हमारे देश के देवतुल्य महाराजा विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्न हुआ करते थे,और प्रत्येक रत्न अपने विषय का प्रकांड विद्वान व अपने विषय मे कुशल पारंगत था,अफसोस कि हमारे पाठ्यक्रम में इस बाबत बहुत कम जानकारी दी जाती है,
कौन-कौन,
राजा विक्रमादित्य के दरबार मे मौजूद नवरत्नों मे उच्च कोटि के कवि,विद्वान,गायक और गणितज्ञ शामिल थे,जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था,आइये जानते हैं कौन थे,
ये हैं नवरत्न –👇
नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है,इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं,वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं,
चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है,
जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है,ये बौद्ध संन्यासी थे
इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था,
इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे,
जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं
ये प्रकाण्ड विद्वान थे,बोध-गया के वर्तमान
बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है
उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है,
अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है,
इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है,
इनका एक काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है,किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है,इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है,
विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है, ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे,
किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता,
‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है
जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि
‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता, इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है,
बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया
इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है,
ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे,उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है,
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है,
-‘बृहज्जातक‘, सुर्यसिद्धांत,
बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं।
गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है,
कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं,
‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’,इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं,
1.पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन,
2.‘प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि
3.सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि,
हमारे पाठ्यक्रम में अकबर को महान बताया
अकबर के नवरत्नों का महिमामंडन है,जबकि मुगलों ने हमारे देश पर आक्रमण कर भरपूर लूटमार की व हमारे धार्मिक स्थलों को भी क्षति पहुचाई फिर भी उनका महिमामंडन है,विडंबना