नेताओं से भी ज्यादा खतरनाक हैं ये बिना रीढ़ के नौकरशाह। नेता तो आएंगे और चले जाएंगे। नेताओं को तो जनता हर पांच साल बाद परख लेती है। नौकरशाहों की एक एग्जाम पास कर लेने के बाद कोई परख नहीं होती।
ये नौकरशाह ही हैं जो सरकारी फरमानों को पूरा करने के लिए बैंक बंद करवाते फिरते हैं, शाखा प्रबंधकों पर FIR करवाते फिरते हैं, बैंकों के बाहर शहरभर का कचरा डलवा कर अपने मानसिक दिवालियेपन का साक्षात् प्रदर्शन करते हैं।
योजना आयोग में भी तो नौकरशाह ही भरे थे, जो एक ढंग की योजना नहीं बना पाते थे (MGNREGA में योजना आयोग का हाथ नहीं था। अब योजना आयोग की जगह नीति आयोग आ गया है। यहां भी नौकरशाह ही भरे हैं।
वैसे तो ये आये थिंकटैंक बनकर थे मगर इनकी थिंकिंग बस निजीकरण के इर्दगिर्द ही घूम रही है। इसके अलावा इनके सारे तमाशे आजतक फेल ही हुए हैं। बहुत ढूंढने पर भी कोई नीति आयोग की ऐसी एक भी स्कीम नहीं मिली जो जमीन पर सार्थक सिद्ध हुई हो।
इनकी रिपोर्ट पढ़ के ये साफ़ समझ आ जाता है कि ये AC की हवा में बैठ के बनाई हैं। ये रिपोर्ट बनाने वाले वही लोग हैं जो गांव का दौरा करने भी जाते हैं तो इनके लिए गांव में रेड कारपेट बिछवाया जाता है, कलेक्टर SP इनकी आवभगत के लिए खड़े रहते हैं, पूर्व निर्धारित लोगों से ये बात करते हैं।
इनके दिमाग में भारत के आम आदमी की इमेज एक गरीब, मंदबुद्धि, आलसी, अनपढ़ और छोटी सोच वाली है। इनका ज्यादातर समय 'बड़े' लोगों के साथ ही बीतता है। बड़े लोग मतलब नेता, मंत्री और उद्योगपति। इनको भारत की पब्लिक से कहीं ज्यादा चिंता अपने आकाओं की रहती है।
आज अगर भारत बिक रहा है तो इसमें इन नौकरशाहों का भी बहुत बड़ा हाथ है। सरकार को ये समझना चाहिए निजीकरण भारत के लिए तो घातक है ही मगर उससे पहले सरकार के लिए घातक है। अँधा निजीकरण करने के बाद सरकार के खिलाफ 2024 जो रोष उत्पन्न होगा उसका सामना करने कि ताकत सरकार में नहीं है।
और जिन नौकरशाहों ने सरकार को ये महान सलाहें दी हैं, वे सरकार का बेडा गर्क होने के बाद डूबते जहाज को छोड़कर किसी कंपनी में घुस जाएंगे और मोटी तनख्वाह पाएंगे।
उस समय तक देश में केवल एक ही चैनल आता था, दूरदर्शन। दूरदर्शन पर सबके लिए कुछ न कुछ आता था, किसानों से लेकर घरेलु महिलाओं और छात्रों से लेकर व्यवसाइयों लोगों तक। नीम का पेड़ और रामायण महाभारत जैसे सीरियल दूरदर्शन पर ही आये।
दिन में दो बार समाचार भी आते थे। वीकेंड पर फिल्म भी आती थी। अगर बाकी सरकारी चैनलों कि बात करें तो अच्छी अर्थपूर्ण चर्चा के लिए राज्यसभा टीवी ने अपना अलग स्थान बना लिया है (अब सरकार ने राज्यसभा टीवी को बंद करके केवल संसद टीवी शुरू किया है)। #StopSellingIndia
दूरदर्शन हर भाषा के लिए अलग क्षेत्रीय चैनल भी चलाता है। मगर कई लोगों का कहना था कि दूरदर्शन बहुत बोरिंग चैनल है। इस पर तड़क-भड़क नहीं है, ग्लैमर नहीं है। फिर आये निजी चैनल। सब के लिए स्पेशल चैनल। #StopSellingIndia
एक बार की बात है। भयंकर सूखा पड़ा। मानसरोवर झील पूरी तरह सूख गई। वहां रहने वाले हंसों के लिए जीवन का संकट खड़ा हो गया। हंसों ने निश्चय किया कि दक्षिण की तरफ जाएंगे। हंस अपने बच्चों को लेकर अस्थायी आवास की खोज में दक्षिण की तरफ बढ़ चले।
लेकिन हंसों के बच्चे छोटे थे, तो ज्यादा नहीं उड़ पाए और थक गए। रास्ते में एक राज्य पड़ता था। हंसों के निर्णय लिया कि बच्चों को वहीं छोड़ दिया जाए। हंस उस राज्य के राजा के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। कहा कि, आप कुछ दिन हमारे बच्चों की देखभाल कीजिये।
जब वर्षा होगी तो मानसरोवर झील दोबारा भर जाएगी तब हम अपने बच्चों को ले जाएंगे।राजा मान गया। आश्वासन पाकर हंस अपने बच्चों को वहीं छोड़कर उड़ गए। राजा ने हंसों के बच्चों की जिम्मेदारी माली को देदी। राजा के साथ दो समस्याएं थीं। एक तो राजा को कोढ़ की बीमारी थी जिससे वो बाद परेशान था।
अंग्रेजों के आने से पहले भारत एक कृषि संपन्न देश था। अंग्रेजों ने अठारवीं और उन्नीसवीं सदी में जमीन पर टैक्स बहुत बढ़ा दिए थे। साथ ही टैक्स वसूलने के लिए सूर्यास्त पद्धति लागू कर दी थी।
इस पद्धति में ये नियम था कि अगर सूर्यास्त होने तक टैक्स नहीं चुकाया तो जमीन पर कानूनी रूप से अंग्रेजों का कब्ज़ा हो जाता था। अब अंग्रेज तो खेती करने से रहे, उनको मतलब था केवल अपने टैक्स से। तो अंग्रेज जमीन की बोली लगाते थे, और जमीन के लिए भूखे बैठे जमींदार जमीन खरीद लेते थे।
अब समस्या ये कि खेती तो जमींदार भी नहीं करते थे और न ही वे गांव में रहते थे। लेकिन अगर टैक्स देना है तो जमीन पर खेती तो करवानी पड़ेगी। तो वे जमीन को गांव में रहने वाले छोटे जमींदार को ठेके पे दे देते थे। लेकिन समस्या फिर वही। खेती तो छोटे जमींदार भी नहीं करते।
एक बार हमारे मित्र मंडल में जबरदस्त बहस छिड़ी। मुद्दा था महिलाओं की आर्मी के combat roles में भर्ती। वैसे तो इस विषय पर बहुत लंबा डिस्कशन किया गया था मगर यहां मैं केवल एक ही मुद्दा उठाऊंगा जिसके बारे में तत्कालीन रक्षा मंत्री स्वर्गीय श्री मनोहर पर्रिकर जी ने भी बयान दिया था।
अक्सर कहा जाता है कि महिलाओं को सेना में अग्रिम पंक्ति में खड़ा इसलिए नहीं करना चाहिए, क्योंकि महिलाएं देश की 'इज्जत' होती हैं। इस स्थिति में सबसे बड़ा खतरा ये होता कि अगर महिला सैनिक को दुश्मन देश पकड़ लेता है तो क्या होगा? क्योंकि महिलाओं के साथ तो बहुत कुछ गलत किया जा सकता है।
एक तरीके से देखा जाए तो ये तर्क सही भी लगता है। मगर फिर दूसरा सवाल ये खड़ा होता है कि इज्जत का ठेका महिलाओं का ही क्यों है? किसने बनाया उनको देश की इज़्ज़त का प्रतीक? और इतिहास में कितनी बार सिर्फ इसी इज़्ज़त के चलते महिलाओं का शोषण हुआ है।
मेरी जिंदगी के करीब 11 साल कॉम्पीटीशन के तैयारी में निकले हैं। ग्यारह अनमोल साल। जिनमें से IIT में दो साल लगे, दो साल इधर-उधर प्राइवेट जॉब के लिए, दो साल GRE में, पांच साल UPSC में और एक साल PCS में लगा।
हम मित्र लोग कभी कभी इस बात पर डिस्कशन करते थे कि दुनिया की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण परीक्षा कौनसी है (जस्ट फॉर टाइमपास)। नेट पे सर्च करने पर अक्सर चीन की यूनिवर्सिटी एग्जाम को दुनिया की सबसे मुश्किल और महत्वपूर्ण परीक्षा बताया जाता है।
वो भी IIT और AIIMS टाइप ही ग्रेजुएशन कोर्स में एडमिशन लेने के लिए दी जाती है। जब धीरे धीरे समझ बढ़ी तो समझ आया कि इंजीनियरिंग, मेडिकल वगैरह की एग्जाम महत्वपूर्ण तो हैं मगर उतनी नहीं। ये परीक्षाएं आपको डिग्री देती हैं, मगर परीक्षा वही सबसे महत्वपूर्ण मानी जा सकती है जो रोटी दे।
एक बार गांव में सूखा पड़ा। तो लोग गए सरकार के पास, कि "भाई तुम्हारे पास तो हर मर्ज़ की दवा है।"
सरकार बोली, "आओ कुआँ खोदते हैं।"
लेकिन किधर है पानी? पानी किधर है? ये रहा पानी राम के घर।
सरकार ने कहा "नहीं, तुम लोग Inefficient और Lethargic हो। तुम कुआँ खोदोगे तो पानी गांव वाले प्यासे मर जाएंगे। और फिर हो सकता है तुम कुआँ कूदने के बाद पानी भी बर्बाद करो। तुमको नहीं पता कि जमीन में पानी कम होता जा रहा है?"