शिवराज मामा के नेतृत्व में सत्ताधारी हिंदू हितैषी कमल दल ने एक चुनाव के पहले एक योजना निकाली है "लाड़ली बहना योजना"।
इस योजना में महिलाओं को प्रति माह 1000 रुपए दिए जाएंगे। इस योजना का लाभ लेने के लिए बैंकों के बाहर, सरकारी कार्यालयों के बाहर माताओं की लंबी लाइनें लगी हुई हैं।
अब यहां से शुरू होता है असली खेल, लाड़ली बहना योजना की आड़ में खेला जा रहा तृप्तिकरण का असली खेल, उनके "कागज" बनाने का असली खेल।
"उनके इलाकों में" हिंदू हितैषी दल के नेता शिविर/कैंप लगा रहे हैं ताकि इस योजना के लिए "उनके" आवश्यक "कागज" (कागज को ध्यान में रखियेगा) बनाए जा सकें।
होना तो थे चाहिए था कि लाड़ली बहना योजना में एक शर्त रख दी जाती की जिनके दो से अधिक बच्चे हैं उन महिलाओं को इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा। लेकिन नहीं हिंदू हितैषी कमल दल ने ऐसा नहीं किया। क्या कारण रहा होगा ये आप भली भांति जानते हैं।
वैसे मुख्यमंत्री बनने के बाद मामा जी को जय श्रीराम का नारा लगाते देखा क्या? टोपी लगाकर मस्जिदों की चौखट चूमते तो सबने देखा है।
छोड़ो ये सब मूल मुद्दे पर आते हैं।
अच्छा.... तो जो लोग "कागज" बनवाने के लिए लाइन में लगे हुए हैं ये वही लोग हैं जो शाहीन बाग जैसे स्थानों पर बैठकर नारा लगाते थे कि "कागज नहीं दिखाएंगे"।
CAA, NRC लाए ही गये थे सबके कागज चेक करने के लिए लेकिन जब "हिंदू हितैषी कमल दल" ही "उनके" कागज बनाने में जुटा तो फिर कोई औचित्य नहीं रह जाता कागज-वागज चैक करने का।
अब तो ऐसा लगने लगा है कि सरकारी योजनाएं निकाली ही इसलिए जा रही हैं कि "उनके" कागज बनाए जा सके।
असम में NRC आने पर क्या हुआ था? यही तो हुआ था कि बहुत सारे घुसपैठियों के नाम लिस्ट में जुड़ गए थे, उनके पास कागज कांग्रेस के जमाने में बने कागज निकल आए थे। इसलिए तो ठंडे बस्ते में डाल दिया उसे।
अब अगर NRC सारे देश में लागू हुआ तब क्या होगा? होना क्या है "उनके" पास तृप्तिकरण के अमृतकाल में बने कागज निकलेंगे और क्या।
घुसपैठिए वैध रुप से भारत के नागरिक बन जाएंगे और क्या।
तृप्तिकरण का अमृतकाल चल रहा है और हिंदुओं का संकटकाल।
संकट मोचन हनुमान जी महाराज के चरणों में प्रार्थना है कि सनातनियों के संकट को काटें।
अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार, धन्यवाद 🙏🙏
जब छोटे थे तब हिंदू राष्ट्र, अखंड भारत जैसे शब्द बहुत आकर्षित किया करते थे लेकिन जब सामाजिक और जमीनी सच्चाई के बारे में थोड़ा बहुत पता चला तब समझ आया कि इन शब्दों का प्रयोग एक सांस्कृतिक संगठन की राजनीतिक शाखा मात्र अपनी राजनीतिक स्वार्थ सिद्धी हेतु कर रही है।
न तो उस सांस्कृतिक संगठन का और न ही उसकी राजनीतिक शाखा का हिंदू राष्ट्र, अखंड भारत, हिंदू हित जैसे शब्दों से कोई लेना-देना है।
वो राजनीतिक दल अगर आपका हित चिंतक होता तो आपको दिल्ली में जनवरी 2020 में दो दिनों के लिए मरने के लिए नहीं छोड़ता।
शांतिप्रिय भाईयों को एक पूरा देश देने के बाद यदि आपके अपने ही देश में रामनवमी की शोभायात्रा को "अति विशिष्ट स्थानों" से ये कहकर नहीं निकलने दिया जाता कि "ये तो हमारा इलाका है" या शोभायात्रा निकालने पर पत्थरबाजी की जाती है तो ऐसे में "हिंदू राष्ट्र" दूर की कौड़ी ही प्रतित होता है।
मात्र मैं, मेरा परिवार और मेरी पार्टी। इससे आगे कुछ सूझता ही नहीं सिर से लेकर पांव तक अंहकार में डूबे परिवार विशेष को। स्वयं के सिर पर सामंतवाद सवार है और बात की जा रही है लोकतंत्र को बचाने की।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत के प्रधानमंत्री को दस साल... जी हां पूरे दस साल अपनी अंगुली पर नचाने वाले लोग लोकतंत्र की दुहाई देते कतई अच्छे नहीं लगते।
The Red Sari नामक पुस्तक पर प्रतिबंध लगवा दिया था इस परिवार विशेष ने अपनी कठपुतली सरकार से कहकर। ये बात करेंगे तानाशाही की? ये बात करेंगे लोकतंत्र की?
जब वो क्रिकेट की दुनिया में आया तो क्रिकेट पंडितों ने उसे "क्रिकेट के भगवान" का उत्तराधिकारी बताया।
उस बात को उसने सही भी सिद्ध किया खूब चौके-छक्के लगाए, दे दनादन शतक लगाए। अपने समय के Fab Four खिलाड़ीयों में भी सबसे आगे खड़ा दिखाई देने लगा।
एटिट्यूड तो उसमें पहले से था ही और समय भी अच्छा चल रहा था उसका... अभिमान हो गया उसे, सामान्य बात है समय अच्छा होता है तो प्राणी इसी अभिमान जनति भ्रम में जीने लगता है कि जो कुछ हो रहा है वही कर रहा है भगवान समझने लगता है अपने आप को, वो भी अपने आपको भगवान समझने लगा था संभवतः।
ठीक से तो याद नहीं लेकिन शायद उसके अच्छे समय में ही एक प्रश्न पूछा गया था उससे और उसके उत्तर में उसने कहा था "Do I look पूजा-पाठ टाइप्स? और एक अभिमानी ठहाका लगाया उसने.... साथ बैठे पत्रकारों ने भी।
मैस्सी के फुटबॉल विश्वकप जीतने के बाद से #CristianoRonaldo के प्रशंसकों का पारा सातवें आसमान पर है। #Messi की जीत को वे लोग पचा ही नहीं पा रहे हैं। कुछ ने तो ये तक कह डाला है कि ये विश्व कप मैस्सी को जीताने के लिए ही आयोजित किया गया था
इस प्रकार के आरोप लगा रहे #CR7 के फैंस ने क्या कभी इस बात पर ध्यान दिया कि मैस्सी को विश्वकप जीताने के लिए उसकी टीम के खिलाड़ी और कोच जी-जान लगाने की तैयारी करके आए थे। स्वयं मैस्सी भी एड़ी चोटी का जोर लगाने के लिए आए थे और मैस्सी सहित अर्जेंटीना के खिलाड़ीयों ने ऐसा किया भी।
लेकिन #CristianoRonaldo का क्या? खराब फॉर्म के चलते मैनचेस्टर यूनाइटेड के कोच ने रोनाल्डो को बैंच पर बिठाया इस फ्रस्ट्रेशन में विश्व कप प्रारंभ होने के पूर्व एक विस्फोट साक्षात्कार में रोनाल्डो ने अपने क्लब (मैनचेस्टर यूनाइटेड) को गरियाया।
ये संभवतः #Messi𓃵 का अंतिम विश्वकप है। मैस्सी को विश्व कप जीताने के लिए अर्जेंटीना की टीम ने सब कुछ झोंक दिया। अर्जेंटीना की फुटबॉल टीम अर्जेंटीना को विश्वकप जीताने से ज्यादा मैस्सी को विश्व कप जीताने के लिए खेल रही थी।
अर्जेंटीना के खिलाड़ीयों की इस भावना का इसी से अनुमान लगाइए कि साउदी अरब से पहला मैच हारने के बाद भी उन्होंने मनोबल गिरने नहीं दिया। हार को भुलाकर उन्होंने पोलैंड,मैक्सिको, आस्ट्रेलिया,नीदरलैंड,क्रोशिया और अंत में फ्रांस को हराकर अर्जेंटीना का, #Messi𓃵 का सपना पूरा किया।
#Meesi ने स्वयं भी शानदार प्रदर्शन किया। गोल किए भी और गोल करने के अवसर बनाए भी।
मैस्सी ने फाइनल में दो गोल सहित पूरे टूर्नामेंट में 7 गोल किए हालांकि 4 गोल पेनाल्टी पर किए गए ( पेनल्टी शूटआउट नहीं), 3 गोल असिस्ट किए।
फुटबॉल विश्वकप का फाइनल बिल्कुल फाइनल जैसा रहा। जिस रोमांच की आशा लेकर दर्शक फाइनल मैच देखता है वो रोमांच इस फाइनल में देखने को मिला हालांकि पहले 78वें मिनट तक ऐसा कुछ नहीं था।
पहले 78वें मिनट तक मैच अर्जेंटीना की ओर झुका रहा और एक साधारण सा मैच खेला जा रहा। लेकिन मैच के 79वें मिनट से सबकुछ बदल गया। मैच ने जब करवट बदली तो मैस्सी के प्रशंसकों को भी सिर पकड़ने के लिए विवश होना पड़ा।
इसके बाद मैच में वो सबकुछ हुआ जिसे देखने के लिए हजारों दर्शक स्टेडियम पहुंचे थे, जिसे देखने के लिए विश्व भर के करोड़ों लोग अपने-अपने टीवी सेटों या मोबाइल से चिपके हुए थे।