एलेक्जेंडर कनिंघम ने 1863 में श्रावस्ती की पहचान की ....बताया कि अभी का सहेत - महेत ही श्रावस्ती है....निशाना सही था.....एक साल तक खुदाई कराई और गंध कुटी मिल गई।
फाहियान ने लिखा है कि गंध कुटी के आसपास सदाबहार वृक्षों के वन
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जेतवन के ठीक बीचों - बीच गंध कुटी थी.....गंध कुटी में बुद्ध का आवास था....यहीं बुद्ध सबसे अधिक रहे....यहीं बुद्ध सबसे अधिक बोले भी थे।
फाहियान ने बताया है कि यहीं बुद्ध
3)
जेतवन के भीतर अनाथपिंडिक ने भिक्खुओं के लिए विश्राम - गृह भी बनवाए थे ....विहार नं. 19 के ध्यान - कक्ष से नींव में दबा हुआ एक ताम्रपत्र मिला है..... ताम्रपत्र ध्यान - कक्ष के
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ताम्रपत्र ने साफ कर दिया कि असली जेतवन यहीं है....धुंध साफ हुआ वरना जेतवन कहाँ - कहाँ खोजा जा रहा था।
ताम्रपत्र सवा दो फीट ऊँची मिट्टी के एक संदूक में था....ताम्रपत्र 18 इंच लंबा,14 इंच ऊँचा और चौथाई इंच मोटा है....
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यह ताम्रपत्र गहड़वाल नरेश गोविंदचद्र का है....नरेश की मुहर लगी है....वाराणसी से जारी किया गया है ....ताम्रपत्र पर संवत् 1186 आषाढ़ पूर्णिमा दिन सोमवार अंकित है।
याद कीजिए कि आषाढ़ पूर्णिमा कौन - सा दिन है.....वहीं गुरु पूर्णिमा....इसी दिन बुद्ध
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ठीक इसी गुरु पूर्णिमा के दिन राजा गोविंदचद्र ने जेतवन के भिक्खु संघ को गुरु मानते हुए 6 गाँवों की आय दान में दिए थे....गुरु पूर्णिमा का इतिहास इससे पता चलता है।
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जय जयचंद्र!!!
( तस्वीरें गंध कुटी और जेतवन विहार की हैं। )
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