भरे दरबार मे शाहजहाँ के साले सलावत खान ने अमर सिंह राठौड़(नागौर राजा)को काफ़िर कह कर गालियाँ बकनी शुरू की और सभी मुगल दरबारी उन गालियों को सुनकर हँस रहे थे,
अगले ही पल सैनिकों और शाहजहाँ के सामने वहीं पर दरबार में अमर सिंह राठौड़ ने सलावत खान का सर काट फेंका,
उसने क्रूरतापूर्वक अमर सिंह की लाश को एक बुर्ज पे डलवा दिया ताकि उस लाश को चील कौए खा लें.
राम सिंह रानी के चरण छू कर बोला : चाची रुको ! चाचा का शव में लेकर आता हूँ और हाँ मैं मर जाऊँगा तो भी शव आएगा, ये भतीजे का चाची को वादा है.
द्वारपाल राम सिंह को पहचान नहीं पाए,लेकिन जब राम सिंह बुर्ज की तरफ जाने लगे तो अनेक मुगल सैनिकों ने उन्हें घेर लिया.
पति की लाश पाकर उन्होंने अंतिम संस्कार करवाया और राम सिंह को आशीर्वाद दिया- 'बेटा !
गौ, ब्राह्मण, धर्म और विधवा स्त्री की रक्षा के लिए जो संकट उठाता है, भगवान उस पर प्रसन्न होते हैं.
ये आशीर्वाद था एक चाची का अपने भतीजे को, लेकिन इतिहास ने कहाँ याद रखा! ये इतिहास की बात सिर्फ एक किस्सा बन कर रह गयी राजस्थान के लोक गीतों और लोकल लोगों के बीच.
कब तक मुगल महान थे पढ़ते रहेंगे....!
वर्तमान सरकार को चाहिये कि भारत वीर राजाओं के इतिहास की जानकारी पाठ्यक्रम में अनिवार्य शामिल करें व कभी तो इस विषय पर भी ध्यान दे,
देश के वास्तविक इतिहास से देशवासी रूबरू हो,