शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की,तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की,
(नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे,उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा,फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए,
तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया,इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया,यही पवित्र स्थान आज बद्रीविशाल के नाम से सर्वविदित है,
इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ पड़ा,
धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल,
पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप
(साँपों का जोड़ा)
शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड–शेषनेत्र,
(यहीं भगवान विष्णु ने बालरूप में अवतरण किया था।)
बदरीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ,
माता मूर्ति मंदिर :- जिन्हें बद्रीनाथ भगवान जी की माता के रूप में पूजा जाता है,
वेद व्यास गुफा, गणेश गुफा: यहीं वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था,
भीम पुल :- भीम ने सरस्वती नदी को पार करने हेतु एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीम पुल के नाम से जाना जाता है
ये जगह माणा से ८ किलोमीटर दूर है। कहते हैं की जिसके ऊपर इसकी बूंदे पड़ जाती हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वो पापी नहीं होता है,
लक्ष्मी वन :- यह वन लक्ष्मी माता के वन के नाम से प्रसिद्ध है,
अलकापुरी :- अलकनंदा नदी का उद्गम स्थान। इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है
सरस्वती नदी :- पूरे भारत में केवल माणा गाँव में ही यह नदी प्रकट रूप में है
बद्रीनाथ कस्बे के समीप ही बामणी गाँव में उनका मंदिर है,
ॐ नमो भगवते वासुदेवायः नमः
जय बद्री-विशाल
🙏🏻🙏🏻🙏🏻