निजीकरण के शोर शराबे में आज सुबह सुबह ही स्मृतियों का झंझावात उस दिन की याद स्मृति पटल पर उकेर गया जिस दिन बैंकर के रूप में शाखा में अपने जीवन के नए अध्याय का श्रीगणेश किया था... मैं कर्तव्य निर्वहन को पहुंचा भीलवाड़ा जिले के एक सुदूर अंदरूनी गांव मे...
जिस समय एक आदमी बैग भरके पैसा जमा करवाने के लिए आया ठीक उसी समय फटा बनियान पहने एक बूढ़ा सा आदमी भी दाखिल हुआ... ठीक उसी अधिकार का साथ, बिना रत्ती भर के भी संकोच के..
मेने देखा कि हर वर्ग, हर धर्म, हर लिंग के लोग बिना झिझके आराम से आ जा रहे है.
कुछ ही देर हुई थी, की एक झुकी हुई कमर वाली बूढ़ी अम्मा आई
मेने पासबुक देखी, वो पासबुक गांव के दूसरे छोर में स्थित जिला सहकारी बैंक की थी....
मेने बोला अम्मा आपका खाता इस बैंक में नही, सहकारी बैंक में है, आप वँहा जाओ...
क्या निजी बैंक का रौबदार गार्ड इनको अपने परिसर में प्रेवेश करने देगा??
आज भी निजीकरण के नाम पर एक बात दिमाग को कचोटती है -
प्रधानमंत्री @narendramodi जी, निजीकरण की ये एकदम सटीक परिभाषा है।।
जब देश की 30% आबादी महीने के 500 रुपये भी नही जुटा पाती तो क्या वो अपनी वार्षिक आय से भी ज्यादा मिनिमम बैलेंस रखने वाले बैंक मे अपना खाता चला पाएंगे?
महोदय, ये निजीकरण की रट छोड़िए और हो सके तो निजी बैंको द्वारा की जा रही लूटपाट को रोकने के लिए-
देश की 130 करोड़ जनता ने आप पर विश्वास किया है, उनके विश्वास को टूटने मत दीजिये... 🙏🙏
जय हिंद..!!
#StopPrivatization