महामृत्युंजय मंत्र को शास्त्रों में महामंत्र का दर्जा प्राप्त है,इस मंत्र के प्रत्येक शब्द में असीमित ऊर्जा व प्राणवायु संचित है,अकाल मृत्यु से रक्षा व दीर्घायु हेतु उक्त मंत्र वरदान है
"ॐ त्र्यंबकम् मंत्र" के 33 अक्षर हैं
जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 देवताओ के घोतक हैं,
उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं,
जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं साथ ही वह निरोगी व ऐश्वर्य युक्ता धनवान भी होता है,
" त्रि " - ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है
•" यम " - अध्ववरसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है
• " ब "- सोम वसु शक्ति का घोतक है,जो दक्षिण कर्ण में स्थित है
• " कम " - जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है,
•" य " - वायु वसु का घोतक है,जो दक्षिण बाहु में स्थित है
•" जा "- अग्नि वसु का घोतक है,जो बाम बाहु में स्थित है
•" म " - प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है,जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है
• " हे " - प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।
•"सु "-वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है,दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है
•" ग " -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है
• " न्धिम् " - गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है,बायें हाथ के मूल में स्थित है
•" पु "- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है,वाम हस्त के मध्य भाग में स्थित है
• " ष्टि " -अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है,वाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है,
•" व "- पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है,बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है,
•" र्ध " - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है,वाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है,
• " नम् " - कपाली रुद्र का घोतक है,उरु मूल में स्थित है
" उ "- दिक्पति रुद्र का घोतक है,यक्ष जानु में स्थित है
" र्वा " - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है
" रु "- भर्ग रुद्र का घोतक है,जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है
" क " - धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है
•" मि " - अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है
•" व-" - मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है,
•" ब " - वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है,
•" न्धा " - अंशु आदित्यद का घोतक है,वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है
•" नात् " - भगादित्यअ का बोधक है,वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है,
" मृ " - विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है
•" र्त्यो् "- दन्दाददित्य् का बोधक है,वाम पार्श्वि भाग में स्थित है
•" मु "- पूषादित्यं का बोधक है,पृष्ठै भगा में स्थित है
•" क्षी " - पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है,नाभि स्थिल में स्थित है
•" य "- त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है,गुहय भाग में स्थित है
•" मा " - विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्वरूप दोनों भुजाओं में स्थित है
•" मृ " - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है
•" तात् " - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है,
( जहां के जो देवता या वसु अथवा आदित्यप हैं ) उनकी रक्षा होती है,
" ॐ नमः शिवाय "
और....
काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाँकाल का...
" जय श्री महाँकाल "