एक बार की बात है। भयंकर सूखा पड़ा। मानसरोवर झील पूरी तरह सूख गई। वहां रहने वाले हंसों के लिए जीवन का संकट खड़ा हो गया। हंसों ने निश्चय किया कि दक्षिण की तरफ जाएंगे। हंस अपने बच्चों को लेकर अस्थायी आवास की खोज में दक्षिण की तरफ बढ़ चले।
लेकिन हंसों के बच्चे छोटे थे, तो ज्यादा नहीं उड़ पाए और थक गए। रास्ते में एक राज्य पड़ता था। हंसों के निर्णय लिया कि बच्चों को वहीं छोड़ दिया जाए। हंस उस राज्य के राजा के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। कहा कि, आप कुछ दिन हमारे बच्चों की देखभाल कीजिये।
जब वर्षा होगी तो मानसरोवर झील दोबारा भर जाएगी तब हम अपने बच्चों को ले जाएंगे।राजा मान गया। आश्वासन पाकर हंस अपने बच्चों को वहीं छोड़कर उड़ गए। राजा ने हंसों के बच्चों की जिम्मेदारी माली को देदी। राजा के साथ दो समस्याएं थीं। एक तो राजा को कोढ़ की बीमारी थी जिससे वो बाद परेशान था।
बहुत इलाज करवाया मगर कोई फायदा नहीं हुआ। और दूसरा, राजा को मांस खाने का बहुत शौक था। उसको रोज अपनी थाली में मांस चाहिए होता था। एक दिन रसोइये को मांस नहीं मिला। उसके सामने संकट खड़ा हो गया। वो तुरंत माली के पास गया और उससे राजा के भोजन के लिए एक हंस मांगा।
राजा का नाम सुनकर माली ने हंस दे दिया। राजा ने उस दिन हंस के बच्चे का मांस खाया। इससे एक अजीब बात ये हुई कि राजा के कोढ़ में आराम पड़ने लगा। राजा ने रसोइये को बुलाया और रोज वही मांस लाने को बोला। राजा रोज हंस के बच्चों का मांस खाता। इससे एक दिन राजा का कोढ़ भी ठीक हो गया।
बरसात के बाद हंस अपने बच्चों को लेने वापिस आये। उन्होंने राजा से बच्चों के बारे में पूछा। राजा ने माली को बुलाया। माली ने बताया कि सारे बच्चे तो राजा के भोजन में इस्तेमाल हो गए। ये सुनकर हंसों ने राजा को शाप दिया कि इस पाप की वजह से राजा अगके जन्म में अंधा बनेगा।
ये सारे बच्चे राजा की अपनी ही संतान के रूप में जन्म लेंगे और राजा की ही मूर्खता से वे सारे बच्चे मारे जाएंगे। अगले जन्म में राजा ने धृतराष्ट्र के रूप में जन्म लिया और हंसों के बच्चे सौ कौरवों के रूप में जन्मे। और उनमें से एक हंस ने भीम के रूप में जन्म लिया।
महाभारत के युद्ध में धृतराष्ट्र के सारे बच्चे मारे गए। युद्ध के बाद धृतराष्ट्र को पांडवों के पास रहना पड़ा। बाकी सारे पांडव तो धृतराष्ट्र को पूरा सम्मान देते मगर भीम उसे खरी-खोटी सुनाया करता था। धृतराष्ट्र को भोजन परोसने का जिम्मा भी भीम का ही था।
रोज धृतराष्ट्र को भोजन परोसते समय भीम उसे बोलता, "सौ को तो खा गया, और कितना खायेगा?" धृतराष्ट्र इससे बड़ा परेशान था। मगर क्या ही करता।
वही धृतराष्ट्र आज प्रधानसेवक के रूप में जन्मा है। हंस देश की जनता है। हंस के बच्चे देश की जनता की अमानत यानी पब्लिक सेक्टर कंपनियां। राजा अपने धूर्त सलाहकारों के बहकावे में आकर सारे PSU हज़म करता जा रहा है।
एक दिन जब जनता हिसाब मांगेगी तो इसके पास कुछ नहीं होगा।
अंग्रेजों के आने से पहले भारत एक कृषि संपन्न देश था। अंग्रेजों ने अठारवीं और उन्नीसवीं सदी में जमीन पर टैक्स बहुत बढ़ा दिए थे। साथ ही टैक्स वसूलने के लिए सूर्यास्त पद्धति लागू कर दी थी।
इस पद्धति में ये नियम था कि अगर सूर्यास्त होने तक टैक्स नहीं चुकाया तो जमीन पर कानूनी रूप से अंग्रेजों का कब्ज़ा हो जाता था। अब अंग्रेज तो खेती करने से रहे, उनको मतलब था केवल अपने टैक्स से। तो अंग्रेज जमीन की बोली लगाते थे, और जमीन के लिए भूखे बैठे जमींदार जमीन खरीद लेते थे।
अब समस्या ये कि खेती तो जमींदार भी नहीं करते थे और न ही वे गांव में रहते थे। लेकिन अगर टैक्स देना है तो जमीन पर खेती तो करवानी पड़ेगी। तो वे जमीन को गांव में रहने वाले छोटे जमींदार को ठेके पे दे देते थे। लेकिन समस्या फिर वही। खेती तो छोटे जमींदार भी नहीं करते।
एक बार हमारे मित्र मंडल में जबरदस्त बहस छिड़ी। मुद्दा था महिलाओं की आर्मी के combat roles में भर्ती। वैसे तो इस विषय पर बहुत लंबा डिस्कशन किया गया था मगर यहां मैं केवल एक ही मुद्दा उठाऊंगा जिसके बारे में तत्कालीन रक्षा मंत्री स्वर्गीय श्री मनोहर पर्रिकर जी ने भी बयान दिया था।
अक्सर कहा जाता है कि महिलाओं को सेना में अग्रिम पंक्ति में खड़ा इसलिए नहीं करना चाहिए, क्योंकि महिलाएं देश की 'इज्जत' होती हैं। इस स्थिति में सबसे बड़ा खतरा ये होता कि अगर महिला सैनिक को दुश्मन देश पकड़ लेता है तो क्या होगा? क्योंकि महिलाओं के साथ तो बहुत कुछ गलत किया जा सकता है।
एक तरीके से देखा जाए तो ये तर्क सही भी लगता है। मगर फिर दूसरा सवाल ये खड़ा होता है कि इज्जत का ठेका महिलाओं का ही क्यों है? किसने बनाया उनको देश की इज़्ज़त का प्रतीक? और इतिहास में कितनी बार सिर्फ इसी इज़्ज़त के चलते महिलाओं का शोषण हुआ है।
मेरी जिंदगी के करीब 11 साल कॉम्पीटीशन के तैयारी में निकले हैं। ग्यारह अनमोल साल। जिनमें से IIT में दो साल लगे, दो साल इधर-उधर प्राइवेट जॉब के लिए, दो साल GRE में, पांच साल UPSC में और एक साल PCS में लगा।
हम मित्र लोग कभी कभी इस बात पर डिस्कशन करते थे कि दुनिया की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण परीक्षा कौनसी है (जस्ट फॉर टाइमपास)। नेट पे सर्च करने पर अक्सर चीन की यूनिवर्सिटी एग्जाम को दुनिया की सबसे मुश्किल और महत्वपूर्ण परीक्षा बताया जाता है।
वो भी IIT और AIIMS टाइप ही ग्रेजुएशन कोर्स में एडमिशन लेने के लिए दी जाती है। जब धीरे धीरे समझ बढ़ी तो समझ आया कि इंजीनियरिंग, मेडिकल वगैरह की एग्जाम महत्वपूर्ण तो हैं मगर उतनी नहीं। ये परीक्षाएं आपको डिग्री देती हैं, मगर परीक्षा वही सबसे महत्वपूर्ण मानी जा सकती है जो रोटी दे।
एक बार गांव में सूखा पड़ा। तो लोग गए सरकार के पास, कि "भाई तुम्हारे पास तो हर मर्ज़ की दवा है।"
सरकार बोली, "आओ कुआँ खोदते हैं।"
लेकिन किधर है पानी? पानी किधर है? ये रहा पानी राम के घर।
सरकार ने कहा "नहीं, तुम लोग Inefficient और Lethargic हो। तुम कुआँ खोदोगे तो पानी गांव वाले प्यासे मर जाएंगे। और फिर हो सकता है तुम कुआँ कूदने के बाद पानी भी बर्बाद करो। तुमको नहीं पता कि जमीन में पानी कम होता जा रहा है?"
पहले ज्यादातर सैनिकों के खाते SBI में होते थे। इससे दो फायदे थे 1. SBI का ब्रांच और ATM नेटवर्क बहुत बड़ा और सुदूर क्षेत्रों में भी फैल हुआ है। 2. SBI की इंटरनेट बैंकिंग सबसे सुरक्षित, विस्तृत और सरल है।
मतलब सैनिकों के लिए बैंकिंग आसान थी, पैसा और पर्सनल डेटा सुरक्षित था।
अब से सैनिकों के खाते कोटक महिंद्रा बैंक में खुलेंगे। इस बैंक की पूरे देश में कुल 1600 ब्रांचें हैं। यानी SBI से 15 गुना कम। और वो भी ज्यादातर शहरों में। इनके ATM है 2500। यानी SBI से 25 गुना कम।
अब ये इतने संकुचित नेटवर्क में सैनिकों को दूर दराज के क्षेत्रों में कैसे सैनिकों को सेवाएं देंगे ये तो ये ही जानें। और जहां तक इंटरनेट बैंकिंग का सवाल है, कोटक महिंद्रा बैंक की इंटरनेट बैंकिंग कितनी घटिया है ये तो इस्तेमाल करने वाले ही जानते हैं। (मैं खुद भुक्तभोगी हूँ).
दो दिन पहले मैंने एक थ्रेड डाली थी जिसमें मैंने रामायण और महाभारत की घटनाओं का जिक्र किया था। वैसे तो मैंने उस थ्रेड में ऐसा कुछ विवादित नहीं लिखा था मगर जैसा कि आजकल फैशन चल रहा है, कुछ लोग ऑफेंड हो गए।
कुछ लोगों ने धार्मिक विषयों को न छेड़ने की सलाह दी तो एक भाईसाहब सीधे ही गाली-गलौच पर उतर आये। लोगों को लगता है कि धार्मिक मुद्दे सम्वेदनशील होते हैं इसलिए उनपर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। क्यूंकि इससे लोगों कि भावनाएं आहत होने का डर रहता है।
ये लोग कहते हैं कि धर्म के मामले में सवाल नहीं करने चाहिए, जो कहा जाए मान लेना चाहिए, धर्म के विषय वाद-विवाद से परे होते हैं। दिलचस्प बात ये है कि इन अतिभावुक लोगों में से ज्यादातर ने धर्म के बारे में धारणाएं कोई पुस्तक पढ़कर नहीं बल्कि TV पर धार्मिक सीरियल देख कर बनायीं हैं।