भगवान श्रीराम इतने सीधे और सरल हैं कि बार-बार परीक्षा देते रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ऐसा कभी नहीं करेंगे। ☺️
विश्वामित्रजी जानते थे कि दशरथ के पुत्र के रुप में भगवान ही हैं इसीलिये उनको लेने गये थे।
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गाधितनय मन चिंता ब्यापी। हरि बिनु मरहिं न निसिचर पापी॥
तब मुनिबर मन कीन्ह बिचारा। प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा॥
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भावार्थ:-गाधि के पुत्र विश्वामित्रजी के मन में चिन्ता छा गई कि ये पापी राक्षस भगवान के (मारे) बिना न मरेंगे। तब श्रेष्ठ मुनि ने मन में विचार किया कि प्रभु ने पृथ्वी का भार हरने के लिए अवतार लिया है।
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एहूँ मिस देखौं पद जाई। करि बिनती आनौं दोउ भाई॥
ग्यान बिराग सकल गुन अयना। सो प्रभु मैं देखब भरि नयना॥
भावार्थ:-इसी बहाने जाकर मैं उनके चरणों का दर्शन करूँ और विनती करके दोनों भाइयों को ले आऊँ। (अहा!) जो ज्ञान, वैराग्य और सब गुणों के धाम हैं, उन प्रभु को मैं नेत्र भरकर देखूँगा।
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लेकिन भगवान को दिव्य अस्त्र-शस्त्र और भूख-प्यास न लगे तथा शरीर में अतुलित बल और तेज रहे उसकी विद्या तब दी जब दस हजार हाथियों के बल वाली ताड़का को भगवान श्रीराम ने एक ही बाण से अपने खेलने वाले धनुष से मार दिया। 5/
तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही। बिद्यानिधि कहुँ बिद्या दीन्ही॥
जाते लाग न छुधा पिपासा। अतुलित बल तनु तेज प्रकासा॥
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भावार्थ:-तब ऋषि विश्वामित्र ने प्रभु को मन में विद्या का भंडार समझते हुए भी (लीला को पूर्ण करने के लिए) ऐसी विद्या दी, जिससे भूख-प्यास न लगे और शरीर में अतुलित बल और तेज का प्रकाश हो॥
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आयुध सर्ब समर्पि कै प्रभु निज आश्रम आनि।
कंद मूल फल भोजन दीन्ह भगति हित जानि॥
भावार्थ:-सब अस्त्र-शस्त्र समर्पण करके मुनि प्रभु श्री रामजी को अपने आश्रम में ले आए और उन्हें परम हितू जानकर भक्तिपूर्वक कंद, मूल और फल का भोजन कराया॥
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ऐसे ही सुग्रीव को भी विश्वास नही होता था कि बालि को मार पायेंगे। जब सुग्रीव ने अपनी पूरी कथा सुनायी और बताया कि वह पर्वत पर क्यों रहता है तब:
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सुन सेवक दुःख दीनदयाला फरकि उठीं द्वै भुजा बिसाला॥
भावार्थ : सेवक का दुःख सुनकर दीनों पर दया करने वाले श्री रघुनाथजी की दोनों विशाल भुजाएँ फड़क उठीं॥
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भावार्थ : हे सुग्रीव! सुनो, मैं एक ही बाण से बालि को मार डालूँगा। ब्रह्मा और रुद्र की शरण में जाने पर भी उसके प्राण न बचेंगे।
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कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। बालि महाबल अति रनधीरा॥
भावार्थ : सुग्रीव ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए, बालि महान् बलवान् और अत्यंत रणधीर है।
(सोचिये कि साक्षात् परब्रह्म परमात्मा और उनके बल पर उसका सेवक संदेह कर रहा है।)
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(लेकिन सुग्रीव के सामने भी परीक्षा देने को तैयार हो गये।)
दुंदुभि अस्थि ताल देखराए। बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए॥
भावार्थ : फिर सुग्रीव ने श्री रामजी को दुंदुभि राक्षस की हड्डियाँ व ताल के वृक्ष दिखलाए। श्री रघुनाथजी ने उन्हें बिना ही परिश्रम के (आसानी से) ढहा दिया।
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देखि अमित बल बाढ़ी प्रीती। बालि बधब इन्ह भइ परतीती॥
बार-बार नावइ पद सीसा। प्रभुहि जानि मन हरष कपीसा॥7॥
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भावार्थ : श्री रामजी का अपरिमित बल देखकर सुग्रीव की प्रीति बढ़ गई और उन्हें विश्वास हो गया कि ये बालि का वध अवश्य करेंगे। वे बार-बार चरणों में सिर नवाने लगे। प्रभु को पहचानकर सुग्रीव मन में हर्षित हो रहे थे।
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(अब जा के विश्वास हुआ सुग्रीव को. ऐसा भक्त-वत्सल भगवान कहाँ मिलेगा कि जो अपने भक्त को अपने में विश्वास कराने के लिये परीक्षा तक देने को तैयार रहता है। )
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नही! वो बंदर के इस क्षणिक वैराग्य के लिये था।🤣🤣
"उपजा ग्यान बचन तब बोला। नाथ कृपाँ मन भयउ अलोला॥
सुख संपति परिवार बड़ाई। सब परिहरि करिहउँ सेवकाई॥"
भावार्थ : जब ज्ञान उत्पन्न हुआ तब वे ये वचन बोले कि हे नाथ! आपकी कृपा से अब मेरा मन स्थिर हो गया। सुख, संपत्ति, परिवार और बड़ाई (बड़प्पन) सबको त्यागकर मैं आपकी सेवा ही करूँगा॥
ए सब राम भगति के बाधक। कहहिं संत तव पद अवराधक॥
सत्रु मित्र सुख, दुख जग माहीं। मायाकृत परमारथ नाहीं॥9॥
भावार्थ : क्योंकि आपके चरणों की आराधना करने वाले संत कहते हैं कि ये सब (सुख-संपत्ति आदि) राम भक्ति के विरोधी हैं। जगत् में जितने भी शत्रु-मित्र और सुख-दुःख (आदि द्वंद्व) हैं, सब के सब मायारचित हैं, परमार्थतः (वास्तव में) नहीं हैं॥
बालि परम हित जासु प्रसादा। मिलेहु राम तुम्ह समन बिषादा॥
सपनें जेहि सन होइ लराई। जागें समुझत मन सकुचाई॥10॥
भावार्थ : हे श्री रामजी! बालि तो मेरा परम हितकारी है, जिसकी कृपा से शोक का नाश करने वाले आप मुझे मिले और जिसके साथ अब स्वप्न में भी लड़ाई हो तो जागने पर उसे समझकर मन में संकोच होगा (कि स्वप्न में भी मैं उससे क्यों लड़ा)॥
अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति। सब तजि भजनु करौं दिन राती॥
भावार्थ : हे प्रभो अब तो इस प्रकार कृपा कीजिए कि सब छोड़कर दिन-रात मैं आपका भजन ही करूँ।
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Obviously, this Sekoolar-Savarna लुटिया is resorting to the time tested Lutyenmedia technique of fake anecdote. Whichever locality she lives in, Hindus should boycott such people lest their progeny gets corrupted and become trash due to bad company.
The poem @Janaki_Sr refers to was written by rabid Islamist (with the mask of atheist) Dad of Shabana Aazmi after the removal of Babri mosque from to guilt trip Hindus per larger political agenda of Ashraf and their Dhimmi companion Sekoolar-Savarnas. 1/ kavitakosh.org/kk/index.php?t…
For all his pretensions as an atheist and left-leaning intellectual Kaifi Aazmi never wrote a poem condemning the gangster deeds, not to mention subhuman acts like abducting, raping, selling into slavery women etc, of the followers of Islam.
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This incident quoted from the book on Irani's victory in Amethi should give you some idea about the chameleon stuntbaaj character of Nehru-Gandhi family presently displayed by Pappu very often but exposed by SM. @iMac_too
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"फूलपुर इलाहाबाद से करीब तीस किलोमीटर दूर स्थित एक कस्बा है। भारत के पहले प्रधानमन्त्री का संसदीय क्षेत्र होने के बाद भी यहाँ विकास की कोई गति ही नहीं।
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नेहरू-गाँधी परिवार के लिए इस क्षेत्र का पिछड़ापन वह सीढ़ी था, जिससे उनके करिश्माई व्यक्तित्व को वह मजबूती मिलती थी जिससे वे चुनाव जीतते थे। पुराने लोग पंडित नेहरू के जमाने का एक किस्सा बताते हैं।
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Here are a few possibilities. 1) Modi-Shah are incompetent and fool 2) They were outsmarted by Urban Naxals 3) Or they see something which isn't so obvious to us.
On this watch from 13:40-14:45. May be Tikait is just a bait to trap Modi.
"2019 के चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी स्मृति इरानी के साथ पूरी ताकत से अमेठी में खड़े थे। इस समय चुनाव आयोग भी बेहद सक्रिय था। इसके चलते प्रशासन के स्वार्थी तत्व भी अपनी मनमानी नहीं कर पा रहे थे।
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कहा गया कि इस सख्ती की वजह से इस बार कांग्रेस की तरफ से पैसे नहीं बंट पाये। हालांकि कई अफसर अब भी कांग्रेस का राग अलापने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनको भी अपने करियर की चिन्ता थी। लिहाजा ज्यादातर खामोशी से, पर न्यायपूर्ण ढंग से काम करने में लगे रहे।"
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Watch the spiral path taken by the sun moving around the galactic center. But this is the easy part. Visualize the geocentric view of the apparent motion of the sun. 1/3
According to @jayasartn, the oscillatory model of the precession in Surya Siddhanta (ie tropical vernal equinox oscillating around side-real vernal equinox with an amplitude of 27° amplitude) is based on this spiral motion of the sun.
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Just finished reading 3 parts of her four-part series published in famous BV Raman's reputed Astrological magazine. #MindBlown
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Just as an imaginary language Proto Indo-European was created by Western Padre Linguists to explain the presence of Sanskrit words in European languages, the same way this "GapodBazi" of Indians borrowing astronomy knowledge from Greeks and Babylonians has been perpetuated.
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Check appendix VI and VII of this book by Prof Beena Mookherjie Khaṇḍa Khādyaka (a 7th century text by BrahmaGupta).@jayasartn
Prof KS Shukla summarizes it as follows:
"Aryabhata-I hypothesized that planets move in eccentric circles and epicycles. 2/