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Most recents (19)

शार्ट थ्रेड: निजीकरण

एक बार गांव में सूखा पड़ा। तो लोग गए सरकार के पास, कि "भाई तुम्हारे पास तो हर मर्ज़ की दवा है।"
सरकार बोली, "आओ कुआँ खोदते हैं।"
लेकिन किधर है पानी? पानी किधर है? ये रहा पानी राम के घर।

#StopPrivatisation
#StopSellingIndia
#PSBsNot4Sale
"हाँ तो भाई राम, अपनी ज़मीन में कुआँ तो खोदने दो, गांव वाले प्यासे हैं।"
राम बोला "ठीक है, हम गाँव वाले मिलकर कुआँ खोदते हैं।"

#StopPrivatisation
#StopSellingIndia
#PSBsNot4Sale
#StopPrivatizationOfPSBs
सरकार ने कहा "नहीं, तुम लोग Inefficient और Lethargic हो। तुम कुआँ खोदोगे तो पानी गांव वाले प्यासे मर जाएंगे। और फिर हो सकता है तुम कुआँ कूदने के बाद पानी भी बर्बाद करो। तुमको नहीं पता कि जमीन में पानी कम होता जा रहा है?"

#StopPrivatisation
#StopSellingIndia
#PSBsNot4Sale
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थ्रेड: #सबका_नंबर_आएगा

पहले सरकार बैंकरों के पीछे पड़ी। नोटबंदी करवाई, बिना कोलैटरल की लोन स्कीम्स लांच करवाई, बैंकों पर आधार और बीमे का बोझ डाला, स्टाफ में कटौती की। नोटबंदी के बाद साहब ने कहा कि बैंक वालों ने जितना काम नोटबंदी में किया उतना पूरी जिंदगी में कभी नहीं किया।
जो समझदार थे वो इस बेइज़्ज़ती को समझ गए। साहब ने एक झटके में बैंकरों सर्कस का निकम्मा जानवर और खुद को कुशल रिंगमास्टर घोषित कर दिया। कोरोना में बैंक खुलवाए जबरदस्ती के लोन बंटवाए लेकिन कोरोना वारियर्स मानने से मना कर दिया।
फिर बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव लेकर आयी। लोग खुश हो गए। अब मजा आएगा इन सरकारी बैंक वालों को। साले निकम्मे कहीं के। आटे दाल का भाव पता चलेगा जब प्राइवेट बैंक में आधी सैलरी पर काम करना पड़ेगा। लोन देने में नखरे करते थे, पासबुक प्रिंट करने में नखरे करते थे, दस नियम समझाते थे।
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थ्रेड: #ठेके_वाले_बाबू

लोगों को सरकार और राजनीती के बारे में काफी भ्रम हैं। लोगों को लगता है कि नेता नीति बनाते हैं। गलत। नेता केवल नीति बताते हैं। बनाने और लागू करने का काम नौकरशाह ही करते हैं। नौकरशाह को जनता नहीं चुनती। ना ही हटा सकती है।
ये परीक्षा देकर आते हैं और रिटायर होकर जाते हैं। वहीँ नेता को जनता चुनती है और जनता ही हटाती है। नौकरशाहों को नेता भी नहीं हटा सकते, केवल परेशान कर सकते हैं। संविधान का आर्टिकल 311 उनकी रक्षा करता है। मतलब नौकरशाह परमानेंट हैं और नेता टेम्पररी।
सरकार कोई भी आये नीति वही रहती है, क्यूंकि नौकरशाह भी तो वही है। हाँ उसको जनता के सामने लाने का तरीका बदल जाता है, क्योंकि नेता बदल जाता है। मंडल कमीशन बनाया इंदिरा ने और लागू किया राजीव गाँधी के धुर विरोधी वी पी सिंह ने।
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थ्रेड: हमारे सरकारी बैंक

@poorav100 के सुझाव और मदद से एक नयी सीरीज शुरू करने जा रहे हैं। पिछले बारह सालों में सरकारी बैंकों की संख्या 27 से बारह रह गयी है। इनको घटा कर चार करने पर विचार चल रहा है।
यहां बहुत से बैंकर ऐसे हैं जिन्होंने ज्वाइन किसी और बैंक में किया था और आज किसी और बैंक में हैं। बहुत से ऐसे कस्टमर हैं जिनका खाता उनसे बिना पूछे किसी दूसरे बैंक में भेज दिया गया। कई सरकारी बैंक इतिहास के गर्त में समा चुके हैं।
प्राइवेट बैंक इसलिए बंद होते हैं क्यूंकि वे चल नहीं पाते, मालिकों का लालच कह लीजिये या नाकामी। सरकारी बैंक सरकार की नाकामी की वजह से बंद होते हैं। इससे पहले कि बचे खुचे सरकारी बैंक भी गुमनानी के अँधेरे में खो जाएँ, आइये जानते हैं सरकारी बैंकों के बारे में।
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So according to budget govnt is ready to privatise 2 PSBs.

They arent actually just privatising banks..but there are several other things too which includes..

👉 Panic among staff
👉 What will happen to customers zero accounts and all the govnt schemes of which..

1/n
the govnt always boast about in the campaign.. Private players were never intrested in it..
👉 Why is this privatisation happening?? Reason banks are in loss?? But why ?? Is there anyone who cares about this??
👉 Will there be change is staff after privatisation??

2/n
👉 Is staff wont change how will things turn up? What magic will happen that these loss making banks will start earning profits?
👉 if banks wont earn profit also then why will any private player invet on it??
👉 For getting more profits will they stop govnt schemes?? 🤔🤔

3/n
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अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों के सर फोड़ने का तरीका कोई कृष्णमूर्ति सुब्रह्मनीयन साहब से सीखे। ये न केवल नालायक हैं बल्कि झूठे और मक्कार भी हैं। पॉइंट बाई पॉइंट थ्रेड :

moneycontrol.com/news/business/…
1. इन्होने ने बैंकों की हालत के लिए रघुराम राजन के कार्यकाल को जिम्मेदार ठहराया है। चलो मान लिया कि उनकी गलती थी। आपने क्या किया उसके बाद? जिस रिस्ट्रक्चरिंग को गालियाँ दे रहे हैं वो बंद हो गयी क्या?
2. एक तरफ आप बैंक और कॉर्पोरेट के कोलैबोरेशन को गरिया रहे हैं। दूसरी तरफ आप कॉर्पोरेट को बैंकिंग में एंट्री देने की वकालत कर रहे हैं।

3. आप कह रहे हैं कि कॉर्पोरेट वाले बैंकों पर दबाव बनाते हैं लोन रिस्ट्रक्चरिंग के लिए।
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सरकारी नौकरी कोई चाहता क्यों है
और
लोग सोचते क्या है इन नौकरी करने वालो के बारे में।
एक छोटी सी कोशिश है खुद भी समझने की (आपके विचारो से) और आपको भी एक बार सोचने पर विवश करने की कि क्यों आपने ये क्षेत्र चुना था
1/n
#StopPrivatisation
#SavePSBs
नेता ये सोचते हैं कि जिन्हें कही नौकरी नहीं मिलती वो सरकारी नौकरी पा जाते हैं।
आम जनता सोचती है सरकारी कर्मचारी चोर है ये काम नहीं करते और मुफ्त की खाते है।
जबकि एक शिक्षित युवा को ठीक से पता है कि कौन चोर हैं
कोन मुफ्त की खाता है
कोन योग्यता नहीं रखते
#StopPrivatisation
तो शुरू करते हैं
जिसकी आर्थिक स्थिति सिर्फ इतनी सी ही हो कि उसके घरवाले किसी तरह 10 वी पास करवा पाए और फिर बोले कि घर में तुम लोग 4 भाई बहिन हो और हम 2 लोग तुम्हारे मां बाप फिर तुम्हारे दादा दादी।
तुम घर में सबसे बड़े हो अगर तुम ही अपने पिताजी का हाथ नहीं बंटाओगे तो कोन करेगा
N/N
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NBFCs were supposed to fill the financial gaps left by banks. In the aftermath of the 2008 financial crisis, government had special focus on NBFCs. Two reasons: One, Banks have strict rules with respect to lending while NBFCs can be lenient.
Two, It is much easier to get NBFC license than Bank license. To give impetus to economic growth after 2008 financial crisis, government focused on excessive lending. Loans on phone calls was hallmark of that era. Roots of today's bad loans can be traced back to that period.
Therefore, NBFCs were promoted. Just like Cooperative banks, most of the NBFCs were either owned or controlled by politicians. NBFCs gave powerful people easy access to public money. As expected, under patronage of politicians soon NBFCs became instruments of corruption.
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थ्रेड: हलवाई का बेटा
#StopPrivatisation

सरकार देश की जीडीपी विकास दर को डबल डिजिट में ले जाने के सपने दिखा रही है। लेकिन उसके लिए जैसे कदम उठाये जा रहे हैं GDP "कुछ कुछ होता है" की काजोल के पल्लू की तरह नीचे ही सरकती जा रही है।
आजकल सरकार कॉस्ट कटिंग के पीछे पागल है। अमिताभ कांत जैसे कुनीतिकार और कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम जैसे अनर्थ शास्त्रियों को देख कर एक कहानी याद आती है। एक हलवाई की दुकान थी। अच्छी चलती थी। हलवाई का एक बेटा था। हलवाई खुद आठवीं पास था लेकिन बेटे को MBA कराने विदेश भेजा।
अच्छी नौकरी भी लग गयी थी लेकिन जॉइनिंग में टाइम था तो बेटा घर आ गया। बाप को भी लगा MBA करके आया है तो बिज़नेस में हाथ बंटाएगा। उसकी पढाई का कुछ फायदा बाप के हलवाई के धंधे को भी होगा। इसलिए लड़के को अपनी दुकान पे ले गया।
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Thread:#StopPrivatisation
Sir, You seem to be quite unaware of the idea of India, since you already declared it "rusted n rotten". India is the only continuous civilization in the world (many anthropologists also claim same for China,but the Communist revolution has changed it).
Continuous civilization means civilization without break. Today's every modern civilization suffered a break while shifting from traditional one. Civilization break is a period when civil wars, violent revolutions, riots take over the society.
After that traditional values are forcefully replaced by modern values. Population gets homogenized. Those sticking to the former are treated as outcasts. In India, such widespread civil wars never happened, despite being a diverse society.
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Thread: मितव्ययी सरकार

#StopPrivatisation
#speakup
#GDP

देश की जीडीपी बहुत गिर गयी है। इसलिए सरकार आजकल खर्चे कम करने में लगी है।
अब MP, MLA, और मंत्रियों के तो खर्चे कम होने से रहे। भई मंत्री तो 70 की उम्र का है तो गर्मी में नहीं रह सकता उसको तो AC चाहिए, सर्दी में नहीं रह सकता, हीटर चाहिए, पैदल नहीं चल सकता, गाड़ी चाहिए, और इन सबके लिए फ्री बिजली और डीजल चाहिए।
बड़ा सा बगीचा है उसके लिए दिन का हजारों लीटर पानी चाहिए। फिर सेवा करने के लिए घर में 10-12 नौकर चाहिए, खानसामा चाहिए, माली चाहिए, ड्राइवर चाहिए, 20-25 सिक्योरिटी गार्ड चाहिए। फिर फ्री की हवाई यात्रा, विदेश यात्रा भी चाहिए।
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Thread: आराम पसंद विपक्ष

देश की दुर्दशा के चूल्हे में ही राजनीति की रोटियां सिकती हैं। सबने सेकी हैं। सात-आठ साल पहले भी देश की हालत खराब थी। कुछ घोटालों की मेहरबानी, कुछ पॉलिसी पैरालिसिस की।
एक मंझे हुए राजनेता ने उस संकटकाल को बढ़िया भुनाया। आज फिर देश संकट में है। ये काल भी दुर्दशा का ही है। विशेषकर अर्थव्यस्था के सितारे गर्दिश में हैं। और कारण किसी से भी छुपे नहीं हैं। सरकार की बेतरतीब नीतियां, पदाधिकारियों का अहंकार, भांग खायी हुई मीडिया।
ऐसे में सबको आशा होती है विपक्ष से। इसलिए नहीं कि विपक्ष के नेता बेहतर हैं या ईमानदार हैं। बल्कि इसलिए कि, शायद इस संकट के समय में वो भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने की कोशिश करेगा और सरकार पर दबाव बनाएगा। शायद सरकार उससे चेत जाए।
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10 Reason why privatisation is bad for you

1. Your services get worse
Public services involve caring for people. But private companies make a profit from public services by cutting corners or underinvesting. #StopPrivatisation
2. Privatisation costs you more
You pay more, both as a taxpayer and directly when they privatise public services. #StopPrivatisation
3. You can't hold private companies accountable
If a private company runs a service, they are not democratically accountable to you. You don't have a voice. #StopPrivatisation
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आत्मनिर्भरता
नीचे लिखे शब्द पूर्णतया मेरे व्यक्तिगत विचार हैं और आपके विरोधाभाषी विचार भी सर्वथा स्वीकार्य हैं।

पिछले दिनों एक जुमला फ़ेका गया देश के लोगों की तरफ़ जिसे आत्मनिर्भर भारत का नाम दिया गया। भक्त बड़े ही खुश हुए और इस जुमले का बाहें फैला के स्वागत करने मे लग गए।
इस आत्मनिर्भर भारत की परिभाषा किसी को समझ नहीं आयी पर गुणगान सब करने लगे। हमारे राष्ट्रभक्त नेताजी की परिभाषा हमारे पल्ले तो ना पड़ी।
अब इनकी राष्ट्रभक्ति पे भरोषा करें तो इन्हे देशी पूँजीपतियों मित्रों के हाथों मे अर्थव्यवस्था का केन्द्रीकरण मंजूर और देश की असंगठित क्षेत्र
की मजबूती इन्हे खलती है। नेताजी की आर्थिक नीतियाँ पूंजीवादी मित्रों की किस हद तक मददगार हैं इस बात का अंदाजा इस महामारी काल मे भी उनके द्वारा की गयी अधिग्रहणों की संख्या से और उनके लगातार बढ़ रही सम्पत्तियों से लगाया जा सकता है।
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#Thread : Bitter Truth of Capitalism

In this era of Corporatarisation, one of important lesson, the management try to teach their new recruits is

WIIFM (What's In It For Me)

Bcoz they want the profit earning robots not human as their employees

#StopDisinvestment

1/n
Indian Banking Industry is no exception !!

Even though, Public Sector Banks are aimed for the financial inclusion of unbanked class too, Pvt Banks have aim to earn the profits via serving (better I term exploiting) elite class !!

#StopDisinvestment
#StopPrivatisation

2/n
A big proof to this statement is the meagre contribution from Pvt Banks in many Flagship schemes of Govt like PMJDY, PMMY, PMSBY, PMJBY etc. which were aimed at society upliftment !!

#StopDisinvestment and #StopPrivatisation is much needed to avoid shift in aims for PSBs !!

3/n
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Customer Service is the key to survive for PSBs

The thread is a little long but could be useful in the context of enhancing the customer service standards in branch banking specifically for PSBs..

Out of my 13+ yrs of experience with three different kind of banks..

#SavePSB
I have no shame to accept the fact that PSBs are far below in customer service standards in banking. Data and reports may differ but it's an outcome of my banking experience.

You may get a clue n a way to act on for the survival of PSB status of (y)our bank n #StopPrivatisation
Even though after 1994, entry of big pvt banks in the banking, the PSBs have started to understand the essence of customer service but still there is a long way ahead..

It took time to realise d competition they have from pvt players to retain elite customers..

#SavePSB
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In Simple Words...
Follow rules of 3 Monkeys 🐒 of #GandhiJi and use the word #NPA in place of #Evil

#SeeNoNPA
#SpeakNoNPA
#HearNoNPA

and when there is no #NPA you don’t have to follow any legal recourses to recover it from #Defaulters

#StopPrivatisation #SavePSBs
it’s like someone has been diagnosed fatal disease like #Cancer which is at very early & initial stage where it can be easily treated and cured but instead of start medical treatment, he has been asked not to believe in diagnostics reports and keep quite & do nothing #SaveBanks
Moreover, he has been asked not to believe in diagnostics reports & start thinking that he is very healthy and don’t have any problems and not to take any medicine until the disease reaches at its last stage and he start dying. #SaveBanks
@idesibanda @Bankers_United @bankers_we
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Thread:
डिस्क्लेमर: यह एक निराशावादी thread है
सामाजिक आंदोलन दो तरह के होते हैं। "ओल्ड सोशल मूवमेंट (OSM)" और "न्यू सोशल मूवमेंट(NSM)"। OSM जो कि पहले काफी प्रचलित था, समाज के निम्न वर्ग के लिए होता है। इसमें जो पीड़ित है वहीं आंदोलनकारी भी होता है। वही सड़क पे उतरता है।
NSM आजकल प्रचलित है। इसमें मुख्यतया मिडिल क्लास प्रताड़ित वर्ग होता है। लेकिन चूंकि मिडिल क्लास के पास समय की भीषण कमी होती है वो खुद सड़क पे उतर के सरकार का विरोध नहीं कर सकता। इसके कई कारण हैं। एक तो इमेज का इश्यू। मिडिल क्लास की इमेज शांत स्वभाव वाले मेहनतकश इंसान की होती है।
सड़क पे उतारने से उस इमेज बार बुरा असर पड़ता है। दूसरा ये कि मिडिल क्लास को डरना आसान है। लोअर क्लास की तरह ये जेब से खाली नहीं होते। इनके पास खोने के लिए काफी कुछ होता है। सड़क पे उतरेंगे तो जो है उसके खोने के चांस रहते हैं। उस थोड़े को बचाने के चक्कर में ही ये सहनशील हो जाता है
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Customer Service is the key to survive for PSBs

The thread is a little long but could be useful in the context of enhancing the customer service standards in branch banking specifically for PSBs..

Out of my 13+ yrs of experience with three different kind of banks..

#SavePSB
I have no shame to accept the fact that PSBs are far below in customer service standards in banking. Data and reports may differ but it's an outcome of my banking experience.

You may get a clue n a way to act on for the survival of PSB status of (y)our bank n #StopPrivatisation
Even though after 1994, entry of big pvt banks in the banking, the PSBs have started to understand the essence of customer service but still there is a long way ahead..

It took time to realise d competition they have from pvt players to retain elite customers..

#SavePSB
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