लानत क़लम पे जिसकी न तेज़ धार हो सकी,
हक़* की पुकार इस मुल्क में न अख़बार हो सकी !!
*truth/rights

#दिलबरम
हो गये सहाफ़ी* ख़ादिम~ निज़ाम-ए-मुल्क के,
सच्चाई पर्दों में रही न आश्कार^ हो सकी !!
*journalists ~servant ^reveal
आलिम* अदीब^ बिकते रहे ज़मीर+ बिकता रहा,
सच की क़लम न इस दौर का मेआर~ हो सकी !!
*intellectuals ^writers +conscience ~standard
थाम कर हक़ का अलम* लिखना जिसे था इंक़लाब+,
वो आन^ रही क़दम में न दस्तार हो सकी !!
*flag +revolution ^pride
बस बे-हिसी* और झूट का ही बनी ये कारोबार,
हरगिज़ सहाफ़त^ ख़ल्क़~ की न तरफ़-दार हो सकी !!
*insensitivity ^journalism ~mankind/people
शमशान सड़क तक आ गए शहर जलता रहा,
अहल-ए-नज़र* फिर भी न शर्मसार हो सकी !!
*far-sight of visionaries
लुटती रही आबरू मुल्क-ओ-मिल्लत* की मगर,
पैरहन^ उर्यां~ शहंशाह की न तार तार हो सकी !!
*nation and community ^dress ~naked
बा'द-ए-मर्ग* ऐसा सुलूक इस हयात^ का हुआ,
दोश~-ए-अज़ीज़ की भी ना ये हक़दार हो सकी !!
*after death ^life ~shoulder
सब कुछ शहर में था बस इक ख़ैरियत न थी,
सितम-शिआर* क़लम पर न ग़म-ख़्वार^ हो सकी !!
*cruel ^consoler
दो कोई जवाब दरिया में बहती हुई इस लाश को,
क्यूँ मर के भी न ये गिनती में शुमार* हो सकी !!
*include
तोड़ दो इस पेशे* के अज़्म-ओ-यक़ीं^ के वास्ते,
ऐसी क़लम जो अब भी न तलवार हो सकी !!
*profession ^determination and confidence

#दिलबरम
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10 Apr
ख़ुद को बीते वक़्त में ज़ाया* न कीजिए,
तन्हाई को महबूब बनाया न कीजिए !! #दिलबरम
*waste
रुस्वाइयाँ तो इश्क़ में होती हैं इक ख़िताब*,
तोहमत^ की तरह इनको उठाया न कीजिए !! #दिलबरम
*title ^allegation
दीवाने की रहती है सहरा* को भी तलाश,
हंस हंस के गले ग़म को लगाया न कीजिए !! #दिलबरम
*desert
Read 16 tweets
5 Feb
ज़रा सा वक़्त बीतेगा और सब माज़ी हो जाएगा …
फिर किसी दिन बात निकलेगी और माज़ी पुकारेगा … 1/9
#FarmersProtest
तुम्हारी नस्लें तुमसे पूछेंगी कि “ये ग़ैरत क्या होती है?”
तो कहना वो इक बेकार बेदाम सी शय थी
जब एक दिन किसान छोड़ के घरबार खेत परिवार
अपना हक़ माँगने निकले तो उनके रास्तों में हमने
कटीले तार बिछवाए,लोहे की कीलें कुछ गाढ़ी
और उन कीलों के नीचे ये ग़ैरत भी गाढ आए हम
#FarmersProtest
अगर नस्लें पूछ बैठें कि “ये हक़ क्या होता है?”
तो कहना वो हमारे किस काम आता जीने में
हम गूंगी बहरी हुकूमत के टुकड़ों पर पलते थे
वो जो फेंक कर दे दें उसी पर फ़ख़्र करते थे
तो कड़कती ठंड में जब किसान सड़को पर बैठे थे
तो पानी की बौछारे कीं और उसी में हक़ बहा आए ..3/9
#FarmersProtest
Read 12 tweets
21 Mar 20
दुनिया के बाज़ार में ए'तिबार* बिक गये,
शर्मिंदा कर वफ़ा को वफ़ादार बिक गये !! #दिलबरम
*trust
कौड़ियों में हक़* बिका हक़दार बिक गये,
इन्साँ के हाथों क़ौल-ओ-क़रार^ बिक गये !! #दिलबरम
*right/truth ^promise & agreement
झूट जब दुनिया में बँटा मुफ़्त में मिला,
सस्ते में फिर सच के तरफ़-दार बिक गये !! #दिलबरम
Read 15 tweets
29 Feb 20
जला कर घर ग़रीबों के चमन की बात करते हैं,
हुक्मराँ* ख़ंजर-ज़बानी से अमन^ की बात करते हैं !! #दिलबरम
*ruler ^peace
कि जिनका फ़र्ज़ है देना तालीम* नौनिहालों^ को,
वो देकर हाथों में पत्थर वतन की बात करते हैं !! #दिलबरम
*education ^kids
लुटाकर ख़ुद ही सब माल-ओ-असबाब* गुलशन के,
लुटेरे क़ाफ़िले के ये ग़बन^ की बात करते हैं !! #दिलबरम
*wealthy-goods ^fraud
Read 14 tweets

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