‘हंस के लिया है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान’ की पूर्ति के लिए नवनिर्मित पाकिस्तान ने 1947 में ही कश्मीर पर हमला कर दिया। देश रक्षा के दीवाने संघ के स्वयंसेवकों ने उनका प्रबल प्रतिकार किया।
उन्होंने भारतीय सेना, शासन तथा जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह को इन षड्यन्त्रों की समय पर सूचना दी। इस गाथा का एक अमर अध्याय 27 नवम्बर, 1948 को कोटली में लिखा गया, जो इस समय पाक अधिकृत कश्मीर में है।
युद्ध के समय भारतीय वायुयानों द्वारा फेंकी गयी गोला-बारूद
की कुछ पेटियां शत्रु सेना के पास जा गिरीं। उन्हें उठाकर लाने में बहुत जोखिम था। वहां नियुक्त कमांडर अपने सैनिकों को गंवाना नहीं चाहते थे, अतः उन्होंने संघ कार्यालय में सम्पर्क किया। उन दिनों स्थानीय पंजाब नैशनल बैंक के प्रबंधक श्री चंद्रप्रकाश कोटली में नगर कार्यवाह थे।
उन्होंने कमांडर से पूछा कि कितने जवान चाहिए ? कमांडर ने कहा - आठ से काम चल जाएगा। चंद्रप्रकाश जी ने कहा - एक तो मैं हूं, बाकी सात को लेकर आधे घंटे में आता हूं।
चंद्रप्रकाश जी ने जब स्वयंसेवकों को यह बताया, तो एक-दो नहीं, 30 युवक इसके लिए प्रस्तुत हो गये। @meenakshisharan
कोई भी देश के लिए बलिदान होने के इस सुअवसर को गंवाना नहीं चाहता था। चंद्रप्रकाश जी ने बड़ी कठिनाई से सात को छांटा; पर बाकी भी जिद पर अड़े थे। अतः उन्हें ‘आज्ञा’ देकर वापस किया गया। सबने अपने आठों साथियों को सजल नेत्रों से विदा किया।
सैनिक कमांडर ने उन आठों को पूरी बात समझाई।
भारतीय और शत्रु सेना के बीच में एक नाला था, जिसके पार वे पेटियां पड़ी थीं। शाम का समय था। सर्दी के बावजूद स्वयंसेवकों ने तैरकर नाले को पार किया तथा पेटियां अपनी पीठ पर बांध लीं। इसके बाद वे रेंगते हुए अपने क्षेत्र की ओर बढ़ने लगे;
पर पानी में हुई हलचल और शोर से शत्रु सैनिक सजग हो गये और गोली चलाने लगे। इस गोलीवर्षा के बीच स्वयंसेवक आगे बढ़ते रहे।
इसी बीच श्री चंद्रप्रकाश और श्री वेदप्रकाश को गोली लग गयी। उस ओर ध्यान दिये बिना बाकी छह स्वयंसेवक नाला पारकर सकुशल अपनी सीमा में आ गये और
कमांडर को पेटियां सौंप दी। अब अपने घायल साथियों को वापस लाने के वे फिर नाले को पार कर शत्रु सीमा में पहुंच गये। उनके पहुंचने तक उन दोनों वीर स्वयंसेवकों के प्राण पखेरू उड़ चुके थे। स्वयंसेवकों ने उनकी लाश को अपनी पीठ पर बांधा और लौट चले। यह देख शत्रुओं ने गोलीवर्षा तेज कर दी।
इससे एक स्वयंसेवक और मारा गया। उसकी लाश को भी पीठ पर बांध लिया गया। तब तक एक अन्य गोली ने चौथे स्वयंसेवक की कनपटी को बींध दिया। वह भी मातृभूमि की रक्षा हित बलिदान हो गया। इस दल के वापस लौटने का दृश्य बड़ा कारुणिक था। चार बलिदानी स्वयंसेवक अपने चार घायल साथियों की पीठ पर बंधे थे।
जब उन्हें चिता पर रखा गया, तो ‘भारत माता की जय’ के निनाद से आकाश गूंज उठा।नगरवासियों ने फूलों की वर्षा की।
इन स्वयंसेवकों का बलिदान रंग लाया। उन पेटियो से प्राप्त सामग्री से सैनिकों का उत्साह बढ़ गया। वे भूखे शेर की तरह शत्रु पर टूट पड़े। कुछ ही देर में शत्रुओं के पैर उखड़ गये
और चिता की राख ठंडी होने से पहले ही पहाड़ी पर तिरंगा फहराने लगा। सेना के साथ प्रातःकालीन सूर्य ने भी अपनी पहली किरण चिता पर डालकर उन स्वयंसेवकों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
He named the girl, Jyoti!! Soberan worked hard day and night and did not let her feel the lack of anything. He sent her to school and did everything he could to fulfill her needs. Even if he had to remain hungry, he never let his daughter fall short of anything.
The Govt. is preparing the rules for the listing of unlisted companies in foreign jurisdictions so that it becomes possible for start-ups & MSMEs to raise capital abroad.
MCA wants keep threshold for direct foreign listing at a level that is attractive and feasible for companies. The plan is to allow such listing in 8 jurisdictions to begin with i.e. USA, UK, France, Japan, South Korea, Germany & Canada.
22 year old, fresh engineer on her way to work on a bike taking a turn under a bridge is crushed by a lorry coming from wrong side. She gets proper medical care only after 9 hr of the accident & doctors have to amputate one of her leg to save her.
Before
A bright girl Manasi excelled in both studies and sports. Lived life to fullest and was on her way to live her dream.
After
2019, exactly after 8 years of her accident, she is crowned No. 1 para badminton player in the world defeating her country mate in Switzerland.
In between
As badminton was something she played as part of rehabilitation, she picked it up as her passion & slowly opportunities kept unfolding.
And now, Barbie, has released One Of A Kind (OOAK) doll dedicating her willpower & mental strength.
19 जुलाई
इतिहास स्मृति
जलियांवाला के प्रतिशोधी ऊधमसिंह 🙏
ऊधमसिंह का जन्म ग्राम सुनाम (जिला संगरूर, पंजाब) में 26दिसम्बर, 1899 को सरदार टहलसिंह के घर में हुआ था। मात्र दो वर्ष की अवस्था में ही इनकी माँ का और सात साल का होने पर पिता का देहान्त हो गया @_Krantikari@PunjabTourisms
ऐसी अवस्था में किसी परिवारजन ने इनकी सुध नहीं ली। गली-गली भटकने के बाद अन्ततः इन्होंने अपने छोटे भाई के साथ अमृतसर के पुतलीघर में शरण ली। यहाँ एक समाजसेवी ने इनकी सहायता की।
19 वर्ष की तरुण अवस्था में ऊधमसिंह ने 13 अपै्रल, 1919 को बैसाखी के पर्व पर जलियाँवाला बाग,
अमृतसर में हुए नरसंहार को अपनी आँखों से देखा। सबके जाने के बाद रात में वे वहाँ गये और रक्तरंजित मिट्टी माथे से लगाकर इस काण्ड के खलनायकों से बदला लेने की प्रतिज्ञा की। कुछ दिन उन्होंने अमृतसर में एक दुकान भी चलायी। उसके फलक पर उन्होंने अपना नाम ‘राम मोहम्मद सिंह आजाद’ लिखवाया था।
1) An enterprise for purpose of this process will be known as Udyam & its Regn Process will be known as 'Udyam Registration'. 2) Permanent registration no will be given after registration. 3) After completion of the process of registration, a certificate will be issued online.
4) Certificate will have dynamic QR Code from which web page on the portal & details about the enterprise can be accessed. 5) No need for renewal of Registration. 6) Help of single window systems at Champions Control Rooms/ DICs in the process. 7) Registration is totally free.
भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है, उनमें रानी अहल्याबाई का नाम प्रमुख है। उनका जन्म 31 मई, 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था।
इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही संस्कार बालिका अहल्या पर भी पड़े। एक बार इन्दौर के राजा मल्हारराव होल्कर ने वहां से जाते हुए मन्दिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी।
उन्होंने उसके पिता को बुलवाकर उस बालिका को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजी राव भला क्या कहते; उन्होंने सिर झुका दिया। इस प्रकार वह आठ वर्षीय बालिका इन्दौर के राजकुंवर खांडेराव की पत्नी बनकर राजमहलों में आ गयी।
इन्दौर में आकर भी अहल्या पूजा एवं आराधना में रत रहती।