#Threads
रात, चांद और तुम मेरे सबसे करीबी हैं। मुझे लगता है मैं ही वो रात हूं जिसके फ़लक पर चांद हर साल आज की रात अपने सबसे वृहत रूप में खिलता है। आज का चांद हमेशा से मुझे तुम सा लगता रहा है। तुम्हारी ही तरह गर्मी और शीत ऋतु की उहापोह में उलझा हुआ सा!
1>>
न मुझसे अपने मन की उष्मा बांट पाता है और न ही पूरी तरह सर्द होकर मुझसे दूर हो पाता है! तुम्हारा यश इसी चांद की रोशनी की तरह हर तरफ फैला तो है मगर इन्हीं किरणों के घेरे में तुम तन्हा भी हो। यह एक अभेद्य किले सा है तुम्हारे इर्द-गिर्द जिसके अंदर कोई जा नहीं सकता।
2>>
कभी कभी सोचती हूं कि मुझसे ख़ुद के बारे में लिखने को कह दिया किसी ने तो मैं क्या लिखूंगी। मैं क्या ही लिख पाऊंगी, कुछ भी तो नहीं जानती अपने बारे में। कभी ख़ुद को यथार्थ की तरह जिया नहीं है, प्रत्यक्ष रूप से देखा ही नहीं अबतक। मेरा कोई ठोस प्रतिरूप नहीं बना कभी। 1/n
कब से यूं निराकार भटकती आ रही हूं?मेरे रास्ते किसने तय कर रखे हैं? किसी ने मेरी पदचाप,मेरी आहटें, मेरी कराहना नहीं सुनी कभी? यह यात्रा कब तक मुझे अपने अस्तित्व तक नहीं पहुंचने देगा?इस भावनात्मक यात्रा से भी कठिन है भौतिक यात्रा।एक शहर छोड़कर दूसरे शहर में आना उतना ही कठिन है..2/n
पिछले कुछ सालों से हर शरद पूर्णिमा की रात कुछ न कुछ लिखती हूं। पहली बार तुम्हारे कहने पर तुम्हारे ही लिए एक कविता लिखी थी। तुम्हारी सबसे पहली और पुरानी याद वही है मेरे पास। वो कविता हमें करीब भी लायी थी और अब हमारी दूरियों की माप भी है।
1>>
रात,चाँद और तुम मेरे सबसे करीबी हैं।मुझे लगता है मैं ही वो रात हूं जिसके फ़लक पर चाँद हर साल आज की रात अपने सबसे वृहत रूप में होता है।आज का चाँद हमेशा से मुझे तुम सा लगता रहा है,तुम्हारी ही तरह गर्मी और शीत ऋतु की उहापोह में उलझा हुआ सा!न मुझसे अपने मन की उष्मा बांट पाता है..
2>>