वक्री #बृहस्पति की क्या क्या फल प्राप्त होता है इनका अलग अलग भावो में..
प्रथम भाव-बृहस्पति वक्री हो तो व्यक्ति विद्वान और विशेष पूजनीय होता है। स्वस्थ और सुंदर शरीर होता है। सार्वजनिक जीवन में बहुत सम्मान प्राप्त करता है, लेकिन दूसरी ओर कई मामलों में सही न्याय करने से चूक जाता है। अपने प्रिय के प्रति पक्षपाती हो जाता है।
द्वितीय भाव-वक्री बृहस्पति द्वितीय भाव में है तो व्यक्ति लापरवाहीपूर्ण खर्च करता है। इन्हें पैतृक संपत्ति प्राप्त होती इसलिए वह उसका महत्व नहीं समझ पाता और अंधाधुंध खर्च करता है। बोलने में कुशल, वाकपटु, दानी और उदार होता है। पत्नी से सुख मिलता है।
तृतीय भाव- ऐसा व्यक्ति स्वयं के प्रयासों से उच्च पदों तक पहुंचता है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रारंभ में लापरवाह किंतु बाद में उच्च स्तर तक पहुंचता है। धन संचय भी खूब करता है, लेकिन अत्यधिक धन और उच्च पद पर पहुंचते ही ये अहंकारी हो जाते हैं और दूसरों का अपमान करते हैं।
चौथे भाव में बैठा वक्री बृहस्पति व्यक्ति को घमंडी बना देता है। ऐसा व्यक्ति अपने परिवार और समाज के प्रति उदार नहीं रहता। दूसरों के बारे पूर्वाग्रह रखकर चलता है और मन ही मन कई लोगों से दुश्मनी पाल बैठता है।
चौथे भाव - ये लोग यदि अपना व्यवहार बदल लें तो फिर उनके लिए जीवन में कुछ भी पाना असंभव नहीं। धन, सम्मान, यश, कीर्ति हासिल कर सकते हैं।
पंचम भाव- बृहस्पति वक्री होकर पंचम स्थान में बैठा है तो व्यक्ति को अपने बच्चों के प्रति अधिक लगाव नहीं होता। ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी के अलावा कई स्त्रियों से शारीरिक संबंध बनाता है। पंचम वक्री गुरु संतानसुख में भी बाधक होता है।
यदि पंचम स्थान में बृहस्पति कुंभ या कर्क राशि में हो तो व्यक्ति को संतान नहीं होती। धनु में हो तो बहुत कष्टों के बाद संतान होती है। हालांकि पंचमस्थ वक्री गुरु वाला व्यक्ति अपने वर्ग का मुखिया होता है।
षष्ठम भाव-छठे स्थान में वक्री गुरु है तो व्यक्ति बलवाल, शक्तिशाली और शत्रुओं को परास्त करने वाला होता है। व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी में अधिक लाभ होता है। ऐसे लोग ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, लिवर संबंधी रोगों से पीडि़त होते हैं।
सप्तम भाव- सप्तमस्थ वक्री वाले जातकों का विवाह के बाद भाग्योदय होता है। जीवनसाथी उच्चकुल, धनवान, परोपकारी और सुख देने वाला मिलता है। मेष, सिंह, मिथुन या धनु राशि में गुरु हो तो उच्च शिक्षा, कुंभ का गुरु हो तो पुत्र संतान की चिंता रहती है।
सप्तम भाव- वृषभ, कन्या, कर्क, वृश्चिक या मीन राशि का गुरु हो तो व्यक्ति अत्यंत महत्वाकांक्षी होता हे। तुला या मकर का गुरु हो तो दो पत्नी या अन्य स्त्री से संबंध का सूचक है।
अष्टम भाव-ऐसे व्यक्ति को दुर्घटना में मृत्यु का भय रहता है। अष्टम वक्री गुरु शुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो व्यक्ति को पैतृक धन प्राप्त होता है। ऐसा व्यक्ति बड़ा ज्योतिषी, तंत्र मंत्र, विद्वान व धनवान बनता है।
नवम भाव-वक्री बृहस्पति नवम स्थान में हो तो व्यक्ति चार मंजिला भवन या चार भवनों का स्वामी होता है। राजा तथा सरकार के उच्चाधिकारियों से घनिष्ठता होती है। ऐसे व्यक्ति अपनी मन की करने के लिए कुछ भी कर जाते हैं।
दशम वक्री गुरु वाले व्यक्ति की प्रतिष्ठा अपने पिता, दादा से ज्यादा होती है। धनी और राजा का प्रिय होता है।दूसरी और दशम भाव में वक्री गुरु वाले जातक की विभिन्न विरोधी गतिविधियां इनके विकास में बाधक होती है। गैर जिम्मेदारी पूर्णऔर कमजोर निर्णय क्षमता के कारण कई मौके गंवा बैठते हैं।
एकादश भाव-11वें भाव में वक्री गुरु हो तो व्यक्ति लगातार आगे बढ़ने का प्रयास करता है, लेकिन अपने से निम्न वर्ग के लोगों से मित्रता के कारण इनका जीवनस्तर सामान्य ही बना रहता है। ऐसे व्यक्तियों की सोच भी छोटी होती है। शराबी, व्यसनी लोगों से दोस्ती के कारण ये धन भी बर्बाद करते हैं।
द्वादश भाव-12वें भाव में वक्री गुरु वाले जातक शुभ कार्यों में पैसा लगाते हैं। इनके गुप्त शत्रु सदा इन्हें बदनाम करने का प्रयास करते रहते हैं, लेकिन इनकी रक्षा होती है। इन्हें आगे बढ़ने के कई अवसर आते हैं लेकिन अवसरों को नहीं पहचान पाने के लिए कारण मौके हाथ से छूट जाते हैं।
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प्रथम भाव-यदि वक्री शुक्र कुंडली के प्रथम भाव में विराजमान हो तो जातक को अपनी शारीरिक सुंदरता पर घमंड आ जाता है। आमतौर पर वक्री शुक्र कुंडलीधारक विपरीत लिंग वालों को सहजता से अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं और जिस वजह से वह बदनाम भी होते हें।
दृतीय भाव- द्वितीय भाव में वक्री शुक्र होने पर जातक को कामुक और विलासी बनाता है। साथ ही भोग विलासता के साथ जीवन जीने की इच्छा भी पैदा करता है जिसकी वजह से वह गलत राह भी पकड़ लेता है। वक्री शुक्र की वजह से जातक दिखावा बहुत करते हैं और दिखावे की वजह से धन भी बहुत खर्च करते हैं।
तृतीय भाव-तृतीय भाव में अकेला वक्री शुक्र अशुभ फल देता है। जातक व्यभिचारी और रंगीन मिजाज होने की वजह से समाज में उसके मान-सम्मान में कमी आती है। शत्रु पक्ष से हमेशा परेशान रहता है।
#शुक्र#भौतिकसुख
बिगड़ा हुआ शुक्र जातक का जीवन ही व्यर्थ सिद्ध करता है, क्योंकि मनुष्य का जन्म ही कर्मों के फल भोगने हेतु होता है।
यदि उसे जीवनपर्यंत अशुभ फल ही भोगने पड़ते हैं तो इस जीवन के कर्म भी अशुभ हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप पुनर्जन्म के बंधनों में जकड़न महसूस करता है।
शुक्र शुभ ग्रह होकर भोग और विलास का कारक ग्रह है और इस पृथ्वी पर जातक पांच कर्मेंद्रियों और पांच ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से सुखोपभोग करता है अर्थात जातक को कब, कितनी मात्रा में किस प्रकार का सुख उपलब्ध होगा, इसका निर्णय शुक्र की स्थिति देखकर किया जाता है।
शुक्र का जन्म कुंडली में निम्न स्थितियों में जातक को अशुभ फल या अनिष्ट भोगना पड़ता है
(1) किसी भी भाव में शुक्र वक्री, नीच, शत्रु राशि में स्थित हो या पापी ग्रहों के युक्त या दुष्ट हो तो जातक को घर-वाहन, वैभव, स्त्री सुख से वंचित कर परस्त्रीगामी तथा यौन रोगों से ग्रस्त बनाता है।
★★★★★★★★★★★★★★ (1) मंगल और शुक्र में राशि परिवर्तन हो अर्थात मंगल वृष या तुला में हो तथा शुक्र मेष तथा वृश्चिक राशि में हो तो ऐसी स्त्री परपुरुषगामिनी होती है।
(2) मंगल शुक्र के नवांश में तथा शुक्र मंगल के नवांश में हो।
(3) उपरोक्त (1,2)नियमों के साथ यदि चंद्रमा सप्तम भाव में हो तो पति पत्नी दोनो ही व्यभिचारी होते हैं।
(4) सप्तम भाव में चंद्रमा शुक्र और मंगल की युति हो तो ऐसी स्त्री पति की अनुज्ञा से परपुरुषगामिनी होती है।
(5) सप्तम भाव में चंद्रमा स्थित हो तथा वह मंगल या शनि के नवांश में हो तो भी स्त्री अपने पति की सहमति से परपुरुषगामिनी होती है।
(6) सप्तम भाव में सूर्य व मंगल कर्क राशि में (मकर लग्न )युत हो तो स्त्री पति की अनुज्ञा से परपुरुषगमन करती है।
श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं।
इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा।
कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।
एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
*राहु और केतु का अपना कोई घर नहीं होता दोनों छाया ग्रह है l जिसके राशि में बैठते हैं और उसी राशि पर कब्जा जमा कर बैठ जाते हैं और उसी के अनुसार अच्छा या खराब फल देना शुरू कर देते हैं l*
*राहु का शरीर नहीं है सिर्फ सर है इसलिए यह हमें मानसिक तड़प देता है उसी प्रकार केतु का सर नहीं है शरीर है इसलिए वह हमें शारीरिक तड़प देता है lचाहे वह तड़प जिस रूप में पैदा करें l मान लीजिए कि राहु द्वितीय भाव में है तो वह धन के लिए मानसिक रूप से तड़प पैदा करेगा l
अगर केतु है तो आपकी शारीरिक रूप से धन के प्रति ज्यादा झुकाव रहेगा I*
*राहु आडंबर पैदा करता है Iयोजना बनाता है I साजिश रचता है I आरोप-प्रत्यारोप लगाने में माहिर रहता है I