अपने को पत्रकार बताने वाले प्रशांत कनौजिया की गिरफ्तारी के विरोध में तमाम पत्रकार और मीडिया संगठन आवाज उठाई। यह सही है कि देश के संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है।
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1) कनौजिया की ट्वीट देखने के बाद क्या उसे पत्रकार कहा जा सकता है?
3) उसे बचाने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई दी जा रही है। जिसकी प्रतिष्ठा पर हमला हुआ है क्या उसका कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है?
5) वह गलत है तो कानून को अपना काम क्यों नहीं करना चाहिए?
6)सवाल यह भी है कि जब इस तरह के ट्वीट, खबरें लिखी और दिखाई जाती हैं, तब वे कहां होते हैं जो आज कनौजिया के समर्थन में खड़े हैं?
8) कनौजिया जैसे व्यक्ति के बचाव में खड़े होने वाले क्या संदेश दे रहे हैं?
10) कानूनी कार्रवाई का विरोध करने से पहले क्या अपने अंदर झांकने की जरूरत नहीं है?
विचार जरूर करें ।
साभार -प्रदीप सिंह जी