फाहियान ने जेतवन महाविहार का वर्णन करते हुए लिखा है कि जेतवन विहार सात तले का था। विहार के पूरबी दरवाजे पर पत्थर के बने दो धम्म स्तंभ खड़े हैं। एक पर धम्म चक्र और दूसरे पर बैल की आकृति बनी हुई है।
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ह्वेनसांग ने जेतवन विहार के पूरबी दरवाजे पर खड़े दोनों प्रस्तर - स्तंभों की ऊँचाई 70 फीट बताई है और लिखा है कि ये दोनों प्रस्तर - स्तंभ सम्राट अशोक ने बनवाए हैं।
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साहित्यिक साक्ष्य बताते हैं कि गौतम बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक वर्षावास कुल मिलाकर 25 वर्षावास यहीं बिताए थे। सबसे अधिक यहीं बोले भी थे। जेतवन विहार इसीलिए बौद्धों के लिए खास है।
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अनाथपिंडिक द्वारा जेतवन की खरीद का शिल्पांकन भरहुत स्तूप पर उत्कीर्ण है। शिल्पांकन के ठीक नीचे धम्म लिपि में लिखा है - " जेतवन अनाथपेडिको देति कोटि संथतेन
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शिल्पांकित पटल पर हाथों में जल - पात्र लिए जो जेतवन को अर्पित करने के लिए खड़े हैं, वे अनाथपिंडिक हैं। बैलगाड़ी पर लादकर स्वर्ण - मुद्राएँ जेतवन की जमीन पर बिछाने के लिए
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बैलगाड़ी के पीछे से एक आदमी स्वर्ण - मुद्राएँ उतार रहा है। जो स्वर्ण - मुद्राएँ गाड़ी से पहले उतार ली गई हैं, उन्हें दो आदमी जेतवन की जमीन पर बिछा रहे
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2200 सौ साल पहले का जो बैलगाड़ी का उत्कीर्णन है, वह अभी हाल तक की बनी बैलगाड़ी की बनावट से मेल खाती है। आश्चर्य इस बात की है कि इतने
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