★★★★★★★★★★★★★★ (1) मंगल और शुक्र में राशि परिवर्तन हो अर्थात मंगल वृष या तुला में हो तथा शुक्र मेष तथा वृश्चिक राशि में हो तो ऐसी स्त्री परपुरुषगामिनी होती है।
(2) मंगल शुक्र के नवांश में तथा शुक्र मंगल के नवांश में हो।
(3) उपरोक्त (1,2)नियमों के साथ यदि चंद्रमा सप्तम भाव में हो तो पति पत्नी दोनो ही व्यभिचारी होते हैं।
(4) सप्तम भाव में चंद्रमा शुक्र और मंगल की युति हो तो ऐसी स्त्री पति की अनुज्ञा से परपुरुषगामिनी होती है।
(5) सप्तम भाव में चंद्रमा स्थित हो तथा वह मंगल या शनि के नवांश में हो तो भी स्त्री अपने पति की सहमति से परपुरुषगामिनी होती है।
(6) सप्तम भाव में सूर्य व मंगल कर्क राशि में (मकर लग्न )युत हो तो स्त्री पति की अनुज्ञा से परपुरुषगमन करती है।
(7) शुक्र और चंद्र की युति मेष या वृश्चिक में हो तो स्त्री पति से शत्रुता रखती है।
(8) सप्तम भाव में राहु या केतु हो, सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तथा सप्तमेश पाप ग्रहों के साथ हो तो ऐसी स्त्री व्यभिचारिणी होती है।
(9) मंगल व शनि में नवांश परिवर्तन हो अर्थात मंगल मकर व कुंभ नवांश में हो तथा शनि मेष या वृश्चिक नवांश में हो तो स्त्री दुराचारिणी होती है।
(10) यदि शुक्र व शनि में राशि परिवर्तन हो तो स्त्री दुराचारिणी होती है।
(11) यदि शनि व शुक्र में नवांश परिवर्तन हो तो ऐसी स्त्री दूसरी स्त्री की सहायता से अप्राकृतिक ढंग से अपनी काम पिपासा शान्त करती है।
(12) यदि शनि व मंगल में राशि परिवर्तन हो तो भी उपरोक्त (11)के अनुसार प्रभाव होता है।
(13) यदि शुक्र व शनि में पारस्परिक दृष्टि संबंध हो तो भी उपरोक्त (11)के अनुसार फल होता है।
(14)वृष अथवा तुला लग्न हो तथा लग्न में कुंभ का नवांश हो तब भी उपरोक्त (11)के अनुसार फल होता है।
(15) मंगल अथवा शनि की राशियों (1,8,10,11)लग्न में शुक्र और चंद्रमा स्थित हों तथा उन पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो स्त्री व उसकी माता दोनो ही व्यभिचारिणी होती हैं।
(16) पाप ग्रह के साथ मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो स्त्री अन्य पुरुषों के साथ यौन संबंध रखती है।
(17) शुक्र से सप्तम भाव में सूर्य मंगल हो तो स्त्री अत्यंत गुप्तरूपसेपरपुरुषगामिनी होती है।
(18) सप्तम भाव में शुक्र तथा अष्टम में सूर्य हो तो स्त्री वैश्या तुल्य होती है।
(19) लग्न व चंद्रमा दोनो ही चर राशि में (1,4,7,10)हों तथा बली पाप ग्रह केंद्र मेम हो तो स्त्री परपुरुष गमन करती है।
(20)लग्न चंद्र तथा लग्नेश तीनों ही चर राशि में हों तथा पाप पीड़ित हों तो ऐसी स्त्री विवाह से पूर्व अनेक पुरुषों के साथ संभोग कर चुकी होती है।
(21)स्त्री की कुण्डली में लग्न विषम राशि में हो,पुरुष ग्रह (सूर्य, मंगल, गुरु )बली हों स्त्री ग्रह (चंद्र,शुक्र,बुध )निर्बल हों तो ऐसी स्त्री बहुपुरुषगामिनी होती है।
(22) मेष लग्न की कुंडली में चन्द्र व शुक्र की युति किसी भी भाव में हो तथा उन पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो ऐसी स्त्री व्यभिचारिणी होती है।
(23) अष्टम भाव में सूर्य हो तथा उस पर शुभ प्रभाव न हो तो स्त्री परपुरुषगामिनी होती है।
(24)वृषभ राशि में मंगल अष्टम में (तुला लग्न )हो तो स्त्री परपुरुषगामिनी होती है।
(25) सप्तम भाव में शुक्र,शनि व राहु स्थित हों तो स्त्री परपुरुषगामिनी होती है।
(26)मंगल पर राहु का दूषित प्रभाव (युति या दृष्टि द्वारा )तो ऐसी कन्या कम आयु में ही कामोत्सुक होती है।
(27)यदि चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हों तो ऐसी स्त्री चरित्रहीन व कुलटा होती है।
(28)सप्तम भाव में सूर्य या राहु हो तो ऐसी स्त्री परपुरुषों से संसर्गरत् रहती है।
(29)पंचमेश व सप्तमेश में पारस्परिक दृष्टि या युति संबंध हो तो ऐसी स्त्री परपुरुषों से अधिक संबंध रखती है।
(30)लग्न अथवा सप्तम भाव में चंद्रमा सूर्य के नवांश में हो तो स्त्री चरित्रहीना होती है।
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वक्री #बृहस्पति की क्या क्या फल प्राप्त होता है इनका अलग अलग भावो में..
प्रथम भाव-बृहस्पति वक्री हो तो व्यक्ति विद्वान और विशेष पूजनीय होता है। स्वस्थ और सुंदर शरीर होता है। सार्वजनिक जीवन में बहुत सम्मान प्राप्त करता है, लेकिन दूसरी ओर कई मामलों में सही न्याय करने से चूक जाता है। अपने प्रिय के प्रति पक्षपाती हो जाता है।
द्वितीय भाव-वक्री बृहस्पति द्वितीय भाव में है तो व्यक्ति लापरवाहीपूर्ण खर्च करता है। इन्हें पैतृक संपत्ति प्राप्त होती इसलिए वह उसका महत्व नहीं समझ पाता और अंधाधुंध खर्च करता है। बोलने में कुशल, वाकपटु, दानी और उदार होता है। पत्नी से सुख मिलता है।
श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं।
इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा।
कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।
एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
*राहु और केतु का अपना कोई घर नहीं होता दोनों छाया ग्रह है l जिसके राशि में बैठते हैं और उसी राशि पर कब्जा जमा कर बैठ जाते हैं और उसी के अनुसार अच्छा या खराब फल देना शुरू कर देते हैं l*
*राहु का शरीर नहीं है सिर्फ सर है इसलिए यह हमें मानसिक तड़प देता है उसी प्रकार केतु का सर नहीं है शरीर है इसलिए वह हमें शारीरिक तड़प देता है lचाहे वह तड़प जिस रूप में पैदा करें l मान लीजिए कि राहु द्वितीय भाव में है तो वह धन के लिए मानसिक रूप से तड़प पैदा करेगा l
अगर केतु है तो आपकी शारीरिक रूप से धन के प्रति ज्यादा झुकाव रहेगा I*
*राहु आडंबर पैदा करता है Iयोजना बनाता है I साजिश रचता है I आरोप-प्रत्यारोप लगाने में माहिर रहता है I
राहु: एक परिचय 1. राहु एक करामाती ग्रह है। 2. राहू वह धमकी है जिससे आपको डर लगता है | 3. जेल में बंद कैदी भी राहू है |
राहू सफाई कर्मचारी है | 4. स्टील के बर्तन राहू के अधिकार में आते हैं। 5. हाथी दान्त की बनी सभी वस्तुए राहू रूप हैं |
6. राहू वह मित्र है जो पीठ पीछे आपकी निंदा करता है। 7. धोका भी राहू की देन होता है | 8. नशे की वस्तुएं राहू हैं | 9. दर्द का टीका राहू है | 10. राहू मन का वह क्रोध है जो कई साल के बाद भी शांत नहीं हुआ है, न लिया हुआ बदला भी राहू है |
11. शेयर मार्केट की गिरावट राहू है, उछाल केतु है | 12. बहुत समय से ताला लगा हुआ मकान राहू है | 13. बदनाम वकील भी राहू है | 14. मिलावटी शराब राहू है | 15. राहू वह धन है जिस पर आपका कोई हक़ नहीं है या जिसे अभी तक लौटाया नहीं गया है | ना लौटाया गया उधार भी राहू है।
The paintings from Rāmāyaṇa Mahābhārata yuddha (War), the paintings depicting khaḍga (Weapon), and the paintings related to indrajāla (sorcery or weapon of Arjuna) or of the Mountains surrounded by dense forests, devils, ferocious looking people.
The paintings depicting scarcity, crying people and of nudes should not be displayed inside the house. These are considered inauspicious.
1. सूने तथा निर्जन घर में अकेला नहीं सोना चाहिए। देव मन्दिर और श्मशान में भी नहीं सोना चाहिए। (मनुस्मृति) 2. किसी सोए हुए मनुष्य को अचानक नहीं जगाना चाहिए। (विष्णुस्मृति)
3. विद्यार्थी, नौकर औऱ द्वारपाल, यदि ये अधिक समय से सोए हुए हों, तो इन्हें जगा देना चाहिए। (चाणक्यनीति) 4. स्वस्थ मनुष्य को आयुरक्षा हेतु ब्रह्ममुहुर्त में उठना चाहिए। (देवीभागवत) बिल्कुल अँधेरे कमरे में नहीं सोना चाहिए। (पद्मपुराण)
5. भीगे पैर नहीं सोना चाहिए। सूखे पैर सोने से लक्ष्मी (धन) की प्राप्ति होती है। (अत्रिस्मृति) टूटी खाट पर तथा जूठे मुँह सोना वर्जित है। (महाभारत) 6. "नग्न होकर/निर्वस्त्र" नहीं सोना चाहिए। (गौतम धर्म सूत्र)