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Feb 4
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|| साधना ||

मनुष्य के तीन शरीर होते हैं- पहला- स्थूल शरीर, दूसरा- सूक्ष्म शरीर और तीसरा- कारण शरीर। स्थूल शरीर तो हमें दिखाई देता है। यह सोलह तत्वों का बना होता है। पहली नजर में हमारा चेहरा ही हमारे स्थूल शरीर का परिचय होता है। Meditation BahuRaani
स्थूल शरीर के भीतर एक सूक्ष्म शरीर होता है जो 19 तत्वों का बना होता है। ये १९ तत्व हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार, पांच ज्ञानेंद्रियां (आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा), पांच महाभूत ( पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश), तथा पांच प्राण- प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान।
सूक्ष्म शरीर के भीतर हमारा कारण शरीर सूक्ष्मतम है जो ३५ तत्वों का बना होता है- स्थूल शरीर के १६ और सूक्ष्म शरीर के १९ मिला कर कुल ३५ तत्व। साधना इन सभी स्थूल और सूक्ष्म तत्वों/ऊर्जाओं को संतुलित बनाता है।
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Feb 4
दैनिक सुप्रभात स्त्रोत

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः सह भानुजेन कुर्वन्तु सर्वे मम सु-प्रभातम् ।।
भृगुर्वसिष्ठः क्रतुरङ्गिराश्च मनुः पुलस्त्यः पुलहः सगौतमः ।
रैभ्यो मरीचिश्च्यवनो ऋभुश्च कुर्वन्तु सर्वे मम सु-प्रभातम् ।।
सनत्कुमारः सनकः सनन्दन सनातनोऽप्यासुररिपिङ्गलौ च ।
सप्त स्वराः सप्त रसातलाश्च कुर्वन्तु सर्वे मम सु-प्रभातम् ।।
पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः स्पर्शश्च वायुर्ज्वलनः सतेजाः ।
नभः सशब्दं महता सहैव यच्छन्तु सर्वे मम सु-प्रभातम् ।।
सप्तार्णवाः सप्त कुलाचलाश्च सप्तर्षयो द्वीपवराश्च सप्त ।
भूरादि कृत्वा भुवनानि सप्त ददन्तु सर्वे मम सु-प्रभातम् ।।
इत्थं प्रभाते परमं पवित्रं पठेत् स्मरेद्वा शृणुयाच्च भक्त्या ।
दुःस्वप्ननाशोऽनघ सु-प्रभातं भवेच्च सत्यं भगवत्प्रसादात् ।।
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Jan 22
Something people have been asking me lately... Here is a glimpse of

|| पंचमुखी हनुमान शक्ति साधना ||

श्री हनुमान की साधना अनेक रूपों में की जाती है। जिनमें बाल हनुमान, भक्त हनुमान, वीर हनुमान, दास हनुमान, योगी हनुमान और पंचमुखी हनुमान प्रसिद्ध है। Image
पांच मुख वाले हनुमान की शक्ति धार्मिक और तंत्र शास्त्रों में भी बहुत ही चमत्कारिक फलदायी मानी गई है। श्री हनुमान के पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है।
पंचमुखी हनुमान का पूर्व दिशा में वानर मुख है। जो बहुत तेजस्वी है। जिसकी उपासना से विरोधी या शत्रु पराजित हो जाता है।

पंचमुखी हनुमान का पश्चिमी मुख गरूड का है। जिसके दर्शन और भक्ति संकट और बाधाओं का नाश करती है।
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Jan 21
Try this, if you only have 2 minutes
#BahuRaaniBookmark

|| धनप्रदायक - श्रीगणेश-लक्ष्मी स्तोत्र ||

ॐ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने |
दुष्टारिष्टाविनाशाय पराय परमात्मने ||
लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपवीत शोभितं |
अर्धचन्द्रधरं देवं विघ्नव्यूह विनाशनं ||
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हेरम्बाय नमो नमः |
सर्वसिद्धिप्रदोsसि त्वं सिद्धिबुद्धिप्रदोभव ||
चिन्तितार्थप्रदस्त्वं हि सततं मोदकप्रियः |
सिन्दूरारुणवस्त्रेश्च पूजितो वरदायकः ||
इदं गणपतिस्तोत्रं यः पठेद भक्तिमान नरः |
तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मुञ्चति ||
ॐतत्सत् ॐतत्सत् ॐतत्सत् ।।

स्तोत्रार्थ: -

सम्पूर्ण सौख्य प्रदान करने वाले सत्चिदानद स्वरुप विघ्नराज गणेश को नमस्कार है |
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Dec 3, 2022
हिन्दुत्व केवल एक धर्म ही नहीं है। सनातन का अर्थ होता है। जो न तो अग्नि, न वायु. न पानी और ना ही अस्त्र से नष्ट हो और धर्म का अर्थ होता है। जीवन जीने की कला।
आओ जानते हैं इन सभी को विस्तार से
१० ध्वनियां: घंटी, शंख, बांसुरी, वीणा, मंजीरा, करतल, बीन (पुंगी), ढोल, नगाड़ा और मृदंग
१० कर्तव्य:- संध्यावंदन, व्रत, तीर्थ, उत्सव, दान, सेवा संस्कार, यज्ञ, वेदपाठ, धर्म प्रचार

१० दिशाएं : उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो
१० दिग्पाल : १० दिशाओं के १० दिग्पाल होते हैं।
उर्ध्व के ब्रह्मा,
ईशान के शिव व ईश,
पूर्व के इंद्र,
आग्नेय के अग्नि या वह्रि,
दक्षिण के यम,
नैऋत्य के नऋति,
पश्चिम के वरुण,
वायव्य के वायु और मारुत,
उत्तर के कुबेर
और...
अधो के अनंत
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Dec 2, 2022
|| महा-लक्ष्मी मन्त्र ||

इस मन्त्र के तीन पाठ नित्य करे। ‘पाठ’ के बाद कमल के श्वेत फूल, तिल,मधु, घी, शक्कर, बेल-गूदा मिलाकर बेल की लकड़ी से नित्य १०८ बार हवन करे। इससे मन-वाञ्छित धन प्राप्त होता है।

(ध्यान से पढ़िए)
ॐ अस्य श्रीपञ्च-दश-ऋचस्य श्री-सूक्तस्य
श्रीआनन्द-कर्दम-चिक्लीतेन्दिरा-सुता ऋषयः,
अनुष्टुप्-वृहति-प्रस्तार-पंक्ति-छन्दांसि, श्रीमहा-लक्ष्मी देवताः,
श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रसाद-सिद्धयर्थे राज-वश्यार्थे सर्व-स्त्री-पुरुष-
वश्यार्थे महा-मन्त्र-जपे विनियोगः।
।।स्तुति-पाठ।।

पद्मानने पद्मिनि पद्म-हस्ते पद्म-प्रिये पद्म-दलायताक्षि।
विश्वे-प्रिये विष्णु-मनोनुकूले, त्वत्-पाद-पद्मं मयि सन्निधत्स्व।।
पद्मानने पद्म-उरु, पद्माक्षी पद्म-सम्भवे।
त्वन्मा भजस्व पद्माक्षि, येन सौख्यं लभाम्यहम्।।
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