#श्रृंखला

हमारा शरीर 5 तत्वों (पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और वायु)से बना होता है,जबकि देवताओं का शरीर पांच तत्वों से नहीं बना होता, उनमे पृथ्वी और जल तत्व नहीं होते। मध्यम स्तर के देवताओं का शरीर ३ तत्वों (आकाश, अग्नि और वायु) से तथा उत्तम स्तर के देवता का शरीर दो तत्व तेज (अग्नि)
और आकाश से बना हुआ होता है इसलिए देव शरीर तेजोमय और आनंदमय होते हैं।
चूंकि हमारा शरीर पांच तत्वों से बना होता है इसलिए अन्न, जल, वायु, प्रकाश (अग्नि) और आकाश तत्व की हमें जरुरत होती है, जो हम अन्न और जल आदि के द्वारा प्राप्त करते हैं।

लेकिन देवता वायु के रूप में गंध, तेज के रूप
में प्रकाश और आकाश के रूप में शब्द को ग्रहण करते हैं।
यानी देवता गंध, प्रकाश और शब्द के द्वारा भोग ग्रहण करते हैं। जिसका विधान पूजा पद्धति में होता है। जैसे जो हम अन्न का भोग लगाते हैं, देवता उस अन्न की सुगंध को ग्रहण करते हैं

उसी से तृप्ति हो जाती है, जो पुष्प और धूप लगाते है,
उसकी सुगंध को भी देवता भोग के रूप में ग्रहण करते हैं। जो हम दीपक जलाते हैं, उससे देवता प्रकाश तत्व को ग्रहण करते हैं। आरती का विधान भी उसी के लिए है, जो हम मन्त्र पाठ करते हैं !
या जो शंख या घंटी, घड़ियाल बजाते हैं, उससे देवता गण आकाश तत्व के रूप में ग्रहण करते हैं। जिस प्रकृति का देवता हों, उस प्रकृति का भोग लगाने का विधान है

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21 Jan
ऋग्वेद १.३७.१२

मरु॑तो॒ यद्ध॑ वो॒ बलं॒ जनाँ॑ अचुच्यवीतन ।

गि॒रीँर॑चुच्यवीतन॥

अनुवाद:

मरूतः - हे मरूतों!

यत् - क्योंकि।

ह - निश्चित।

वः - आपके।

बलम् - शक्ति।

जनान् - प्राणियों के।

अचूच्यवीतन - अपने कार्य में मग्न रहना।

गिरीन् - बादलों को।
भावार्थ:आप अपने बल से लोगों को विचलित करते हैं। आप पर्वतों को भी विचलित करने में सक्षम हैं।

गूढार्थ: इसमें बताया गया है कि सबका उपकार और दुख निवृति मरूदगण या प्राण द्वारा होती है। प्राण से ही शरीर के सब अवयव चलते हैं। इनमें एक भी निष्प्राण होता है तो वह अवयव काम करना बंद कर
देता है। जीवत्व होने तक ही हम बलवान बनकर उपकृत कर सकते हैं। प्राण परमात्म स्वरूप है अन्यथा हम डाली से निकली टहनी के समान हो जायेंगे। पहाड पर ही नदी और वृक्ष हैं
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21 Jan
!!!---: गुरुत्वाकर्षण और चोर पाश्चात्य वैज्ञानिक :---!!!
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इतना निश्चित है कि न्यूटन बहुत बडा चोर था जिसको बिल्ली और बच्चे के लिए अलग अलग दरवाजा चाहिये था, उसने गुरुत्वाकर्षण की खोज की, कुछ पल्ले नहीं पडता ।
कहते हैं न्यूटन ने सेब के फल को गिरते देखा और गुरुत्वाकर्षण का पता लगाया,,, एक सेब को गिरते देख लिया और पृथ्वी के अंदर गुरुत्वाकर्षण खोज लिया,,

वाह रे ,, कितनी चीजें ऊपर को उठ रही थी,, भांप बनकर जल ऊपर उठते हैं,, पौधे बनकर बीज ऊपर उठते हैं,, अग्नि को कहीं भी जलाओ ऊपर की तरफ
उठती है,, फिर ये नियम क्यों नहीं खोजा की ये ऊपर किस कारण उठते हैं,,,

ऋषि कणाद ने हजारों साल पहले वैशेषिक दर्शन में गुरुत्वाकर्षण का कारण बताया,

"संयोगाभावेगुरुत्वातपतनम् ।" ( वैशेषिक दर्शन ५-१-७)

यानी कोई भी वस्तु जब तक कही न कहीं उसका जुड़ाव है वो नीचे नहीं गिरेगी,,
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20 Jan
#आँवला

आँवला एक आश्चर्यजनक फल है। इसके स्वास्थ्य लाभ कई गुना हैं। लेकिन लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि आदिकाल से पूजा की जा रही थी।
प्रलय के दौरान जब पूरी दुनिया पानी में डूब गई, उस समय ब्रह्मा जी परब्रह्म के बारे में चिंतन के लिए बैठे। ध्यान करते समय उन्होंने एक लंबी सांस ली और उसी समय उनकी आंख से एक आंसू निकल आया, जब उन्हें परब्रह्म के प्रति प्रेम की तीव्र अनुभूति हुई।
जब यह आंसू सतह पर गिरा, तो उसमें से एक आंवला का पेड़ निकला। चूँकि यह वनस्पति का पहला संकेत था इसलिए इसे अद्रोह कहा गया। यह इसके बाद था कि इस पृथ्वी पर अन्य जीवन उभरे। जब निर्माण पूरा हो गया तो आंवले के पेड़ के पास इकट्ठे देवता आ गए।
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20 Jan
ऋषियों और महाऋषियों ने वेदों को कैसे सुरक्षित रखा?

जब कोई ये बताने की कोशिश करता हैं की हमारे ज्यादातर ग्रंथों में मिलावट की गई है तो वो वेदों पर भी ऊँगली उठाते हैं की अगर सभी में मिलावट की गई है तो वेदों में भी किसी ने मिलावट की होगी.... मैं उन्हें बताना चाहता हूँ की
ब्राह्मणों ने किस तरह वेदों को सुरखित रखा...
वेदों को सुरक्षित रखने के लिए उनकी अनुपुर्वी, एक-एक शब्द और एक एक अक्षर को अपने मूल रूप में बनाये रखने के लिए जो उपाय किये गए उन्हें आज कल की गणित की भाषा में 'Permutation and combination' कहा जा सकता हैं..
वेद मन्त्र को स्मरण रखने और उनमे एक मात्रा का भी लोप या विपर्यास ना होने पाए इसके लिए उसे 13 प्रकार से याद किया जाता था.... याद करने के इस उपाय को दो भागों में बनाया जा सकता हैं.... प्रकृति-पाठ और विकृति-पाठ.... प्रकृति पाठ का अर्थ हैं मन्त्र को जैसा वह है वैसा ही याद करना....
Read 17 tweets
20 Jan
प्लास्टिक सर्जरी के पिता ~ सुश्रुत

6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान, सुश्रुत नाम के एक भारतीय चिकित्सक - को व्यापक रूप से 'फादर ऑफ इंडियन मेडिसिन' और 'फादर ऑफ प्लास्टिक सर्जरी' के रूप में माना जाता है - ने चिकित्सा और सर्जरी पर दुनिया के शुरुआती कार्यों में से एक लिखा
सुश्रुत भारत के उत्तरी भाग में प्राचीन शहर काशी में रहते थे।

सुश्रुत संहिता-

सुश्रुत को उनके अग्रणी संचालन और तकनीकों के लिए और उनके प्रभावशाली ग्रंथ 'सुश्रुत संहिता' के लिए जाना जाता है, जो प्राचीन भारत में सर्जरी के बारे में ज्ञान का मुख्य स्रोत है।
संस्कृत में लिखा गया है, सुश्रुत संहिता चिकित्सा के क्षेत्र में सबसे पुराने कामों में से एक है। यह आयुर्वेद के रूप में जाने जाने वाली प्राचीन हिंदू औषधि की नींव रखता है और इसे 'आयुर्वेदिक चिकित्सा के महान त्रयी' के रूप में माना जाता है।

सुश्रुत संहिता ने एटियलजि को 1,100 से
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19 Jan
#मृत्यु_के_बाद_का_जीवन

ब्रह्मांड में गतिविधियों और हमारे शरीर के कामकाज के बीच एक निश्चित समानता है। हम क्या खाते हैं और हम क्या बनते हैं, के बीच एक कड़ी है। लेकिन एक बात सबसे निश्चित है और वह है मृत्यु। सभी मरने के लिए पैदा हुए हैं। Image
यहां हम मृत्यु के तुरंत बाद के जीवन पर चर्चा करते हैं। जैसे ही हम मरते हैं हमारे भौतिक शरीर कार्य करना बंद कर देते हैं। आप जितने अच्छे कर्म करते हैं, उतना ही बेहतर तरीके से मरते हैं।
यदि आपने सकारात्मक कर्म किए हैं, तो आपके शरीर के ऊपरी हिस्से में सात छिद्रों के माध्यम से आपके शरीर को छोड़ दिया जाता है।
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