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आत्मनिर्भरता
नीचे लिखे शब्द पूर्णतया मेरे व्यक्तिगत विचार हैं और आपके विरोधाभाषी विचार भी सर्वथा स्वीकार्य हैं।

पिछले दिनों एक जुमला फ़ेका गया देश के लोगों की तरफ़ जिसे आत्मनिर्भर भारत का नाम दिया गया। भक्त बड़े ही खुश हुए और इस जुमले का बाहें फैला के स्वागत करने मे लग गए।
इस आत्मनिर्भर भारत की परिभाषा किसी को समझ नहीं आयी पर गुणगान सब करने लगे। हमारे राष्ट्रभक्त नेताजी की परिभाषा हमारे पल्ले तो ना पड़ी।
अब इनकी राष्ट्रभक्ति पे भरोषा करें तो इन्हे देशी पूँजीपतियों मित्रों के हाथों मे अर्थव्यवस्था का केन्द्रीकरण मंजूर और देश की असंगठित क्षेत्र
की मजबूती इन्हे खलती है। नेताजी की आर्थिक नीतियाँ पूंजीवादी मित्रों की किस हद तक मददगार हैं इस बात का अंदाजा इस महामारी काल मे भी उनके द्वारा की गयी अधिग्रहणों की संख्या से और उनके लगातार बढ़ रही सम्पत्तियों से लगाया जा सकता है।
अब अगर नेताजी के व्यावसायिक वर्ग के प्रति निश्छल प्रेम पे भरोसा करते हैं तो आत्मनिर्भरता की सिर्फ एक ही परिभाषा हो सकती है के सभी लोग अपने मालिक स्वयं हो जाए और व्यवसाय करें तथा वेतनभोगी वर्ग मे न रहे। अब अगर ऐसा है तो छोटा सा गणित है की हमारे देश की जनसंख्या करीब 125 करोड़ है
और एक परिवार मे सदस्यों की औसत संख्या अगर 4 की माने तो भी देश मे 32 करोड़ व्यवसायी होने चाहिए। अब जबकि सारे लोग व्यवसाय कर के आत्मनिर्भर हो जाएंगे तो हमारा देश इन व्यवसायों को चलाने के लिए जरूरी श्रमशक्ति दूसरे देशों से आयात करेंगा ठीक उसी तरह जिस तरह हमारे यहाँ के डॉक्टर,
ईंजीनियर और साइंटिस्ट विदेशों मे जा कर वहाँ के अर्थव्यवस्था मे सहयोग कर रहे हैं।
आत्मनिर्भरता का आहवाहन एक अति महत्वाकांक्षी योजना रही है नेताजी की अपने आप को पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के समकक्ष खुद को स्थापित करने की जैसा उन्होने 1965 मे सारे देश को एकजुट
कर लिया था हफ्ते मे एक दिन उपवास रखने को जिससे उस समय PL 480 योजना के अंतर्गत गेहूं आयात मे हो रही अमेरिका की धांधलियों पे करारा आघात हुआ था। आत्मनिर्भर भारत का आहवाहन सिर्फ कोरी बातें है जो महत्वाकांक्षा और अपनी पुरानी आहवाहन MinimumGovernment Maximum Governance की असफलता
को छुपाने की कोशिश मात्र थी।
अब अगर Minimum Government Maximum Governance की बात करे तो ये नीति नेताजी अपने कुछ विशिष्ठ विदेशी मित्रों की जिनके यहा की अर्थव्यवस्था विकसित मनी जाती है से प्रेरित हो कर अपने देश पर थोपना चाहते थे जिसके पीछे मूल वजह थी भारत की जनता विनिवेश और
निजीकरन का विरोध न करे और ये अपने योजना मे सफल हो जाए और भारत एक खुला बाजार बन जाए तथा पूंजीवाद भली भांति फल फूल सके।
#StopPrivatisation
कुछ विकसित और अमीर देश तथा उनके यहा सरकारी कर्मचारियों की स्तिथि पे कुछ तथ्य पर गौर करिएगा per capita के आधार पर अमेरिका मे
हर 100000 की जनसंख्या पर 668 सरकारी कर्मचारी हैं वही भारत मे 139 (asper seventh pay commission)। जहां स्वीडन मे कुल कर्मचारियों का 34% सरकारी कर्मचारी हैं वहीं भारत मे ये आंकड़ा सिर्फ 4% ही है। जहा भारत सरकार कुल GDP का सिर्फ 12.74% खर्चा करती है कर्मचारियों पे
वहीं US 37.80%, EU 45.80% और जापान 39.39% खर्चा करती है अपनी कुल जीडीपी का। ये सभी आंकड़े The Economics Times मे छापे एक लेख से लिए गए हैं जिसके लेखक नेताजी की अपनी पार्टी के ही एक वर्तमान सांसद है।
#StopPrivatisation_SaveGovtJob
अब उल्लेखित तथ्यों पर आप स्वयं विचार करें और निर्णय लें के हमारे सरकार की वर्तमान आर्थिक नीतियाँ देश के लिए वरदान है या अभिशाप।
#SpeakUpforSSCandRaliwayStudents
#SavePSB
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