19 सितंबर 2008 कि सुबह मुझे एक जगह जल्द से जल्द पहुँचना था ,लेकिन दिल्ली की सड़कों पे इतना ट्रेफिक हो गया था में चाह कर भी कुछ नही कर पा रहा था ।
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मैंने मेरी टीम को आदेश दिया तुम वाह पहुँचो में तुम्हे सीधा वही मिलूँगा ।
लेकिन में करता भी क्या ,मैंने कमिश्नर साहब को जुबान दी थी..
हॉस्पिटल से निकल के 40 मिनट बाद जामियाँ नगर के उस घर को मैं और मेरी टीम ने घेर लिया था, मैं ही मेरी टीम को लीड कर रहा था ।
जैसे ही हमने उस घर मे घुसने का प्रयास किया सामने से फायरिंग हुई ...
मैंने उसके बाद भी 2 आतंकी को मार गिराया ,और उसके बाद मेरी नजरों से सब धुन्दला होता चला गया ।
मेरी आँखों के सामने मुझे सिर्फ उस वक्त...
मैं हॉस्टिपल में पड़े मेरे बेटे और उसकी माथे पे पट्टी करते हुए मेरी बीवी नजर आ रही थी, मैं उन सब को छोड़ के जा रहा था लेकिन उसके बाद भी मेरी आँखों मे एक भी आंसू नहीं था ।
मैंने गोली सीने पे खाई थी पीठ पे नहीं तो फिर अफसोस किस बात का ।
मुझे उस वक्त ये भी महसूस हो रहा था कि मैं मेरी मातृभूमि के लिए जान दे रहा हूँ इसलिए मुझे तो शांति मिलेगी ही ।
ये कहानी है उसी बाटला हाउस एनकाउंटर की जिसे हमारे देश के नेताओ ने फर्जी बता दिया था ।जिस एनकाउंटर के बाद सोनिया गांधी फुट फुट के रोई थी।
आपको पता है दिल्ली पुलिस सिर्फ 1 हफ्ता मांगती है इस केस को क्रैक करने...
बाटला एनकाउंटर पे रोने वालो ,इसको फर्जी बताने वालों कहानी का दूसरा पहलू भी देखो ।
शर्म आनी चाइए राजनीति के चंद वोट के लिए इस देश के नेताओ ने ...
शर्म आनी चाइए उस कांग्रेस को जिसने इस एनकाउंटर को कुछ मुस्लिम वोट पाने के लिए फर्जी बता दिया ।
इंस्पेक्टर "मोहन चंद्र शर्मा" ,आप हीरो हैं ।
आपका त्याग सर्वोच्च हैं ।
जय हिंद
वाया- "लिबरल हिंदू"।