यह तो सब जानते हैं,
लेकिन कैसे?
ये हमें इतिहास में नहीं बताया गया...क्यों
जानिये....
वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' घोड़ा सबको याद है,
लेकिन 'शुभ्रक' नहीं!
तो जानिये कौन था 'शुभ्रक' घोड़ा की......,
और
उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया,
कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,
जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया,
और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया
यह तय हुआ कि
राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो'
(उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा..
'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा,
उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे,
तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया
उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया
और बिजली की गति से उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए
जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए
इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए
'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी..
लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!
तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे,
सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया..
क्योंकि इतिहास को बदलने वाले व कायर कुतुबुद्दीन को वीर बताने वाले उसकी ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं,
जबकि
फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है
नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को..
हमारा दायित्व है कर्तव्य है देश को वास्तविक इतिहास से परिचित कराये
कोंडाणा के किले में चढ़ने के लिए तानाजी ने यशवंती नामक गोह प्रजाति की छिपकली जिसे मराठी भाषा मे घोरपड भी कहते है,का प्रयोग किया था,दुर्भाग्य से जिसको वर्तमान में बनी फ़िल्म तानाजी में भी नही दिखाया गया,
तो हमारे देश मे होने को तो " चेतक और यशवंती " जैसे देशभक्त जानवर भी हुए है और होने को एक से एक देशद्रोही जयचन्द जैसे अनेक गद्दार भी...!