दान
दान के बारे में जानने से पूर्व दान की महिमा
राजा बलि, वामन अवतार से पूर्व की कथा उससे अधिक रोचक और ज्ञानवर्धक है की कैसे दान की महिमा के कारण राजा बलि को हरिकृपा मिली.
कथा और व्याख्या स्कन्द पुराण से
प्रथम : राजा बलि के पूर्व जन्म की कथा
दान की मात्रा (थोड़ा या अधिक) अभ्युदय का कारण नहीं होता. श्रद्धा से दिया दान श्रेष्ठ, चाहे कम हो.
न्यायोचित अर्जित धन से कुटुंब के भरण पोषण के पश्चात उपलब्ध धन ही दान योग्य है. परिवारजन के कष्टों में होने पर भी समर्थ व्यक्ति का दान अनुचित है.
दाता-देनेवाला(निरोग,धर्मयुक्त,अनिन्दनीय)
प्रतिगृहिता-लेने वाला(सरल,सात्विक,दयालु,जितेन्द्रिय)
शुद्धि-प्रसन्न, प्रेम,सत्कार से बिना दोषदृष्टि से
देय-अपने प्रयत्न से, बिना सताए, धार्मिक उद्देश्य से
देश/काल-देश और समय में दुर्लभ वस्तुका
कालापेक्ष:ग्रहण,संक्रांति शांति हेतु
क्रियापक्ष:श्राद्ध, पितृ ऋण से मुक्ति हेतु
गुणापेक्ष: विद्या संस्कारकी अपेक्षा से
६.तीन भेद-उत्तम,मध्यम,कनिष्ठ
उत्तम-मंदिर,विद्या,भूमि,गौ,कूप,प्राण,सुवर्ण
मध्यम-अन्न,वस्त्र,वाटिका,अश्व
कनिष्ट-वस्तु,दही,मधु,काष्ट,पत्थर
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