दो दिन पहले मैंने एक थ्रेड डाली थी जिसमें मैंने रामायण और महाभारत की घटनाओं का जिक्र किया था। वैसे तो मैंने उस थ्रेड में ऐसा कुछ विवादित नहीं लिखा था मगर जैसा कि आजकल फैशन चल रहा है, कुछ लोग ऑफेंड हो गए।
कुछ लोगों ने धार्मिक विषयों को न छेड़ने की सलाह दी तो एक भाईसाहब सीधे ही गाली-गलौच पर उतर आये। लोगों को लगता है कि धार्मिक मुद्दे सम्वेदनशील होते हैं इसलिए उनपर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। क्यूंकि इससे लोगों कि भावनाएं आहत होने का डर रहता है।
ये लोग कहते हैं कि धर्म के मामले में सवाल नहीं करने चाहिए, जो कहा जाए मान लेना चाहिए, धर्म के विषय वाद-विवाद से परे होते हैं। दिलचस्प बात ये है कि इन अतिभावुक लोगों में से ज्यादातर ने धर्म के बारे में धारणाएं कोई पुस्तक पढ़कर नहीं बल्कि TV पर धार्मिक सीरियल देख कर बनायीं हैं।
इनकी धारणाएं इतनी फूहड़ और हास्यास्पद हैं कि इन्होंने रामायण और महाभारत जैसे काव्य जो कि हमारे देश के इतिहास हैं, वास्तव में घटी हुई घटनाएं हैं, हमारी संस्कृति का प्रतीक हैं, को कपोल कल्पना बना दिया है।
गौतम ऋषि ने अहल्या को शाप दिया, हाथ ऊँचा किया, हाथ में से किरणें निकली और हाड मांस की अहल्या असली के पत्थर में बदल गयी। फिर राम आये उन्होंने भी हाथ ऊंचा किया, एक पत्थर पर रखा, फिर से हाथ में से किरणें निकली और एक असली का पत्थर हाड मांस की अहल्या बन गई।
भारत का इतिहास बता रहे हो कि नागराज की कॉमिक्स। अब ये लोग बोलेंगे कि रामायण में ऐसा ही लिखा हुआ है। मगर ये लोग ये नहीं जानते कि हमारे भाषा इतनी उन्नत थी कि उसमें 80 से भी अधिक अलंकारों का उपयोग किया गया हैऔर उसमें भी उपमा और अतिश्योक्ति का तो बहुत बार प्रयोग किया गया है।
अगस्त्य का विंध्याचल झुकाना या समुद्र को पी लेना वास्तविक घटनाओं का अतिश्योक्ति अलंकार युक्त वर्णन है न कि अक्षरशः सच्चाई।
अगर भावनात्मक रूप से समझें तो इस घटना का मतलब ये निकलता है कि इंद्र वाली घटना के बाद और उसके बाद गौतम ऋषि के आश्रम छोड़ देने के बाद अहल्या इस तरह भावशून्य हो गयी थी जैसे पत्थर होता है।
इस घटना के बाद अहल्या ने बाहरी संसार से अपने सारे सम्बन्ध समाप्त कर लिए थे और एक निर्जीव सा जीवन जीने लगी थीं। बाद में राम ने अहल्या को समाज में पुनः एक सम्माननीय स्थान दिलाया, उन्हें समाज से जोड़ा। शायद लेखक ने भी यही भाव लेकर लिखा था।
अगर हम चाहते हैं कि रामायण और महाभारत को प्रमाणित इतिहास का दर्जा मिले तो इसके लिए हमें इनके यथार्थवादी विवरण प्रस्तुत करने होंगे, तर्कों का जवाब तर्कों से देना होगा।
आप ये कभी सिद्ध नहीं कर सकते कि राम ने वास्तव में, पूंछ वाले मगर इंसान की तरह बोल सकने वाले असली वानरों की सेना बनाई थी, एक गिद्ध ने सीता माता को बचने के लिए अपने प्राण दांव पर लगाए थे और बाद में राम को पूरा विवरण भी सुनाया था। लोगों को लगता है कि जामवंत असली के रीछ थे।
तो फिर जाम्बन्त कि पुत्री जामवंती भी रीछ ही होनी चाहिए। लेकिन जामवंती को मानवी स्त्रियों जैसी सुन्दर बताया जाता है और उससे तो कृष्ण ने विवाह भी किया था। उस ज़माने में ऐसा ही होता था वाला तर्क बच्चों को चुप करने काम आ सकता है कृष्ण को इतिहास में दर्जा नहीं दिला सकता।
भारतीय संस्कृति में कभी भी कोई एक पुस्तक, कोई एक मसीहा या कोई एक ज्ञान स्रोत नहीं रहा है। कहा जाता है कि वेद ब्रह्माजी के मुख से निकले थे, मगर जब आप वेद पढ़ेंगे तो आप को पता चलेगा कि वेद कई सारे ऋषियों ने आपस में गंभीर चर्चा करके रचित किये थे। उपनिषद का मतलब होता है पास बैठना।
मतलब उपनिषदों की रचना गुरु और उनके पास बैठे शिष्यों के आपसी वार्तालाप को आधार बना कर ही की गई थी। शिष्य सवाल पूछते और गुरु जवाब देते। यही भारतीय परंपरा भी है। ईश्वर ने बंदरों को चपलता दी, चीते को गति दी, हाथी को शक्ति दी, मगर मनुष्य को ऐसी कोई खूबी नहीं दी।
भगवान ने मनुष्य को बाकी पशुओं से अलग बनाया है। मनुष्य का सबसे बड़ा हथियार है उसका मस्तिष्क। मनुष्य सोच सकता है। वेदों में प्राकृतिक संसाधनों और मानवीय क्षमताओं का बहुत गहरा वर्णन किया गया है और उनका उत्तम उपयोग करने पर बल दिया है।
हमारी संस्कृति में मनुष्य जीवन का लक्ष्य बताया है सत्य की खोज। वही सत्य जिसे आज वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड में खोज रहे हैं और सब एटॉमिक पार्टिकल्स में ढूंढ रहे हैं। वही सत्य जिसका जवाब देने से भगवान् बुद्ध ने भी मना कर दिया था। सत्य केवल सवाल पूछ कर ही जाना जा सकता है।
सत्य का साक्षात्कार करने के लिए शर्त है कि कोई पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए, हर सम्भावना के लिए सकारात्मक होना चाहिए। मगर आजकल लोगों ने वास्तविक भारतीय संस्कृति की आत्मा (तर्कशक्ति) को छोड़कर केवल लिखे हुए को जस की तस स्वीकार कर लेने वाला मार्ग अपना लिया है।
ये गुण अब्राहमिक पंथों में पाया जाता है। वही अब्राहमिक पंथ जिनमें मनुष्य कभी ईश्वर से सीधे नहीं जुड़ सकता। अब्राहमिक पंथों के अनुसार ईश्वर मनुष्य से हमेशा दूतों/पैगम्बरों के जरिये ही बात करता है। भारतीय दर्शन में तो आत्मा को परमात्मा का ही स्वरुप बताया है।
तभी तो शंकराचार्य से जब उनका परिचय पूछा गया तो उन्होंने स्वयं का परिचय निर्वाण शतकम के रूप में दिया :
मनोबुद्ध्यहङ्कार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥१॥
गीता में भगवान कृष्ण 'अहम् ब्रह्मास्मि' कहते हैं। यहां मनुष्य को स्वतंत्रता है भगवान् बनने की, बस उसको अपने मन के अवरोधों को हटाने की जरूरत है। मनुष्य से तर्कशक्ति छीनना मतलब उसे पशु बना देना होता है। अगर धर्म आपको पशु सामान बना दे रहा है तो आप धर्म को समझ ही नहीं पाए हैं।
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मेरी जिंदगी के करीब 11 साल कॉम्पीटीशन के तैयारी में निकले हैं। ग्यारह अनमोल साल। जिनमें से IIT में दो साल लगे, दो साल इधर-उधर प्राइवेट जॉब के लिए, दो साल GRE में, पांच साल UPSC में और एक साल PCS में लगा।
हम मित्र लोग कभी कभी इस बात पर डिस्कशन करते थे कि दुनिया की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण परीक्षा कौनसी है (जस्ट फॉर टाइमपास)। नेट पे सर्च करने पर अक्सर चीन की यूनिवर्सिटी एग्जाम को दुनिया की सबसे मुश्किल और महत्वपूर्ण परीक्षा बताया जाता है।
वो भी IIT और AIIMS टाइप ही ग्रेजुएशन कोर्स में एडमिशन लेने के लिए दी जाती है। जब धीरे धीरे समझ बढ़ी तो समझ आया कि इंजीनियरिंग, मेडिकल वगैरह की एग्जाम महत्वपूर्ण तो हैं मगर उतनी नहीं। ये परीक्षाएं आपको डिग्री देती हैं, मगर परीक्षा वही सबसे महत्वपूर्ण मानी जा सकती है जो रोटी दे।
एक बार गांव में सूखा पड़ा। तो लोग गए सरकार के पास, कि "भाई तुम्हारे पास तो हर मर्ज़ की दवा है।"
सरकार बोली, "आओ कुआँ खोदते हैं।"
लेकिन किधर है पानी? पानी किधर है? ये रहा पानी राम के घर।
सरकार ने कहा "नहीं, तुम लोग Inefficient और Lethargic हो। तुम कुआँ खोदोगे तो पानी गांव वाले प्यासे मर जाएंगे। और फिर हो सकता है तुम कुआँ कूदने के बाद पानी भी बर्बाद करो। तुमको नहीं पता कि जमीन में पानी कम होता जा रहा है?"
पहले ज्यादातर सैनिकों के खाते SBI में होते थे। इससे दो फायदे थे 1. SBI का ब्रांच और ATM नेटवर्क बहुत बड़ा और सुदूर क्षेत्रों में भी फैल हुआ है। 2. SBI की इंटरनेट बैंकिंग सबसे सुरक्षित, विस्तृत और सरल है।
मतलब सैनिकों के लिए बैंकिंग आसान थी, पैसा और पर्सनल डेटा सुरक्षित था।
अब से सैनिकों के खाते कोटक महिंद्रा बैंक में खुलेंगे। इस बैंक की पूरे देश में कुल 1600 ब्रांचें हैं। यानी SBI से 15 गुना कम। और वो भी ज्यादातर शहरों में। इनके ATM है 2500। यानी SBI से 25 गुना कम।
अब ये इतने संकुचित नेटवर्क में सैनिकों को दूर दराज के क्षेत्रों में कैसे सैनिकों को सेवाएं देंगे ये तो ये ही जानें। और जहां तक इंटरनेट बैंकिंग का सवाल है, कोटक महिंद्रा बैंक की इंटरनेट बैंकिंग कितनी घटिया है ये तो इस्तेमाल करने वाले ही जानते हैं। (मैं खुद भुक्तभोगी हूँ).
बेमेल शादियों और उनके दुष्प्रभावों से भारत का इतिहास भरा पड़ा है। मैं आज केवल दो इतिहासों की बात करूंगा जिनके बारे में देश का बच्चा बच्चा जानता है।
पहले हम रामायण पर आते हैं। राम और सीता के 36 में से 36 गुण मिलने वाली कहानी सबने सुनी है। राम और सीता एक आदर्श दंपत्ति थे। लेकिन रामायण में और भी विवाह हुए। पहले तो दशरथ का ही विवाह हुआ।
दशरथ को राम के पिता और अयोध्या के राजा के रूप में भले ही पूजा जाता हो मगर नैतिक रूप से वे एक कमजोर और विलासी व्यक्ति रहे। ना केवल उन्होंने कभी कौशल्या को पटरानी का सम्मान और प्रेम दिया, बल्कि काम वासना के वशीभूत होकर अपने से कहीं छोटी उम्र की कैकेयी
सरकारी नीतियों (पॉलिसी) का उद्देश्य अर्थव्यस्था और समाज में सुधार लाना होता है। सरकार नीति बनाती है और फिर उसे लागू करती है। नीतियां लागू करने के कई तरीके हैं। इनमें से दो तरीकों के बारे में आज बात करेंगे।
पहला है कैफेटेरिया एप्रोच और दूसरा है टारगेट बेस्ड एप्रोच। जैसा कि नाम से ही समझ आता है, कैफेटेरिया एप्रोच में पब्लिक को विकल्प दिए जाते हैं और उनमें से एक विकल्प को अपनाना होता है। इस तरीके में ये माना जाता है कि जनता समझदार होती है और अपना भला बुरा समझ सकती है।
दूसरा तरीका जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, थोड़ा स्ट्रैट फॉरवर्ड है। यानी अधिकारियों को पॉलिसी इम्प्लीमेंटेशन के लिए टारगेट दे दिए जाते हैं और साथ में दे दी जाती है पावर। उन्हें किसी भी हालत में तय समय में रिजल्ट देना होता है। #StopPrivatizationOfPSBs #StopPrivatizationOfPSBs
बैंक कंपनियां नहीं हैं। बैंक पब्लिक इंस्टीटूशन (जन संस्थान) हैं। कंपनी का काम होता है प्रॉफिट कमाना। पब्लिक इंस्टीटूशन का काम होता है पब्लिक सर्विस देना। गाड़ियां बनाना कंपनी का काम है, सड़कें बनाना पब्लिक सर्विस है।
बस बनाना कंपनी का काम है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट पब्लिक सर्विस है। दोनों को एक ही तराजू में नहीं तोल सकते। अभी साहब ने कहा कि "Government has no business to be in business"। लेकिन ये तो बिज़नेस के नाम पर पब्लिक इंस्टीटूशन बेच रहे हैं।