मेडल के साथ ईनाम में मिले 10 करोड़ के नोट भी गंगा में बहा दिए।
कल का एक अजीब वाक़या सुनिए
पहलवानों ने अपने मेडल गंगा में प्रवाहित करने की घोषणा कर दी थी। मुझे उनसे सहानुभूति है और मैंने इस गंगा-प्रवाह वाली सूचना और पहलवानों के समर्थन में अपनी
कई लोगों ने like और comments लिखकर अपना समर्थन दिखाने लगे। मेरी friend-list में कुछ अंधभक्त और मूर्ख किस्म के लोग भी हैं। ये लोग सरकार की आलोचना होने वाली प्रत्येक स्थिति में, बिना फीस के पालतू वकील की तरह, विरोधी सवाल और बयानबाज़ी करते हैं
क्या मुद्दा है, उसकी क्या संवेदनशीलता है, क्या प्रतिक्रिया देनी चाहिए, ऐसी बातों से इन लोगों को कोई मतलब नहीं होता। इनको सिर्फ अपनी वफ़ादारी दिखाने से मतलब है।
ऐसे ही मेरे एक अंधभक्त-मित्र ने मेरी फ़ेसबुक-वॉल पर तुरंत व्यंग्यात्मक कमेंट किया
क्या ये मेडलों के साथ सरकार से मिले पैसे भी गंगा में बहायेंगे ?
कल मैं भी थोड़ा फुर्सत में था तो मैंने कमेंट लिखने वाले मित्र को फोन मिला लिया। उनकी पत्नी बहुत सुंदर है और दिल्ली के एक बड़े सरकारी अस्पताल में डॉक्टर है। कुछ दिन पहले उनकी पत्नी को विशिष्ट-सेवाओं
फोन मिलाकर मैंने हाल-चाल, कुशल-मंगल पूछा और उसके बाद सीधे उनसे पूछ लिया कि मान लो हमारी भाभी जी को स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा कोई मंत्री या राजनीतिक व्यक्ति किसी सरकारी काम से अपने ऑफिस में बुला ले और बंद कमरे
में यदि वो आपकी पत्नी के साथ कोई नाजायज़ हरकत कर दे। बाद में जब आप लोग क़ानूनी कारवाई के लिए जाओ तो वो अपने राजनीतिक-प्रभाव का इस्तेमाल करके आपकी FIR भी ना होने दे। मामला भी उजागर हो जाये, क़ानूनी कारवाई भी ना हो और आपकी पत्नी को उसी स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत होने के कारण
अक्सर उस दागी-व्यक्ति से आमना-सामना करना पड़ता हो, नजरें मिलानी पड़ती हों, जलील-होना पड़ता हो। मुद्दा सार्वजनिक होने के बाद जब विपक्ष वाले, महिला संगठन आदि आपके समर्थन में आयें तो आपकी पत्नी का शील-भंग करने वाला व्यक्ति ये कहकर मुद्दे को भटकाता हो कि ये राजनीति
प्रेरित झूठा मुद्दा है। अगर सब तरफ से हारकर आप लोग जनता-जनार्दन तक अपनी विवशता को पहुँचाने के लिए भाभी जी को मिला हुआ वो अवार्ड गंगा में बहा देने की घोषणा कर दो तो क्या उस अवार्ड के साथ भाभी जी द्वारा लगभग बीस साल तक ली गई, सरकारी तनख़्वाह भी साथ ही बहाओगे क्या? #NeverForget1984
अब मेरे मित्र बौखलाये हुए थे क्योंकि बातचीत में मैंने दो-तीन बार उनकी पत्नी के साथ ‘नाजायज़-हरकत’ शब्द का इस्तेमाल कर दिया था, जिसकी कल्पना करना, दिमाग में वो हरकत सोचना, उन्हें बहुत ही पीड़ा दे रहा था। छूटते ही बोले की मैं तो उस व्यक्ति को गोली ही मार दूँगा,
चाहे वो कितनी बड़ी तोप हो। मैंने फिर से पूछ लिया कि आप गोली-मारने का जिक्र करके मुद्दे को भटकाओ मत, सबके घरवाले आप जितने दिलेर नहीं होते, आप सिर्फ सोचकर इतना बताओ कि आप गंगा में सिर्फ अवार्ड को बहाओगे या 20 साल तक मिली तनख़्वाह के पैसों को भी बहाओगे।
वो फिर से बात पलटते हुए बोला कि इतनी हिम्मत किसी की नहीं है कि मेरी पत्नी की तरफ आँख उठाकर भी देख जाये। मैंने फिर से कह दिया कि पत्नी तो इस देश में राम की भी उठा ली गई थी, एक साल तक अपने पास रखी थी। पत्नी तो भीम-अर्जुन जैसे पाँच पाण्डवों की भी बाल-पकड़कर घसीटते
हुए दरबार में लाई गई थी और भरी सभा में नंगी कर दी थी। आप तो अपनी पत्नी के एक ही पति हो, इस देश में तो पाँच पतियों वाली भी सुरक्षित नहीं रही। बस मुझे इतना बता दो कि आप लोग अपनी पत्नी के अवार्ड के साथ, तनख़्वाह के पैसे भी बहाओगे या सिर्फ अवार्ड ही बहाओगे।
अब वो अंधभक्त लाइन पर आ गया और कहने लगा कि मैं आपकी फ़ेसबुक से comment डिलीट कर देता हूँ। मैं जल्दबाज़ी में कमेंट लिख गया था, मैंने इतना गहराई से सोचा नहीं था।
मैंने भी उनसे ज्यादा बहस नहीं कि और वो चुपचाप कमेंट डिलीट कर गए।
पहलवानों ने घोषणा की थी कि वो 30 मई को शाम 6 बजे गंगा में अपने मेडल बहा देंगे। 6 बजे के बाद इस देश के तमाम लोगों , और घर-परिवार वाले अंधभक्तों ने भी, टीवी-इंटरनेट-सोशल-मीडिया आदि के माध्यम से ये पता लगाने की कोशिश की कि 6 बजे उन मेडलों का क्या हुआ ? #अंतर्राष्ट्रीय_बाल_रक्षा_दिवस
पहलवानों ने घोषणा की थी कि वो 30 मई को शाम 6 बजे गंगा में अपने मेडल बहा देंगे। 6 बजे के बाद इस देश के तमाम लोगों , और घर-परिवार वाले अंधभक्तों ने भी, टीवी-इंटरनेट-सोशल-मीडिया आदि के माध्यम से ये पता लगाने की कोशिश की कि 6 बजे उन मेडलों का क्या हुआ?
हार्ड-कोर अंधभक्त हो और उसे बृजभूषण की नेक-नियति और मासूमियत पर पूरा यक़ीन हो तो हम तो सिर्फ इतनी प्रार्थना करते हैं कि परमात्मा उनकी बहन-बेटियों को भी बृजभूषण या चिन्मयानन्द जैसा कोई बढ़िया संरक्षक बहुत जल्दी प्रदान करे ताकि उनकी बहन-बेटियों को उचित संरक्षण मिल सके।
अज्ञात ✍️
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दिल्ली की इस वीडियो ने सभी को अंदर तक झंझोर कर रख दिया है। चाकू से 40 वार, फिर पत्थर से कुचलकर 16 साल की लड़की को मार डाला। और मारने वाला भी कोई ज्यादा उम्र का नहीं है ना ही कोई पेशेवर कातिल है। फिर ऐसे अपराध को करने की हिम्मत आयी कहां से?
बच्चे इतने जघन्य अपराध कैसे और क्यों करने लगे? मैं यहां किसी धार्मिक एंगल का समर्थन नहीं कर रही। क्योंकि आजकल इस तरह की घटनाओं में हर धर्म के लोग लिप्त हैं।
बात ये है के किसी भी जघन्य अपराध को करने की प्रेरणा और हिम्मत कहां से मिलती है?
साहिल तो अपराधी है ही लेकिन इस के इस अपराध में क्या इसकी परवरिश क्या सामाजिक ताना बाना और क्या कानून भी शामिल नहीं है?
कोई मां बाप नहीं चाहता के उनका बेटा या बेटी अपराधी बने। समाज भी शांति ही चाहता है। कानून भी लोगों की रक्षा के लिए ही बनाए गए हैं।
ओशो से पूछा एक साधक ने - भ्रष्ट राजनेताओं से देश को छुटकारा कब मिलेगा? ओशो ने कहा- "बहुत कठिन है क्योंकि प्रश्न राजनेताओं से छुटकारे का नही है, प्रश्न तो तुम्हारे अज्ञान के मिटने का है! तुम जब तक अज्ञानी हो, कोई न कोई तुम्हारा शोषण करता ही रहेगा! twitter.com/i/spaces/1jMJg…
कोई न कोई तुम्हे ठगेगा ही ! पंडित ठगेगा, पुरोहित ठगेगा, मुल्ला-मौलवी ठगेगा, राजनेता ठगेगा! तुम जब तक जाग्रत नहीं हो, तब तक लुटोगे ही, फिर किसने लूटा, क्या फर्क पड़ता है? किस झण्डे की आड़ में लुटे, क्या फर्क पड़ता है? #भारत_माता_की_जय #BharatJodoYatra
समाजवादियो से लुटे या साम्यवादियों से, क्या फर्क पड़ता है ! तुम तो लुटोगे ही ! लुटेरों के नाम बदलते रहेंगे और तुम लुटते रहोगे! इसलिए ये मत पूछो कि भ्रष्ट राजनेताओं से देश का छुटकारा कब होगा? यह प्रश्न ही अर्थहीन है, #भारत_माता_की_जय #BharatJodoYatra