"यद्यपि पूज्यपाद भगवान्महषि जैमिनिकृत एक कर्ममीमांसादर्शन उपलब्ध होता है, परन्तु वह उत्तरार्द्ध है, सम्पूर्ण नहीं है ; क्योंकि उसमें केवल वैदिक यज्ञोंकी मीमांसा है, जिसकी इस समय समयकी प्रतिकूलता और साधन-सामग्रीके अभावसे विशेष उपयोगिता नहीं रही है।
1/2
इस समय कर्मके गम्भीर रहस्योंका उद्घाटन करनेवाला कर्ममीमांसाके इस पूर्वाद्ध दर्शनकी, जिसके प्रणेता भगवान् महर्षि भरद्वाज हैं, जो दर्शनसिद्धान्त बहुकाल से लुप्त था, बड़ी आवश्यक्ता और उपयोगिता है ।"
2/2
"भगवत् पूज्यपाद गुरुदेवप्रभुका अनुभव था कि, मन्त्रशक्ति, तपःशक्ति, और योगशक्ति, जिनका वर्णन शास्त्रों में आया है, सब सत्य हैं। अब भी मनुष्य सदाचार और उपासनाद्वारा नित्यपितरोंकी कृपा सुगमतासे प्राप्त कर सकता है।
1/
शरीर और मनकी पवित्रता, चित्तका तीव्र संवेग, स्थिर धारणा और ध्यानसिद्धि तथा द्रव्यशुद्धि, क्रिया शुद्धि और मन्त्रशुद्धिद्वारा साधक देवताओंका दर्शन अवश्य प्राप्त कर सकता है
2/
तथा अपने नामरूपके अभिनिवेशको त्याग देने और एकतत्त्वके अभ्यासपूर्वक शरणापन्न होनेसे नित्य ऋषियोंके दर्शन कर कृतकृत्य हो सकता है।"
3/3
I thought it's in Hindi. 🤣🤣

But that's the idea behind the tweet ie make RW on SM realize their ignorance about and unfamiliarity with the parlance of our Sages.

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14 Oct
"अब वर्णाश्रम-शृङ्खलाकी भित्ति कह रहे हैं---

सतीत्वमूलं तत् ॥ ४४ ॥
सतीत्व उसका मूल है ॥ ४४ ॥
वर्णाश्रम-शृङ्खलाकी भित्ति और उसका विज्ञान हृदयङ्गम करानेके अभिप्रायसे सबसे प्रथम पूज्यपाद महर्षि सूत्रकार कह रहे हैं कि, यदि विचारके देखा जाय, तो यही सिद्ध होगा कि,
1/
वर्णाश्रम शृङ्खलाका मूल नारीजातिका सतीत्व है। आश्रमधर्मका मूल वर्णधर्म है और वर्णधर्मका मूल रजोवीर्यकी शुद्धि है, रजोवीर्य शुद्धिका मूल नारीजातिमें त्रिलोकपवित्रकारी सतीत्वधर्म है। गृहस्थगण चाहे कितना ही सदाचारसे रहें, पुरुषगण चाहे कितने ही संयमी हों,
2/
यदि नारीजाति अपने तपोधर्मकी रक्षा न करे तो वर्णकी शुद्धि और आश्रमकी शुद्धि दोनों नष्ट हो जायगी और दोनोंकी शृङ्खला बिगड़ जायगी। दूसरी ओर विचारनेयोग्य विषय यह है कि, पुरुषका कदाचार उसके व्यक्तित्व तक ही पहुँचता है और स्त्रीका कदाचार उसके व्यक्तित्व, उसकी सन्तति, उसका कुल,
3/
Read 51 tweets
13 Oct
As a Hindu what do you make of a description this in your Scriptures?

उभय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी॥
सरिता बन गिरि अवघट घाटा। पति पहिचानि देहिं बर बाटा॥2॥
1/
भावार्थ : दोनों के बीच में श्री जानकीजी कैसी सुशोभित हैं, जैसे ब्रह्म और जीव के बीच माया हो। नदी, वन, पर्वत और दुर्गम घाटियाँ, सभी अपने स्वामी को पहचानकर सुंदर रास्ता दे देते हैं॥

2/
जहँ जहँ जाहिं देव रघुराया। करहिं मेघ तहँ तहँ नभ छाया॥

भावार्थ : जहाँ-जहाँ देव श्री रघुनाथजी जाते हैं, वहाँ-वहाँ बादल आकाश में छाया करते जाते हैं।

3/
Read 7 tweets
11 Oct
All and any kind of animal sacrifice is banned in Kaliyuga.
As per Karmakanda of Vedas there are certain Yagnas and rituals where sacrifice of an animals is prescribed. But all such rituals are banned in Kaliyuga.

Smriti texts say:

अक्षता गोपशुश्चैव श्राद्धे मांसं तथा मधु ।
देवराच्च सुतोत्पत्तिः कलौ पञ्च विवर्जयेत् ।

ie In Kaliyuga use of meat and wine in Shraad, Pashubali, Niyoga etc are banned.

Read 24 tweets
11 Oct
"उमा कहउँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजनु जगत सब सपना॥"~ श्रीरामचरितमानस

भावार्थ : हे उमा! मैं(महादेव) तुम्हें अपना अनुभव कहता हूँ- जगत को स्वप्नवत जानना ही श्रीहरि का सच्चा भजन है।
This is how it's mostly interpreted and understood. But It's Upsana oriented (उपासनापरक) understanding of it.

We should not forget that who is saying it. It's Ishwara Himself in the form of Mahadeva.
1/
Read 7 tweets
7 Oct
Here is a prediction. This Shyoraj Jivan is a stealth convert. This is a weird name in UP.
🤣🤣
It seems of Padre Guru of this Christian terrorist @ShyorajJValmiki is a pastor named Rajendra Lal. He runs an youtube channel Yishu Darbar.

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Read 5 tweets
6 Oct
"Most Americans simply assumed that the uncivilized Native American was doomed for extinction in the face of civilization—similar to the idea that traditions such as Hinduism are doomed to succumb eventually to what is called ‘progress’."
"The theoretical frame work created by Christian theology and Enlightenment notions of progress and history became the received wisdom about the Natives’ inevitable fate."
Richard Slotkin on the Frontier Myth.

"The Myth of the Frontier is our oldest and most characteristic myth, expressed in a body of literature, folklore, ritual, historiography,and polemics produced over a period of three centuries.1/
Read 55 tweets

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