Adv. Prerak Agrawal Profile picture
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May 23, 2023, 32 tweets

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#रामायण में #श्रीराम के साथ इनका प्रसंग आता है।

ऋषि जाबालि का #जबलपुर से बहुत गहरा नाता रहा है।

#कुलगुरु_वशिष्ठ जी की अनुशंसा पर #महाराजा_दशरथ द्वारा जबलपुर के ऋषि जाबालि को अयोध्या में #मुख्य_याजक ( #यज्ञ_प्रमुख ) नियुक्त किया गया था।

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#देवी_अहिल्या के पति #महर्षि_गौतम के आश्रम से कुछ दूर एक गांव में एक नृत्यांगना स्त्री रहती थी उसका नाम था #जबाला

उस मार्ग से गुजरने वाले यात्रियों की सेवा कर उनसे प्राप्त होने वाले धन से वह अपना जीवन निर्वाह करती थी।

उसका पुत्र बड़ा योग्य था।

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उन दिनों गुरुकुल ही पढ़ाई के केन्द्र होते थे।

जबाला जिस ग्राम में रहती थी उसके निकट महर्षि गौतम का आश्रम था। माता ने बालक को महर्षि के आश्रम का पता बताया और अकेले ही वहां प्रवेश लेने के लिए भेज दिया।

माता के बताए

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महर्षि गौतम समझते थे कि बालक आया है तो पढ़ने के लिए ही आया होगा। फिर भी उन्होंने उसे अकेले ही आया देख कर पूछ लिया, ‘‘बालक, किस कार्य से आए हो?’’

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बालक का उत्तर सुन कर महर्षि प्रसन्न हुए उन्होंने पूछा, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘सत्यकाम।’’ बालक ने उसी विनम्रता से उत्तर दिया।

‘‘पिता का नाम क्या है?’’

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सत्यकाम के सम्मुख आज तक कभी पिता आए ही नहीं थे और न उसने कभी उनका नाम ही सुना था। उसने कभी अपने पिता के विषय मेें कुछ जाना ही नहीं था। सहसा महर्षि के मुख से पिता का नाम सुन कर वह विस्मित हुआ। किन्तु तुरन्त ही स्थित हो कर उसने उत्तर दिया, ‘‘ पिता का

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महर्षि ने उसको समझातेे हुए कहा, ‘‘पुत्र, यद्यपि तुम्हारे उत्तर से मैं सन्तुष्ट हूं फिर भी तुम अपनी माता के पास जाकर अपने पिता का नाम और कुल-गोत्र आदि पूछ कर आओ।’’

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सत्यकाम की माता ने उसे समझाते हूए कहा, ‘‘बेटा, मैं

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अपनी माता के मुख से अपने पिता के विषय में अटपटा-सा उत्तर सुन

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उस की माता बड़ी ही सत्य बोलने वाली थी। उसको अपनी सत्यता पर बड़ा भरोसा भी था। अतः उसने बालक को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम महर्षि के पास एक बार फिर जाओ और

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सत्यकाम बोला, ‘‘गुरुदेव मेरी माता कहती हैं कि उनको भी मेरे पिता का नाम मालूम नहीं। उनका जीवन तो यात्रियों

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इसलिए वे मेरे पिता का नाम तथा कुल, गोत्र बताने में असर्म्थ हैं।’’

पुत्र और माता की इस प्रकार की सत्य के प्रति निष्ठा से महर्षि गौतम बहुत प्रभावित हुए।

महर्षि ने सत्यकाम को शावासी देते हुए कहा, ‘‘बेटा, जो इस प्रकार निर्भय होकर अपनी बात सच-सच बता

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सत्यकाम लगन का पक्का था। उसने महर्षि के चरणों में प्रणाम करते हुए कहा, ‘‘महाराज आपकी कृपा और आशीवाद से में अपने कार्य को ठीक समय पर सम्पन्न कर लूंगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

शिष्य में विश्वास की

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गुरुकूल के पूर्व की ओर जो वन था वह सत्यकाम को दे दिया गया। उसको शिक्षा देने के लिए विभिन्न विषयों के चार विद्वानों की नियुक्ति भी कर दी गई। बल्कि सत्यकाम ने स्वयं अपने लिए वहां कुटिया बनाई और फिर गौयों के पालन-पोषण के साथ-साथ अपनी पढ़ाई में भी

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गुरुकुल वासियों ने अनुभव किया कि ज्यों-ज्यों सत्यकाम का ज्ञान बढ़ता जा रहा है त्यों-त्यों गौओं की वंशवेलि बढ़ने के साथ साथ वे हृष्ट-पुष्ट भी होती जा रही हैं। महर्षि गौतम यह सब देख कर प्रसन्न होते थे।

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जब तक गौओं की संख्या 400 से 1000 तक पहुंची, सत्यकाम ने अपने चार विषयों की शिक्षा पूर्ण कर ली।

यथा अवसर सत्यकाम महर्षि के सम्मुख उपस्थित हुआ। उसने उनको प्रणाम कर कहा, ‘‘महाराज आपके द्वारा नियुक्त

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’’सत्यकाम की विनम्रता, कार्यकुशलता, सत्य निष्ठा और विद्या के प्रति अनुराग देख कर महर्षि गौतम बहुत ही प्रसन्न हुए, उसे आशीर्वाद देकर विद्याओं में पारंगत कर दिया।

सत्यकाम ने अपनी विद्वता से सारे संसार में अपनी तथा अपने गुरु महषि गौतम की ख्याति फैला दी।

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संवाद के दौरान वे कहते हैं, देखो क्या विडंबना है कि:

🔴अष्टकापितृदेवत्यमित्ययं प्रसृतो जनः।
अन्नस्योपद्रवं पश्य मृतो हि किमशिष्यति ।।14।।
(बाल्मीकिविरचित रामायण, अयोध्याकाण्ड, सर्ग 108)

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दद्यात् प्रवसतां श्राद्धं तत्पथ्यमशनं भवेत् ।।15।।
(बाल्मीकिविरचित रामायण, अयोध्याकाण्ड, सर्ग 108)

वास्तव में यदि यहां भक्षित अन्न अन्यत्र किसी दूसरे के देह को मिल सकता तो अवश्य ही परदेस में प्रवास में गये व्यक्ति की वहां भोजन की व्यवस्था

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जबालोपनिषद में चतुर्थ आश्रम सन्यास आश्रम को भी जोड़ा गया है।

#जय_श्री_राम‌‌

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