जून में जब केंद्र सरकार ने कृषि संबंधी तीन अध्यादेश पास किए ( जिन्हें सितंबर में संसद से पारित करवाया गया) उसके कुछ दिन बाद प्रधानमंत्री जी ने अमेरिका - भारत बिज़नेस कॉउन्सिल (USIBC) द्वारा आयोजित IDEA Summit में बोलते हुए 1/n
अमेरिकी कंपनियों को आत्मनिर्भर भारत में निवेश करने हेतु आमंत्रित किया, इस आमंत्रण में प्रधानमंत्री महोदय ने कहा कि सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधार यानि ये तीन कानून बिज़नेस को आसान बनाएंगे साथ ही उन्होंने यह घोषणा की कि 2025 तक खाद्य प्रसंकरण उद्योग (Food Processing Industry) 2/n
में आधा ट्रिलियन डॉलर से अधिक वृद्धि की उम्मीद है I किसानों द्वारा इन अध्यादेशों के विरोध के बीच प्रधानमंत्री जी द्वारा अमेरिकी कंपनियों को इन कानूनों के लाभ बताते हुए आमंत्रित करने के पीछे क्या कोई कहानी है ?
दरअसल यह पूंजीवाद का वो नव उदारवादी चेहरा है 3/n
जो सत्ता तंत्र के जरिए हमारी जिंदगी में प्रवेश करता है ये किसान कानून भी इस चेहरे का एक रूप है जो विश्व व्यापार संगठन,विश्व बैंक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों व भारत के कॉर्पोरेट जगत के जरिए सरकार को संचालित कर हमारे चेहरों का नूर छीनने पर आमादा हैI बात बीजेपी या कांग्रेस की नहीं है 4/n
बात इस प्रक्रिया की है कांग्रेस - बीजेपी तो मोहरे हैं कुछ भाई इन मोहरों को मालिक समझकर आपस में उलझ रहे हैं तो कुछ भक्तिभाव में धूल में लठ चला रहे हैं और आई टी सेल के कर्मचारी फर्जी आई डी के जरिए इनके लठों को तेल पिला रहे हैं I कुछ बातें मेरी किसान कौम को जानना बड़ी जरूरी है - 5/n
1- ये बात सुनने में तो बड़ी अच्छी लगती है कि नए कानूनों के तहत यू पी का किसान तमिलनाडु जाकर फसल बेच सकता है लेकिन खेत गणना (Farm Census) 2015-16 के अनुसार देश में 86.2 फीसदी किसान लघु व मध्यम किसान की श्रेणी में आते हैं जिनके पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है अब इतनी जमीन का, 6/n
मालिक राज्य तो क्या अपने जिले से बाहर भी फसल नही बेच सकता क्योंकि इतनी कम जमीन के मालिक के पास अपनी घरेलू जरूरत की फसल स्टोर करने के बाद पीछे जितनी फसल बचती है उसे वह ज्यादा दूर बेचने जाएगा तो उसकी सारी फसल किराया चुकाने में ही चली जाएगीI 7/n
2-विश्व व्यापार संगठन (WTO) का कृषि सबंधी समझौता उरुग्वे दौर की बातचीत के साथ अस्तित्व में आया जो कृषि के मुक्त व्यापार की बात करता है और कृषि सब्सिडी को WTO कृषि को मुक्त अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ने में सबसे बड़ी अड़चन के रूप में देखता है इसीलिए कृषि सब्सिडी विकसित व विकासशील 8/n
देशों के बीच झगड़े की जड़ बना हुआ है ऐसा नहीं है कि विकसित देश अपने किसानों को सब्सिडी नही देते, सच तो ये है कि वे हमसे ज्यादा सब्सिडी देते हैं लेकिन उनका सब्सिडी देने का तरीका और विकासशील देशों का तरीका अलग है जब 2013 के बाली समिट में भारत ने कृषि सब्सिडी कटौती से इनकार 9/n
किया (क्योंकि भारत खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू कर चुका था) तो उसे बड़ा जोर आया और अंततः peace clause अस्तित्व में आया लेकिन यह अस्थायी है जिसकी मियाद 2017 तक रखी गयीI
3- विश्व व्यापार संगठन ने कृषि सब्सिडी को तीन खानों में बांटा है Green, Blue और AmberI 10/n
MSP ( नयूनतम समर्थन मूल्य) Amber खाने में आता है और Amber खाने की शर्त है कि इसके तहत आने वाली सब्सिडी विकसित देशों के लिए 1986-88 के उत्पादन का 5 फीसदी व विकास शील देशों के लिए 10 फीसदी से अधिक नहीं हो सकतीI इसका अर्थ है कि भारत जैसे देश MSP के रूप में किसानों को सपोर्ट 11/n
नहीं दे सकते अगर देंगे तो यह समझौते का उलंघन होगाI
4- थोड़ी सी बात Green Box (हरे खाने) की भी करना चाहूंगाI दरअसल किसानों को जो सीधी मदद दी जाती है या फसल बीमा दिया जाता है वह इस खाने में आता है और अधिकतर विकसित देश यह Green खाने वाली सब्सिडी ही अपने किसानों को देते हैं 12/n
क्योंकि इस पर कोई रोक नहीं है I उदाहरण के लिए इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड के सेन्टर फ़ॉर WTO के एक हालिया प्रकाशित पेपर के अनुसार 2019 में अमेरिका ने प्रति किसान करीब 61,286 डॉलर व यूरोपियन यूनियन ने 8588 डॉलर प्रति किसान खर्च किए और यह खर्च Green खाने के तहत किया गया 13/n
जबकि भारत ने केवल 282 डॉलर प्रति किसान खर्च किया उसमें से भी अधिकतर Amber खाने के तहतI विकसित देश भारत जैसे विकासशील देशों को लगातार यह कह रहे हैं कि वे Amber खाने की अपनी कृषि सब्सिडी को कम करेंI
वर्तमान कृषि कानून इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि भारत कैसे विकसित देशों व 14/n
इस वितीय वर्ष की पहली तिमाही के आंकड़े सामने आए है जिसमे भारी गिरावट दर्ज हुई है।इस समय भारत मे लॉक डाउन था और दुनियाँ के ज्यादातर देशों की जीडीपी इस दौरान गिरी है। @Bankers_United
भारत की जीडीपी सबसे ज्यादा गिरी है इसका मतलब लॉक डाउन झेलने के लिए देश सक्षम बिल्कुल भी नहीं था।इस बड़ी गिरावट से साफ हो गया कि देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही चौपट हो गई थी मगर मीडिया के सहयोग से लिपाई-पुताई करके काम चलाया जा रहा था।
2014 के बाद हर दूसरे दिन कोई न कोई योजना लांच हो रही थी और मीडिया की पाक्षिक वाहवाही के बाद हवा में उड़ती गई।फिर नाम बदलो योजना आई और इतिहास के मुर्दों में माथापच्ची की जाने लगी।जब महसूस हुआ कि कुछ लोगों में निराशा है और वो आक्रोशित हो रहे है तो उनको पोस्ट डेटेड चेक थमाए जाने लगे