मेरी जिंदगी के करीब 11 साल कॉम्पीटीशन के तैयारी में निकले हैं। ग्यारह अनमोल साल। जिनमें से IIT में दो साल लगे, दो साल इधर-उधर प्राइवेट जॉब के लिए, दो साल GRE में, पांच साल UPSC में और एक साल PCS में लगा।
हम मित्र लोग कभी कभी इस बात पर डिस्कशन करते थे कि दुनिया की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण परीक्षा कौनसी है (जस्ट फॉर टाइमपास)। नेट पे सर्च करने पर अक्सर चीन की यूनिवर्सिटी एग्जाम को दुनिया की सबसे मुश्किल और महत्वपूर्ण परीक्षा बताया जाता है।
वो भी IIT और AIIMS टाइप ही ग्रेजुएशन कोर्स में एडमिशन लेने के लिए दी जाती है। जब धीरे धीरे समझ बढ़ी तो समझ आया कि इंजीनियरिंग, मेडिकल वगैरह की एग्जाम महत्वपूर्ण तो हैं मगर उतनी नहीं। ये परीक्षाएं आपको डिग्री देती हैं, मगर परीक्षा वही सबसे महत्वपूर्ण मानी जा सकती है जो रोटी दे।
यानी जो एग्जाम आप नौकरी पाने के लिए देते हैं। ये ऑन कैंपस प्लेसमेंट एग्जाम भी हो सकती हैं और ऑफ कैंपस कॉम्पिटिशन भी। SSC या बैंक या UPSC की तैयारी करते टाइम समझ आता है कि इससे पहले जो भी परीक्षाएं दी वे केवल वर्तमान परीक्षा में बैठने लायक योग्यता हासिल करने के लिए ही थीं।
नौकरी में आने के बाद सारी डिग्रीयों की औकात केवल सर्विस फाइल में पड़े हुए कागज जितनी हो जाती है। देखने वाला एक बार देखेगा, फिर आगे बढ़ जाएगा। एकबार UPSC या IBPS क्वालीफाई करने के बाद इस चीज का कोई महत्व नहीं रह जाता कि आपने ग्रेजुएशन IIT से किया था या फलानेलाल ढिकानामाल कॉलेज से।
इस लिहाज से हम कॉलेज एंट्रेंस की परीक्षाओं को और नौकरी दिलाने वाले परीक्षाओं की तुलना नहीं कर सकते। एक तो कॉलेज एंट्रेंस की परीक्षाएं अक्सर किशोरावस्था में दी जाती हैं। उस समय व्यक्ति के ऊपर कोई ख़ास जिम्मेदारियां भी नहीं होती। न ही जीवन में कोई बड़ा भारी परिवर्तन आता है।
बस स्कूल से निकल कर कॉलेज या एक कॉलेज से निकल कर दूसरे कॉलेज। वहीँ जॉब हंटिंग वाली परीक्षाएं वयस्क होने के समय लगती हैं। सर पर एक के बाद एक बढ़ती हुई जिम्मेदारियां, परिवार की बढ़ती हुई उम्मीदें, बूढ़े होते हुए माँ-बाप,
शादी की निकलती हुई उम्र, ये सब चीजें व्यक्ति की चारों तरफ से घेरने लगती हैं। जिन लोगों की कुंडली में संघर्ष लिखा होता है वे जानते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ परीक्षा की तैयारी करना क्या होता है। आपके मित्र गर्लफ्रेंड बना रहे हैं, लड़की घुमा रहे हैं, इश्क़ लड़ा रहे हैं।
मगर आप एक छोटे से कमरे में किताब लेकर ये सोच रहे हैं कि "हे भगवान्, बस इस बार वेकेंसी थोड़ी ज्यादा निकलवा दे। हे भगवान् इस बार परीक्षा पोस्टपोन न हो। बस इस बार इंटरव्यू टाइम से हो जाए।" जवानी के अनमोल आठ साल बिताये हैं मैंने इस स्टेज में।
बचपन के मित्र, जो दसवीं के बाद ही बाप के धंधे में लग गए, उनकी शादियां होती देखीं, उनके बच्चों की तस्वीरें फेसबुक पर देखीं। सबने बुलाया, पर ये सोच के नहीं गए कि एक बार इस परीक्षा के चक्रव्यूह से मुक्ति मिल जाए फिर सब दोस्तों से मिलेंगे। माँ बाप के काले बाल सफ़ेद होते देखे।
बस यही सोचता रहा कि एक बार कुछ बन जाऊं फिर उनको जीवन की सारी खुशियां दूंगा। लेकिन शायद जीवन का संघर्ष कभी खत्म नहीं होता। परीक्षा में पास होने के बाद भी आराम जैसी कोई चीज नहीं। टारगेट, रिपोर्टिंग एक्सेल, पीपीटी बस इस में सिमट गई है जिंदगी।
शादी हो गई है मगर पत्नी को टाइम नहीं दे पाते। घर से हजारों मील दूर पड़े हैं, छह महीने में भी माँ-बाप की शक्ल तक नसीब नहीं होती। फिर भी एक सेंस ऑफ़ अचीवमेंट है, कि एक इज़्ज़तदार नौकरी करते हैं जिसमें रहने खाने से थोड़ा ज्यादा मिल जाता है।
थोड़ा सैटिस्फैक्शन है कि जो काम करते हैं उससे जाने-अनजाने किसी न किसी का भला हो रहा है। थोड़ा सा ही सही मगर इंसान जैसा लग रहा थ। लेकिन अब लग रहा है कि ये सब तो एक छलावा था। हम तो पूंजीवाद के खेत में खड़ी हुई बस एक फसल भर हैं।
जिसे खाद पानी देकर तैयार किया गया, और जब फसल पक गई है तो बाजार में बेचने के लिए खड़ा कर दिया गया है। कोई सूट-बूट वाला खरीददार आएगा और हमें खरीद कर ले जाएगा। कभी कभी सोचता हूँ कि अगर वो एक परीक्षा नहीं दी होती तो क्या होता?
या फिर UPSC निकल जाता? या फिर बैंक की फाइनल लिस्ट में नाम न मिलता। एक परीक्षा से जीवन कितना बदल जाता है।
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एक बार गांव में सूखा पड़ा। तो लोग गए सरकार के पास, कि "भाई तुम्हारे पास तो हर मर्ज़ की दवा है।"
सरकार बोली, "आओ कुआँ खोदते हैं।"
लेकिन किधर है पानी? पानी किधर है? ये रहा पानी राम के घर।
सरकार ने कहा "नहीं, तुम लोग Inefficient और Lethargic हो। तुम कुआँ खोदोगे तो पानी गांव वाले प्यासे मर जाएंगे। और फिर हो सकता है तुम कुआँ कूदने के बाद पानी भी बर्बाद करो। तुमको नहीं पता कि जमीन में पानी कम होता जा रहा है?"
पहले ज्यादातर सैनिकों के खाते SBI में होते थे। इससे दो फायदे थे 1. SBI का ब्रांच और ATM नेटवर्क बहुत बड़ा और सुदूर क्षेत्रों में भी फैल हुआ है। 2. SBI की इंटरनेट बैंकिंग सबसे सुरक्षित, विस्तृत और सरल है।
मतलब सैनिकों के लिए बैंकिंग आसान थी, पैसा और पर्सनल डेटा सुरक्षित था।
अब से सैनिकों के खाते कोटक महिंद्रा बैंक में खुलेंगे। इस बैंक की पूरे देश में कुल 1600 ब्रांचें हैं। यानी SBI से 15 गुना कम। और वो भी ज्यादातर शहरों में। इनके ATM है 2500। यानी SBI से 25 गुना कम।
अब ये इतने संकुचित नेटवर्क में सैनिकों को दूर दराज के क्षेत्रों में कैसे सैनिकों को सेवाएं देंगे ये तो ये ही जानें। और जहां तक इंटरनेट बैंकिंग का सवाल है, कोटक महिंद्रा बैंक की इंटरनेट बैंकिंग कितनी घटिया है ये तो इस्तेमाल करने वाले ही जानते हैं। (मैं खुद भुक्तभोगी हूँ).
दो दिन पहले मैंने एक थ्रेड डाली थी जिसमें मैंने रामायण और महाभारत की घटनाओं का जिक्र किया था। वैसे तो मैंने उस थ्रेड में ऐसा कुछ विवादित नहीं लिखा था मगर जैसा कि आजकल फैशन चल रहा है, कुछ लोग ऑफेंड हो गए।
कुछ लोगों ने धार्मिक विषयों को न छेड़ने की सलाह दी तो एक भाईसाहब सीधे ही गाली-गलौच पर उतर आये। लोगों को लगता है कि धार्मिक मुद्दे सम्वेदनशील होते हैं इसलिए उनपर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। क्यूंकि इससे लोगों कि भावनाएं आहत होने का डर रहता है।
ये लोग कहते हैं कि धर्म के मामले में सवाल नहीं करने चाहिए, जो कहा जाए मान लेना चाहिए, धर्म के विषय वाद-विवाद से परे होते हैं। दिलचस्प बात ये है कि इन अतिभावुक लोगों में से ज्यादातर ने धर्म के बारे में धारणाएं कोई पुस्तक पढ़कर नहीं बल्कि TV पर धार्मिक सीरियल देख कर बनायीं हैं।
बेमेल शादियों और उनके दुष्प्रभावों से भारत का इतिहास भरा पड़ा है। मैं आज केवल दो इतिहासों की बात करूंगा जिनके बारे में देश का बच्चा बच्चा जानता है।
पहले हम रामायण पर आते हैं। राम और सीता के 36 में से 36 गुण मिलने वाली कहानी सबने सुनी है। राम और सीता एक आदर्श दंपत्ति थे। लेकिन रामायण में और भी विवाह हुए। पहले तो दशरथ का ही विवाह हुआ।
दशरथ को राम के पिता और अयोध्या के राजा के रूप में भले ही पूजा जाता हो मगर नैतिक रूप से वे एक कमजोर और विलासी व्यक्ति रहे। ना केवल उन्होंने कभी कौशल्या को पटरानी का सम्मान और प्रेम दिया, बल्कि काम वासना के वशीभूत होकर अपने से कहीं छोटी उम्र की कैकेयी
सरकारी नीतियों (पॉलिसी) का उद्देश्य अर्थव्यस्था और समाज में सुधार लाना होता है। सरकार नीति बनाती है और फिर उसे लागू करती है। नीतियां लागू करने के कई तरीके हैं। इनमें से दो तरीकों के बारे में आज बात करेंगे।
पहला है कैफेटेरिया एप्रोच और दूसरा है टारगेट बेस्ड एप्रोच। जैसा कि नाम से ही समझ आता है, कैफेटेरिया एप्रोच में पब्लिक को विकल्प दिए जाते हैं और उनमें से एक विकल्प को अपनाना होता है। इस तरीके में ये माना जाता है कि जनता समझदार होती है और अपना भला बुरा समझ सकती है।
दूसरा तरीका जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, थोड़ा स्ट्रैट फॉरवर्ड है। यानी अधिकारियों को पॉलिसी इम्प्लीमेंटेशन के लिए टारगेट दे दिए जाते हैं और साथ में दे दी जाती है पावर। उन्हें किसी भी हालत में तय समय में रिजल्ट देना होता है। #StopPrivatizationOfPSBs #StopPrivatizationOfPSBs
बैंक कंपनियां नहीं हैं। बैंक पब्लिक इंस्टीटूशन (जन संस्थान) हैं। कंपनी का काम होता है प्रॉफिट कमाना। पब्लिक इंस्टीटूशन का काम होता है पब्लिक सर्विस देना। गाड़ियां बनाना कंपनी का काम है, सड़कें बनाना पब्लिक सर्विस है।
बस बनाना कंपनी का काम है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट पब्लिक सर्विस है। दोनों को एक ही तराजू में नहीं तोल सकते। अभी साहब ने कहा कि "Government has no business to be in business"। लेकिन ये तो बिज़नेस के नाम पर पब्लिक इंस्टीटूशन बेच रहे हैं।