होता है। हां कभी-कभी महापुरुष बोलते हैं तो इसमें अपना कुछ जरूर जोड़ देते हैं। लेकिन मूल में सत्य होता है। मानस बुद्धत्व पर कथा वाचन करते हुए साथ साथ एक और समानांतर प्रश्न ले रहे हैं, कि मुरारी बापू अपनी कल्पना से बोलते हैं या तुलसीदास जी के (3/11)