श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं।
इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा।
कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।
एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?
बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।
तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी।
नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।
बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?
नारद- शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।
नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया।
ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।ब्रह्मा जी से वर्य मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।
शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।
अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-
1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।
2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।
ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया।तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।
अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।
सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का वृहद भंडार है
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वक्री #बृहस्पति की क्या क्या फल प्राप्त होता है इनका अलग अलग भावो में..
प्रथम भाव-बृहस्पति वक्री हो तो व्यक्ति विद्वान और विशेष पूजनीय होता है। स्वस्थ और सुंदर शरीर होता है। सार्वजनिक जीवन में बहुत सम्मान प्राप्त करता है, लेकिन दूसरी ओर कई मामलों में सही न्याय करने से चूक जाता है। अपने प्रिय के प्रति पक्षपाती हो जाता है।
द्वितीय भाव-वक्री बृहस्पति द्वितीय भाव में है तो व्यक्ति लापरवाहीपूर्ण खर्च करता है। इन्हें पैतृक संपत्ति प्राप्त होती इसलिए वह उसका महत्व नहीं समझ पाता और अंधाधुंध खर्च करता है। बोलने में कुशल, वाकपटु, दानी और उदार होता है। पत्नी से सुख मिलता है।
★★★★★★★★★★★★★★ (1) मंगल और शुक्र में राशि परिवर्तन हो अर्थात मंगल वृष या तुला में हो तथा शुक्र मेष तथा वृश्चिक राशि में हो तो ऐसी स्त्री परपुरुषगामिनी होती है।
(2) मंगल शुक्र के नवांश में तथा शुक्र मंगल के नवांश में हो।
(3) उपरोक्त (1,2)नियमों के साथ यदि चंद्रमा सप्तम भाव में हो तो पति पत्नी दोनो ही व्यभिचारी होते हैं।
(4) सप्तम भाव में चंद्रमा शुक्र और मंगल की युति हो तो ऐसी स्त्री पति की अनुज्ञा से परपुरुषगामिनी होती है।
(5) सप्तम भाव में चंद्रमा स्थित हो तथा वह मंगल या शनि के नवांश में हो तो भी स्त्री अपने पति की सहमति से परपुरुषगामिनी होती है।
(6) सप्तम भाव में सूर्य व मंगल कर्क राशि में (मकर लग्न )युत हो तो स्त्री पति की अनुज्ञा से परपुरुषगमन करती है।
*राहु और केतु का अपना कोई घर नहीं होता दोनों छाया ग्रह है l जिसके राशि में बैठते हैं और उसी राशि पर कब्जा जमा कर बैठ जाते हैं और उसी के अनुसार अच्छा या खराब फल देना शुरू कर देते हैं l*
*राहु का शरीर नहीं है सिर्फ सर है इसलिए यह हमें मानसिक तड़प देता है उसी प्रकार केतु का सर नहीं है शरीर है इसलिए वह हमें शारीरिक तड़प देता है lचाहे वह तड़प जिस रूप में पैदा करें l मान लीजिए कि राहु द्वितीय भाव में है तो वह धन के लिए मानसिक रूप से तड़प पैदा करेगा l
अगर केतु है तो आपकी शारीरिक रूप से धन के प्रति ज्यादा झुकाव रहेगा I*
*राहु आडंबर पैदा करता है Iयोजना बनाता है I साजिश रचता है I आरोप-प्रत्यारोप लगाने में माहिर रहता है I
राहु: एक परिचय 1. राहु एक करामाती ग्रह है। 2. राहू वह धमकी है जिससे आपको डर लगता है | 3. जेल में बंद कैदी भी राहू है |
राहू सफाई कर्मचारी है | 4. स्टील के बर्तन राहू के अधिकार में आते हैं। 5. हाथी दान्त की बनी सभी वस्तुए राहू रूप हैं |
6. राहू वह मित्र है जो पीठ पीछे आपकी निंदा करता है। 7. धोका भी राहू की देन होता है | 8. नशे की वस्तुएं राहू हैं | 9. दर्द का टीका राहू है | 10. राहू मन का वह क्रोध है जो कई साल के बाद भी शांत नहीं हुआ है, न लिया हुआ बदला भी राहू है |
11. शेयर मार्केट की गिरावट राहू है, उछाल केतु है | 12. बहुत समय से ताला लगा हुआ मकान राहू है | 13. बदनाम वकील भी राहू है | 14. मिलावटी शराब राहू है | 15. राहू वह धन है जिस पर आपका कोई हक़ नहीं है या जिसे अभी तक लौटाया नहीं गया है | ना लौटाया गया उधार भी राहू है।
The paintings from Rāmāyaṇa Mahābhārata yuddha (War), the paintings depicting khaḍga (Weapon), and the paintings related to indrajāla (sorcery or weapon of Arjuna) or of the Mountains surrounded by dense forests, devils, ferocious looking people.
The paintings depicting scarcity, crying people and of nudes should not be displayed inside the house. These are considered inauspicious.
1. सूने तथा निर्जन घर में अकेला नहीं सोना चाहिए। देव मन्दिर और श्मशान में भी नहीं सोना चाहिए। (मनुस्मृति) 2. किसी सोए हुए मनुष्य को अचानक नहीं जगाना चाहिए। (विष्णुस्मृति)
3. विद्यार्थी, नौकर औऱ द्वारपाल, यदि ये अधिक समय से सोए हुए हों, तो इन्हें जगा देना चाहिए। (चाणक्यनीति) 4. स्वस्थ मनुष्य को आयुरक्षा हेतु ब्रह्ममुहुर्त में उठना चाहिए। (देवीभागवत) बिल्कुल अँधेरे कमरे में नहीं सोना चाहिए। (पद्मपुराण)
5. भीगे पैर नहीं सोना चाहिए। सूखे पैर सोने से लक्ष्मी (धन) की प्राप्ति होती है। (अत्रिस्मृति) टूटी खाट पर तथा जूठे मुँह सोना वर्जित है। (महाभारत) 6. "नग्न होकर/निर्वस्त्र" नहीं सोना चाहिए। (गौतम धर्म सूत्र)