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हिंदुओं के चार धामों में से प्रमुख बद्रीनाथ धाम की सम्पूर्ण कथा!!!!!!!
बद्रीनाथ मंदिर,जिसे बद्रीनारायण मंदिर भी कहते हैं,अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है,यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है,यह हिन्दुओं के चार धाम में से एक धाम भी है,ऋषिकेश से यह २९४ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है।
बद्रीनाथ उत्तर दिशा में हिमालय की उपत्यका में अवस्थित हिन्दुओं का मुख्य यात्राधाम माना जाता है, मन्दिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है,जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है,यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ-स्थल है।
हर हिन्दू की कामना होती है कि वह बद्रीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य करे,यहां पर शीत के कारण अलकनन्दा मे स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है,अलकनन्दा के तो दर्शन ही किये जाते है,यात्री तप्तकुण्ड मे स्नान करते है,यहां वनतुलसी की माला चने की कच्ची दाल,गिरी का गोला,मिश्री का प्रसाद चढ़ता है
बद्रीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई,चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है,कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी,सिद्ध, ऋषि,मुनि इसके प्रधान अर्चक थे,जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की,
शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए।

शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की,तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की,
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार,जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई,इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बद्रीनाथ,भगवान विष्णु का वास बना,
भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था।
इसके पश्चिम में 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है,बद्रीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है,यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है,
पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया,यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था,भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया,
उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर
(नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे,उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा,फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए,
माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये?
तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया,इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया,यही पवित्र स्थान आज बद्रीविशाल के नाम से सर्वविदित है,
जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा मे तपस्या मे लीन थे तो बहुत हिमपात होने लगा,भगवान विष्णु हिम मे पूरी तरह डूब गये,उनकी दशा देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो,एक बेर(बदरी) वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगी
माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं,कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी है,तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी!
तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा,
इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ पड़ा,
जहाँ भगवान बदरीनाथ ने तप किया था,वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
बदरीनाथ में तथा इसके समीप अन्य दर्शनीय स्थल हैं-:
अलकनंदा के तट पर स्थित तप्त-कुंड
धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल,

पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप
(साँपों का जोड़ा)
शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड–शेषनेत्र,
चरणपादुका :- जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं;
(यहीं भगवान विष्णु ने बालरूप में अवतरण किया था।)

बदरीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ,

माता मूर्ति मंदिर :- जिन्हें बद्रीनाथ भगवान जी की माता के रूप में पूजा जाता है,
माणा गाँव- इसे भारत का अंतिम गाँव भी कहा जाता है

वेद व्यास गुफा, गणेश गुफा: यहीं वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था,

भीम पुल :- भीम ने सरस्वती नदी को पार करने हेतु एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीम पुल के नाम से जाना जाता है
वसु धारा :- यहाँ अष्ट-वसुओं ने तपस्या की थी,

ये जगह माणा से ८ किलोमीटर दूर है। कहते हैं की जिसके ऊपर इसकी बूंदे पड़ जाती हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वो पापी नहीं होता है,

लक्ष्मी वन :- यह वन लक्ष्मी माता के वन के नाम से प्रसिद्ध है,
सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी) :- कहा जाता है कि इसी स्थान से राजा युधिष्ठिर ने सदेह स्वर्ग को प्रस्थान किया था,

अलकापुरी :- अलकनंदा नदी का उद्गम स्थान। इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है

सरस्वती नदी :- पूरे भारत में केवल माणा गाँव में ही यह नदी प्रकट रूप में है
भगवान विष्णु के तप से उनकी जंघा से एक अप्सरा उत्पन्न हुई जो उर्वशी नाम से विख्यात हुई,
बद्रीनाथ कस्बे के समीप ही बामणी गाँव में उनका मंदिर है,
एक विचित्र सी बात है..जब भी आप बद्रीनाथ जी के दर्शन करें तो उस पर्वत (नारायण पर्वत) की चोटी की और देखेंगे तो पाएंगे की मंदिर के ऊपर पर्वत की चोटी शेषनाग के रूप में अवस्थित है,शेष नाग के प्राकृतिक फन स्पष्ट देखे जा सकते हैं,

ॐ नमो भगवते वासुदेवायः नमः
जय बद्री-विशाल

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