तो जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट है, यह थ्रेड बैंकों में उच्च प्रबंधन द्वारा फैलाये गए रायते पर आधारित है। किसी भी बैंक के NPA में अधिकतर भाग कॉर्पोरेट NPA का ही होता है जो कि उच्चाधिकारियों द्वारा ही स्वीकृत किये जाते हैं।
वहीँ दूसरी ओर निचले स्तर पचास हजार के लोन में भी स्टाफ की एकाउंटेबिलिटी बिठा दी जाती है। कैश में 50 रूपये शार्ट होने पर कस्टोडियन की जेब से भरवाने वाले उच्चाधिकारी कैसे हजारों करोड़ का लोन NPA करा के बैठ जाते हैं, ये उसी की कहानी है।
भाग 1: रूचि सोया (Ruchi Soya)
1972-73 में शुरू हुई इस कंपनी ने 2011 तक बहुत अच्छे दिन देखे। दुनिया की टॉप 200 उपभोक्ता उत्पाद कंपनियों में शामिल इस कंपनी का मार्केट वैल्यूएशन लगभग 36,000 करोड़ रूपये तक पहुँच गया था।
2011 में खराब मानसून, और सरकारी विदेश व्यापर नीतियों में बदलाव के कारण इसके बुरे दिन शुरू हुए। लोन का आंकड़ा बढ़ता गया और मुनाफा घटता गया। 2015 में अपने घाटे को पूरा करने के चक्कर में कंपनी ने Castor Seeds (अरण्डी के बीज) के Commodity Futures में घपला किया।
Commodity prices जमीन पर आ गिरे, और कंपनी को भी भारी घाटा झेलना पड़ा। 2016 में फर्जीवाड़े के कारण SEBI ने रूचि सोया को स्टॉक मार्केट से बाहर कर दिया। 2018 आते आते कंपनी दिवालिया होने के कगार पर आ गयी।
लगभग 12,146 करोड़ रूपये की रिकवरी को लेकर SBI के नेतृत्व में बैंको ने NCLT की ओर रुख किया। NCLT ने वही किया जिस काम के लिए वो जानी जाती है। IBC के तहत बारह हजार करोड़ का लोन घटा के सीधा 4,350 करोड़ कर दिया। बाकी का पैसा कच्ची घोड़ी (Haircut) बोल के माफ़ कर दिया।
अब आते हैं असली कहानी की ओर। रूचि सोया को खरीदने के लिए बोलियां मंगवाई गई। अडानी ने सबसे ऊंची बोली लगाई 6000 करोड़ की। इसमें से 4,300 करोड़ से रूचि सोया का लोन चुकाना था, और बाकी का कंपनी में लगाना था। डील लगभग फाइनल हो चुकी थी।
तभी अचानक कहीं से बाबा रामदेव आये और बाजी पलट दी। वैसे भी जिस आदमी ने अपना नूडल्स लॉच करवाने के लिए मार्केट लीडर मैगी को बैन करवा दिया, उसकी बिज़नेस क्षमताओं पर अविश्वास नहीं करना चाहिए। NCLT की निगरानी में पूरे 4,350 करोड़ में रूचि सोया खरीद लिया।
हमारे बैंकों के उच्चाधिकारी, जो ड्यू डिलिजेंस के नाम पर आम बैंकर की खाल उधेड़ देते हैं, ख़ुशी ख़ुशी 3,200 करोड़ बाबाजी के हवाले कर दिए। मतलब रूचि सोया से एक भी रुपया रिकवर नहीं हुआ और ऊपर से बत्तीस सौ करोड़ और लुटा दिए।
पतंजलि ने रूचि सोया तो एक्वायर किया मगर बैंकों का एक भी रुपया नहीं चुकाया (ऐसा कई लोग क्लेम करते हैं)। लेकिन NCLT और बाबाजी का खेल यहीं ख़तम नहीं हुआ। सिर्फ बैंकों को लूटने से इनका पेट नहीं भरा। अभी तो इन्वेस्टर्स को भी लूटना बाकी था।
रूचि सोया रिस्ट्रक्चरिंग प्लान के तहत २ रूपये के शेयर की कीमत पहले २ पैसे की गयी। फिर 100 शेयरों को मिला कर एक शेयर बनाया गया। मतलब जिसके पास पहले 100 रूपये के शेयर थे उसकी कीमत रिस्ट्रक्चरिंग के बाद 1 रुपया रह गयी। 24 जनवरी को रूचि सोया की री-लिस्टिंग हुई।
और तब से लेकर जुलाई तक रूचि सोया में रोज ही अपर सर्किट लगा। नवंबर में ३ रूपये का शेयर जुलाई में 1500 पार कर गया। और उसके बाद से लोअर सर्किट लगा हुआ है। मतलब किसी को भी इस बढ़ोतरी का फायदा नहीं हुआ, सिवाय प्रोमोटर्स यानि बाबाजी के, जिनके पास 99% शेयर थे।
यानि, इन्वेस्टर्स बर्बाद, बैंक बर्बाद, और बाबाजी मालामाल। Moneylife.in के अनुसार बैंकों ने इस पैसे की रिकवरी के लिए कोई प्रयास नहीं किये। रिस्ट्रक्चरिंग के लिए भी कोई कदम नहीं उठाये गए।
अगर बैंक चाहते तो उस लोन को इक्विटी में कन्वर्ट करके अपना घटा बचा सकते थे, जैसा कि अक्सर प्राइवेट बैंक करते हैं। अब अंदर क्या चल रहा है ये या तो बाबाजी जानते हैं या बैंक के उच्चाधिकारी।
डिस्क्लेमर: यहाँ दी गयी समस्त जानकारी और तथ्य, न्यूज़ आर्टिकल्स से उठाये गए हैं। सम्बंधित पार्टी से संपर्क कर किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं की गयी है।
DHFL का फ्रॉड अकेला नहीं है। इसके साथ PMC, HDIL के फ्रॉड भी जुड़े हैं (इनके बारे में कभी और बात करेंगे)। DHFL का केस समझने के लिए पहले हमें वाधवान फैमिली को समझना होगा।
मैं ज्यादा डिटेल में नहीं जाऊंगा। आप ये फोटो देखिये।
DHFL एक डिपॉजिट टेकिंग NBFC है। 1984 में शुरू हुई इस कंपनी का मुख्य उद्देश्य था लोअर और मिडिल क्लास हाउसिंग लोन देना। DHFL एक ज़माने में देश की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी हुआ करती थी।
Two gruesome, horrendous, abhorrent incidents happened today. One in Vallabhgadh, another in Munger. Another happened few days ago in Hathras. These are the few which are fortunate enough to become national news.
There are hundreds which happen everyday, cruel enough to shake the conscience of the society, but not even reported. Every such incident, reported or not, create deep divides in the society, on various lines, caste, religion, gender, region, political ideology, language, race.
The society which is already going through transformation, is breaking apart by every such incident. Deep-seated feeling of discrimination is turning into open hatred. Never before, it was on such wide scale, permeating through every strata of the society.
आजकल पूंजीवाद का दौर है। यहां हर वस्तु और व्यक्ति का मूल्य होता है। यह मूल्य किसी भी रूप में हो सकता है। अभी कल परसों सौम्या जी ने अपनी कामवाली का जीरो बैलेंस खाता खुलवाया ट्विटर पर पोस्ट किया।
जीरो बैलेंस खाता फ्री में खुलता है मगर आजकल के पूंजीवाद के युग में फ्री का क्या काम। मैडम जी ने तुरंत केक मंगवा कर ट्विटर पे इस नेक काम का ढिंढोरा पीटा और फुटेज कमाई। डेमोक्रेसी राजनीती का पूंजीवाद है।
जैसे पूंजीवादी का एकमात्र उद्देश्य होता है मुनाफा, वैसे ही लोकतंत्र में नेता का एकमात्र उद्देश्य होता है वोट। जैसे पूंजीवाद हर चीज में अपना फायदा ढूंढ लेता है वैसे ही राजनेता भी वोट ढूंढने में माहिर होते हैं। कैसे भी मिले, कहीं से भी मिले, बस वोट मिले।
1. सरकारी स्कीमों को बैंकों पर लाद दिया 2. स्टाफ की भीषण कमी 3. बैंक अफसर की सैलरी केंद्रीय क्लर्क से भी काम, क्लर्क की सैलरी चपरासी से भी कम 4. चपरासी की भर्ती ही ख़तम 5. वेतन संशोधन में देरी
#ScrapIBA 6. बैंकर की समाज में कोई इज्जत नहीं 7. बैंकर से सेफ्टी के लिए कभी आवाज नहीं उठायी 8. फर्जी केसों में फंसे बैंकर्स को कोई कानूनी सहायता नहीं 9. सरकार के किसी तानाशाही कदम का कोई विरोध नहीं 10. बैंकों में भौतिक संसाधनों की कमी #ScrapIBA
#ScrapIBA 11. ग्राहकों की मनमानी के सामने बैंकर असहाय
12.कहीं क्वार्टर की व्यस्था नहीं, बैंकर किराये के मकानों में रहने को मजबूर 13. कोरोना जैसी महामारी में भी बैंकर को न भौतिक, न सामाजिक और न ही आर्थिक सुरक्षा 14. जिलाधीशों के तुग़लकी आदेशों के खिलाफ कोई आवाज तक नहीं #ScrapIBA
बीमा सेक्टर में जब FDI कि शुरुआत हुई तो विदेशी कंपनियों को भारत में बीमा का एक बड़ा मार्केट नजर आने लगा। वो मार्केट जिस पर एक सरकारी कंपनी LIC का लगभग-लगभग एकाधिकार था।
अब न तो विदेशी बीमा कंपनियों के पास इतना समय था और न ही धैर्य कि वे भारत में LIC के जैसा एजेंटों का नेटवर्क बना पाते। उन्होंने शॉर्टकट अपनाया। लगभग उसी समय भारत में सुपरमार्केट बैंकिंग की तर्ज पर Bankassurance नामक घोटाले की शुरुआत हुई।
मतलब अब बैंकों को भी बीमा बेचने एक अधिकार मिल गया (जोकि आजकल जिम्मेदारी बन गयी है)। विदेशी बीमा कंपनियों ने भारतीय बैंकों के साथ मिल के जॉइंट वेंचर्स में काम करना शुरू किया। SBI के साथ BNP Paribas, PNB के साथ Metlife जैसे कंपनियों ने मिलकर बीमा बेचने का काम शुरू किया।
अमेरिका और रूस के बीच लम्बा शीतयुद्ध चला है। लेकिन कभी भी ये युद्ध अमरीका या रूस की भूमि पर नहीं लड़ा गया, ना ही दोनों देशों को कोई भारी नुक्सान हुआ, बल्कि फायदा ही हुआ।
पूंजीवादियों ने अपने समर्थक गुटों को हथियार बेचे और साम्यवादियों ने अपने समर्थक दलों को। लड़ाई का शिकार हुए तुर्की, क्यूबा, वियतनाम, कोरिया, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया जैसे छोटे देश। कुछ देश जैसे उत्तर कोरिया, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया पूरी तरह बर्बाद हो गए।
कुछ देशों ने पूँजीवाद की राह पकड़ ली, जैसे दक्षिण कोरिया, तुर्की। और कुछ देश समाजवाद के रस्ते चल पड़े जैसे वियतनाम और क्यूबा। कुल मिलाकर पूंजीवाद कर साम्यवाद रुपी दो पाटों के बीच में छोटे-छोटे देश अनाज की तरह पिस गए। भारत की एक अलग दास्ताँ है।