#justice4Nikita

90% लोग ये खबर पढ़ चुके और पढ़ कर स्क्रोल कर दिया क्योंकि निकिता की जाति उनकी outrage करने की श्रेणी को सूट नही करती...
इसलिए वो चुप रहेंगे...

निकिता को गोली मारने वाले तौफीक का नाम किसी भी समाचार में पढ़ने को नही मिलेगा..

खबर होगी - युवक ने युवती को गोली मारी
एक्त्वम का नारा लगाकर सामाजिक सौहार्द फैलाने का ढोंग करने वाले तनिष्क के समर्थक अब रजाई ओढ़ के सो जाएंगे...

नवरात्रि में देवी पूजा करने वालो की तुलना बलात्कारियों से करने वाली वकील राजावत मेडम का मुंह फेविकॉल के मजबूत जोड़ से चिपक जाएगा...
निकिता का सरनेम कुछ और होता तो आज अभी यही बुद्धिजीवी चूड़ियां तोड़ तोड़ कर रो रहे होते...

प्लेकार्ड लेकर खड़े होने वाली महिलावादी सेलिब्रिटी भी अभी कंही न कंही छुपी हुई नजर आएगी....
#justicefornikita लिख रहे भाइ बहन भी कुछ देर में आईपीएल के मैच पर चर्चा शुरू कर देंगे...

तनिष्क के एड से सामाजिक सौहार्द के गीत गाने वालो आज निकिता के माता पिता के सामने जाकर ये भाषण देना...

थूक देंगे वो तुम्हारे मुंह पर...
#lovejihaad सच्चाई है... हमे इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार करना ही होगा...

बिल्ली के आने पर जैसे कबूतर आंखे मूंद कर अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है वैसे आंखे मूंद कर बैठने से काम नही चलेगा...
लगातार फिल्मों विज्ञापनों के जरिये किशोर वर्ग की मानसिकता में जो गंदगी घोली जा रही है... उससे अपने परिवार के बच्चो को बचा लीजिये....

ये युग पाखण्ड से भरा युग है... इसमें पीड़िता और बलात्कारी की जाति/धर्म देखकर ही लोग अपनी चुप्पी तोड़ते है... धिक्कार है ऐसे पाखंडियों पर..

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25 Oct
Bankers' movement और हम

किसी भी आंदोलन की शुरुआत एक असंतोष से होती है... उस असंतोष को धीरे धीरे बाकी लोगो तक पहुंचाना और फिर एक कारवां बनता जाना आंदोलन के उदय का चरण है...
एक टीम बनने के बाद उस टीम को "बनाये रखना" बहुत ज्यादा चुनोतिपूर्ण होता है
आप जिसके खिलाफ संघर्ष कर रहे है उसके विरुद्ध कार्ययोजना बनाने के साथ साथ ही आपकी अपनी टीम में समन्वय बिठाने की भी जिम्मेदारी होती है...
टीम भी कई तरीके से बनाई जा सकती है...
एक तो जैसेकि झुंड... उसमे किसी भी सदस्य का कोई व्यक्तिगत विचार नही होता... सब सदैव एकमत रहते है
एक होती है भीड़... जिसमे कोई भी जो मर्जी कर रहा है, अनुशासन हीनता और हुड़दंग भीड़ की निशानी है....

लेकिन आंदोलन को सफलता न तो झुंड के साथ मिल सकती है और न ही भीड़ के साथ...
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14 Oct
तनिष्क और हमारा समाज

सच कहूं तो तनिष्क का यह विज्ञापन देखने से पहले मैं तनिष्क को नहीं जानता था... क्योंकि मैं एक ऐसे साधारण परिवार से आता हूं जहां घड़ी पहनना भी लग्जरी माना जाता है...
लेकिन जब मैंने यह देखा तो विचारों के कई आयाम खुले और सोचा मुझे इस बारे में लिखना चाहिए...
दरअसल जिस समय मैं यह विज्ञापन देख रहा था, उसके तुरंत बाद मैंने एक खबर पढ़ी जिसमें दिल्ली में रोहित नाम के एक 19 वर्ष के लड़के को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की से फोन पर बात करता था... यह "महत्वहीन" खबर बहुत कम अखबारों के कोने में छपी...
इसलिए यह खबर बहुत कम लोगों ने पढ़ी होगी लेकिन अगर इसका उल्टा हो जाता तो लोकतंत्र खतरे में आ जाता....
इस खबर और इस विज्ञापन ने मुझे अपने देश की सामाजिक समरसता की कहानी बहुत अच्छे से समझा दी...
दरअसल हमारे देश के विज्ञापनों, धारावाहिकों और फिल्मों में एक प्रोपेगेंडा चल रहा है...
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30 Sep
"लोकतंत्र एक छलावा है"

हमारे तथाकथित "लोकतंत्र" में हमारी बेटियां सुरक्षित नही है... अब में कुछ उन देशों की बात बताता हूँ जंहा लोकतंत्र नही है या बहुत अल्प विकसित है लेकिन उनकी बेटियों की तरफ कोई आंख उठा कर भी नही देख सकता....
1- उत्तर कोरिया

इसे हम सभी एक तानाशाह देश के रुप में जानते हैं. लेकिन इस तानाशाह देश की एक खासियत ये है कि यहां रेपिस्टों के लिए रहम की कोई गुंजाइश नहीं है. यहां रेपिस्टों को अधिकारी तुरंत ही सर में गोली मारकर सजा देते हैं.
2- चीन
रेपिस्टों के लिए यहां भी कोई दया की गुंजाइश नहीं होती. अगर अपराध साबित हो गया तो अपराधी के लिए बचने का कोई रास्ता नहीं. इन्हें गर्दन और पीठ के ज्वाइंट पर गोली मारी जाती है. और अगर अपराधियों को इतनी आसान मौत ना देनी हो तो उनका बधिया (Castration) कर दिया जाता है.
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27 Sep
"रविवार और कपड़ों की धुलाई"

कपड़ो की धुलाई एक बहुत ही under rated टॉपिक है... आज तक किसी भी राजनीतिक पार्टी ने इसे अपने घोषणा पत्र में जगह नही दी, न ही कभी संसद में इस विषय पर चर्चा की गई... यंहा तक कि संविधान निर्माताओं को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में एक बार भी इसका खयाल नही आया😥
देखा जाए तो ये हर आम आदमी से जुड़ा हुआ मुद्दा है लेकिन अभिनेत्री के शाम के भोजन की एक चपाती तक कि जानकारी रखने वाले समाचार पत्र और क्रांतिकारी मीडिया हाउस भी कभी इस महत्वपूर्ण मुद्दे को कवर नही करते... आज हम इस अति महत्वपूर्ण विषय पर गम्भीर चर्चा करेंगे..
कपड़े धोने का निर्णय लेने के लिए एक अदम्य साहस, कड़ी इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है...
हर सप्ताहांत में छुट्टी का खयाल आते ही हर्ष के बादल उमड़ आते है, लेकिन उन बादलों को आंधी की तरह उड़ा ले जाता है "कपड़े भी धोने पड़ेंगे" ये खयाल... और मन मे एक उदासी छा जाती है..
Read 9 tweets
26 Sep
ये बिहार का एक वीडियो देखिये...
यंहा सरकार का विरोध करने वालो पर समर्थन करने वाले डंडे बरसा रहे है (पोलिस की मौजूदगी में)
हमारा देश इस समय दुबारा अधिनायकवाद के दौर से गुजर रहा है. ठीक ऐसा ही इंदिरा गांधी के समय हुआ था जब समर्थकों ने Indira Is India का नारा लगाया था...
वैसे देखा जाए तो जिस-जिस देश में जब निराशा, अव्यवस्था, असंतोष तथा अभाव होने लगता है वहीं अधिनायकतंत्र का उदय होता है... अधिनायकतंत्र में शासन कुशलता होती है साथ ही यह राष्टींयता की भावना जाग्रत करने में भी सहायक है। लेकिन इसके दोष देखे जाए तो ये गुण दब जाते है..
अधिनायक वाद में क्रियाशीलता तथा स्वतंत्रता की भावना का पूर्णतः लोप हो जाता है, क्योंकि उन्हें बोलने अथवा विचारने आदि की किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं रहती है... यह व्यवस्था मनुष्य को मनुष्य नहीं बनाती तथा उसे मनुष्य के रूप में रहने भी नहीं देती है..
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25 Sep
किसान बिल

सोशल मीडया पर ये शब्द बहुत बार सुनने को मिल रहा है और लोग इसको तरह तरह के तथ्यों के साथ पेश कर रहे है... मीडिया चूंकि व्हाट्सएप चैट पढ़ने में व्यस्त है तो सच्चाई कई रूपों में सामने आ रही है...
मुझे जितना कुछ समझ आया है वो में बताने का प्रयास कर रहा हूँ
दरअसल केंद्र सरकार द्वारा कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, ‘मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 ये तीन विधेयक पारित किए गए है..
केंद्र सरकार के अनुसार ये विधेयक किसानों को अपनी फसल कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) या यूं कहें कृषि मंडी से बाहर बेचने की सुगमता के लिए है... लेकिन इन विधेयकों से किसानों को ये आशंका है कि इससे बड़े व्यापारी उन पर हावी हो जाएंगे और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म कर दिया जाएगा
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