ज़रा सा वक़्त बीतेगा और सब माज़ी हो जाएगा …
फिर किसी दिन बात निकलेगी और माज़ी पुकारेगा … 1/9 #FarmersProtest
तुम्हारी नस्लें तुमसे पूछेंगी कि “ये ग़ैरत क्या होती है?”
तो कहना वो इक बेकार बेदाम सी शय थी
जब एक दिन किसान छोड़ के घरबार खेत परिवार
अपना हक़ माँगने निकले तो उनके रास्तों में हमने
कटीले तार बिछवाए,लोहे की कीलें कुछ गाढ़ी
और उन कीलों के नीचे ये ग़ैरत भी गाढ आए हम #FarmersProtest
अगर नस्लें पूछ बैठें कि “ये हक़ क्या होता है?”
तो कहना वो हमारे किस काम आता जीने में
हम गूंगी बहरी हुकूमत के टुकड़ों पर पलते थे
वो जो फेंक कर दे दें उसी पर फ़ख़्र करते थे
तो कड़कती ठंड में जब किसान सड़को पर बैठे थे
तो पानी की बौछारे कीं और उसी में हक़ बहा आए ..3/9 #FarmersProtest
वो शायद ये भी पूछें कि “ये शर्म कब आती है?”
तो कहना अक्सर ये दौलत मंदों को नही आती
तो उनके इशारों पर और अपनी कमज़र्फ़ी में
हमने अपने किसानो को ही दहशत गर्द कह डाला
फिर लंगर डालने वालो का दाना पानी रोकने को
सड़क पर गड्ढे कर इस शर्म को उस में दबा आए ... 4/9 #FarmersProtest
वो पूछें कि “ज़िक्र ज़मीर का कहीं क्यूँ नही मिलता?”
तो कहना कि ख़ुद-ग़र्ज़ी ख़ून में सदियों से थी
न ज़ेहन काम करता था न अक़्ल काम करती थी
तो मक्कारों की बातों में आकर नफ़रत फैलाई
और बिना ही बात के सैकड़ों जाने ले डालीं
उन्हीं के साथ एक दिन इसे भी मार आए हम …5/9 #FarmersProtest
यक़ीनन वो पूछेंगे कि “हर तरफ दीवारें क्यूँ हैं?”
तो कहना हमारा साथ रहना हुक़ूमत को गवारा न था
तो पहले मज़हब की बना डालीं फिर ज़ात की
फिर अमीरी ग़रीबी की और अब इतनी दीवारें हैं
कि जब भी हुकुम हो हाक़िम का तो अब हम
इन्ही पर अक्सर अपना सर मारते रहते हैं …6/9 #FarmersProtest
वो बेशक़ पूछेंगे कि “ये ख़ुद्दार कौन होता है?”
तो कहना ये किरदार अब किताबों में मिलते हैं
अब कायरों का ज़माना है ये डरपोक होते हैं
बस जी-हज़ूरी ही इक अदद काम है इनका
ये अपनी सारी ताक़त ग़रीबों पर दिखाते हैं
और बेशर्मी से हुक़ूमत की हाँ में हाँ मिलाते हैं ... 7/9 #FarmersProtest
मसला वतनपरस्ती का वो गर दर-पेश ले आएँ
तो कहना सरहद पर दुश्मन घुसा बैठा था तो क्या
अपने नौजवानों पर और अपने ही किसानों पर
हमने दनादन गोलियाँ दागीं उन्ही को क़ैद में डाला
और उनको उनके ही घर में दुश्मन क़रार दे डाला
और अब ख़ुद को शान से वतनपरस्त बताते हैं ... 8/9 #FarmersProtest
गर ये शान का पल है तो ये तुमको मुबारक हो
गर ये क़िस्सा तुम्हारा है तो ये तुमको मुबारक हो
अगर ये तुम हो तो तुम इस मुल्क़ पर बस इक धब्बा हो
वो दिन जल्द आएगा जब तुम्हारा हक़ भी जाएगा
और जिन पर नाज़ है तुमको उन्हीं पर शर्म आएगी
और तुम्हारी नस्लें पूछेंगी“तुम्हारा फ़र्ज़ क्या था तब?”