थ्रेड: #हमारे_नीति_निर्धारक

पिछले कुछ सालों से एक चीज बहुत स्पष्ट रूप से देखने में आ रही है और वो ये की सरकार के सलाहकार मंडल में केवल एक विशेष मानसिकता वाले लोगों की ही भर्ती हो रही है। शुरू से शुरू करते हैं :
V K Saraswat : नीति आयोग में वैज्ञानिक सलाहकार हैं। वैसे तो ये पद्म भूषन और पद्म श्री जैसे पुरस्कारों से नवाज़े गए हैं मगर साधारण विकिपीडिया सर्च इनके कच्चे चिट्ठे खोलने के लिए काफी है।

en.wikipedia.org/wiki/V._K._Sar…
पहले ये DRDO में महानिदेशक रहे। इनके DRDO के कार्यकाल के किस्से यहां पढ़ने को मिलेंगे। नीति आयोग में इनके नाम कोई बड़ा कारनामा नहीं है।

newindianexpress.com/magazine/2012/…
हाल ही में इन्होनें बताया था कि कैसे इंटरनेट बंद करने से जम्मू कश्मीर की अर्थव्यस्था पर कोई असर नहीं पड़ा क्यूंकि साहब के मुताबिक इंटरनेट केवल "गन्दी फिल्में" देखने के काम आता है।

theprint.in/india/vk-saras…
अरविन्द पनघरिया : ये वर्तमान में कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं और भारत में पद्म भूषण धारक हैं। नीति आयोग की उत्पत्ति के साथ ही उसमें वाईस चेयरमैन (कैबिनेट मिनिस्टर के समकक्ष) बनाये गए थे।
en.wikipedia.org/wiki/Arvind_Pa…
इनकी सोच बहुत एकतरफा है। ये पूरी तरीके से सरकारी उपक्रमों के खिलाफ रहे हैं और निजीकरण के बहुत बड़े समर्थक रहे हैं। नीति आयोग का बनाया जाना और पनघरिया साहब का उसमें टॉप पोजीशन दिया जाना नीति आयोग की कार्य शैली का साफ़ सूचक कहा जा सकता है।

economictimes.indiatimes.com/arvind-panagar…
ये शिक्षा के निजीकरण के घोर समर्थक हैं। इनका ये भी मानना है कि भारत में कोरोना प्रबंधन में नौकरशाही बहुत सफल रही है।

business-standard.com/article/econom…
बीच में इनके RBI गवर्नर बनने कि भी बात चली थी। पिछले दिनों इनके कार्य शैली को लेकर सवाल उठे थे जिसके बाद इन्होनें नीति आयोग से इस्तीफ़ा दे दिया।

indiatoday.in/magazine/from-…
अरविन्द सुब्रमनियन: ये सरकार 2014 से 2018 तक सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे हैं। ये अमरीकी अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े पक्षधर हैं। पेट्रोल डीजल और रसोई गैस सब्सिडी ख़तम करने में,

livemint.com/Specials/d4pZ9…
PF, PPF में घटी हुई ब्याज दरों में इनका हाथ माना जाता है।
thehindubusinessline.com/economy/econom…
सरकार में रह कर ये कुछ ज्यादा नहीं कर पाए। सालाना आर्थिक समीक्षा में इन्होनें ट्विन बैलेंस शीट प्रॉब्लम पर काफी चर्चा की है मगर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा।

scroll.in/article/855359…
ये IBC में सुधार चाहते थे मगर शायद कॉर्पोरेट लॉबी को ये पसंद नहीं आया। बाद में इन्होनें NBFC में फैले रायते के बारे में भी लिखा। ये बैड बैंक के समर्थक भी रहे हैं।
economictimes.indiatimes.com/news/et-explai…
एक आदर्श नौकरशाह की तरह नौकरी में रहकर इन्होने कभी सरकार की आलोचना नहीं की मगर नौकरी छोड़ते ही किताब लिखकर अपनी सारी भड़ास निकाल दी। नोटबंदी को इन्होनें बहुत बड़ी गलती बताया।

newslaundry.com/2018/12/03/arv…
अमिताभ कांत: ये 1980 बैच के IAS हैं। बहुत मीडिया सेवी पर्सन हैं और हेडलाइंस में दिखना पसंद करते हैं। इनकी कार्य कुशलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, इनक्रेडिबल इंडिया, DMIC जैसी स्कीम्स के कर्ताधर्ता रहे हैं।
en.wikipedia.org/wiki/Amitabh_K…
ये निजीकरण विशेषकर रेलवे और बैंकों के निजीकरण के बहुत बड़े समर्थक हैं। रेलवे की फ्लॉप प्राइवेट ट्रेनों के पीछे इनका ही दिमाग बताया जाता है। आजकल सरकार कि निजीकरण कि डोर इन्होनें ही संभाली हुई है।

hindustantimes.com/india-news/rai…
इनके विचार बहुत क्रन्तिकारी होते हैं, इतने क्रन्तिकारी कि जमीनी हकीकत से कोसों दूर। 2018 में इन्होनें कहा था कि तीन साल के भीतर बैंकों की फिजिकल ब्रांचेज ख़त्म हो जाएंगी।

m.economictimes.com/industry/banki…
पिछले दिनों इन्होनें अपने "Too much Democracy" वाले वक्तव्य के लिए काफी सुर्खियां बंटोरी। इनके कॉर्पोरेट से कनेक्शंस से अंदाजा इसी चीज से लगाया जा सकता है कि ये अक्सर बड़ी कंपनियों के कार्यक्रमों में शिरकत करते ही मिलते हैं।

indianexpress.com/article/india/…
कृष्णमूर्ति सुब्रमनियन: अरविन्द सुब्रमनियन साहब के बाद इन्होनें भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार की जिम्मेदारी संभाली है। इनकी मुख्य काबिलियत ये है की इन्होनें नोटबंदी का जबरदस्त समर्थन किया है और शायद इसीलिए ये आज इस कुर्सी पर विराजमान हैं।

timesofindia.indiatimes.com/blogs/et-comme…
ये भारतीय अर्थव्यस्था और विशेषकर बैंकिंग सिस्टम को माइक्रो-मैनेज करने में विश्वास रखते हैं। कोरोना लोन, स्वनिधि लोन योजना इनके दिमाग कि उपज बताई जाती है। साल के 6000 रूपये बाँट कर किसानों कि आमदनी दुगुनी करने वाली स्कीम भी यहीं से आयी बताई जाती है।

businessworld.in/article/Jobs-H…
आजकल RBI और सरकार में ब्याजदर बढ़ने को लेकर चल रही खींचा-तानी के पीछे भी यही बताये जाते हैं। जहां RBI महंगाई पर लगाम लगाने के लिए ब्याज दर कम करना चाहता है वहीँ सुब्रमनियन साहब चाहते हैं कि अगर बैंक इनके कहे मुताबिक लोन दें तो महंगाई नहीं बढ़ेगी।

tribuneindia.com/news/business/…
इसलिए RBI को ब्याजदर नहीं बढ़ानी चाहिए। इनका मानना है कि भारत के पूंजीपति बहुत ईमानदार हैं और केवल वही भारत का विकास कर सकते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, सरकार की बैंक डिफॉलटर्स के प्रति नरम रवैये के पीछे इनका हाथ है।

moneycontrol.com/news/business/…
ये समय के हिसाब से बयान देने में एक्सपर्ट हैं। एक साल पहले ये कह रहे थे कि निजीकरण सभी समस्याओं का समाधान नहीं है, लेकिन आज ये सरकारी कंपनियों के पीछे हाथ धो कर पड़े हैं। इनका ये भी मानना है कि देश में बेरोजगारी नाम की कोई समस्या नहीं है।
शक्तिकांत दास: ये IAS में अमिताभ कांत साहब के ही बैचमेट रहे हैं। ये वित्त सचिव रहे हैं। नोटबंदी की स्कीम इनकी देखरेख में ही लागू की गयी थी। जब उर्जित पटेल ने अचानक ही इस्तीफ़ा दे दिया था तब RBI के गवर्नर की सीट पर इन्हें बिठाया गया था।

en.wikipedia.org/wiki/Shaktikan…
सरकारी और कॉर्पोरेट हाउस वालों से इनके लिए चीयरलीडिंग भी करवाई गयी थी। मगर नोबेल पुरस्कार विजेता श्री अभिषेक बनर्जी ने ये कहते हुए इस चीयरलीडिंग की हवा निकाल दी कि दास की नियुक्ति RBI और बाकि नियामक संस्थाओं की स्वतंत्रता के लिए घातक है।

financialexpress.com/economy/mit-ec…
सुब्रमण्यम स्वामी ने भी दास के बारे में कहा की दास बहुत भ्रष्ट व्यक्ति हैं और पहले भी भ्रष्टाचार के कारण वित्त मंत्रालय से निकाले जा चुके हैं।

scroll.in/latest/906736/…
बताया जाता है कि इनको RBI गवर्नर इसलिए बनाया गया था ताकि सरकार RBI के कैपिटल रिजर्व में से 1.76 लाख करोड़ रूपये केंद्र सरकार को दिए जा सकें (जिसके लिए उर्जित पटेल तैयार नहीं थे)।

indiatoday.in/business/story…
करीब दो साल तक दास साहब ने केंद्र सरकार के हर आदेश को सर आँखों पर लिया। लेकिन इनके कार्यकाल में इन्वेस्टर्स और बैंकों खाताधारकों को बुरे दिन देखने को मिले। जब दास साहब ने कुर्सी संभाली थी तब IL&FS वाला मुद्दा गर्म ही था।

moneycontrol.com/news/business/…
उसके अगले ही साल DHFL, वाला कांड हुआ, फिर PMC बैंक डूबा, YES बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक भी डूबने ने कगार पर आ गए। दास साहब के कार्यकाल में ही यस बैंक ने AT1 बांड्स के ज़रिये और LVB ने टियर 2 बांड्स के ज़रिये इन्वेस्टर्स का पैसा हजम किया
और PMC बैंक तो खाताधारकों की जमा पूँजी ही खा गया। पिछले कुछ समय से दास साहब की सरकार के साथ अनबन की ख़बरें आ रही हैं।
इस में बात चाहे सरकारी बैंकों को कॉर्पोरेट के हवाले करने की रही हो, इंटरेस्ट रेट की हो या फिर बांड्स के ज़रिये सरकार के लिए पैसा उठाने की हो, सरकार दास साहब दबे शब्दों में अपना विरोध दर्ज कराते आये हैं।

timesofindia.indiatimes.com/business/india…
भारतीय अर्थव्यस्था के बारे में दास की राय अगले कुछ सालों तक बहुत सकारात्मक नहीं है। उनका मानना है कि भारत का स्टॉक मार्किट बहुत ओवरवैल्यूड है और इसमें सुधार की बहुत गुंजाइश है।

timesofindia.indiatimes.com/business/india…
साथ उनका ये भी कहना है कि कोरोना की मेहरबानी से अगले एक-दो सालों तक बैंकों का NPA बढ़कर 15% होने की सम्भावना है।

news18.com/news/business/…
डॉ. राजीव कुमार:
अरविन्द पनघरिया के इस्तीफ़ा देने के बाद राजीव कुमार ने नीति आयोग की कमान संभाली। इससे पहले ये नरसिम्हाराव सरकार के समय में वित्त मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं। साथ ही ये FICCI के महासचिव और CII के मुख्य अर्थशास्त्री रहे हैं।

en.wikipedia.org/wiki/Rajiv_Kum…
इसके अलावा ये 10 साल तक एशियाई डेवलपमेंट बैंक के प्रधान अर्थशास्त्री भी रहे हैं। नीति आयोग में ये एक विशेष मक़सद से लाये गए हैं। दरअसल 2018 तक प्रधानमंत्री जी पूरी तरह से निजीकरण के समर्थक हो चुके थे। बस जरूरत थी तो ऐसे लोगों की जो इस काम जो अंजाम दे सकें।
thehindubusinessline.com/news/looking-f…
राजीव कुमार इसी काम के लिए 2018 में नीति आयोग के वाईस चेयरमैन बनाये गए थे। इनका मानना है कि पब्लिक सेक्टर कि अब देश में जरूरत नहीं है। ये न्यूक्लिर ऊर्जा जैसे स्ट्रेटेजिक क्षेत्रों में भी निजी क्षेत्र की भूमिका के पक्षधर हैं।
thefederal.com/news/niti-aayo…
इनकी बातों से ये झलकता है कि नीति आयोग मूलतः निजीकरण के लिए ही बनाया गया है। ये ट्रिकल डाउन थ्योरी के घनघोर पक्षधर हैं। भारत की दूसरी पंचवर्षीय योजना का नेहरू-महलानोबिस प्लान भी इसी थ्योरी पर आधारित था।

thehindu.com/opinion/letter…
इस थ्योरी के अनुसार, सरकार को हर वर्ग के लिए अलग से आर्थिक विकास की योजना बनाने की जरूरत नहीं बल्कि सरकार का मुख्य काम देश में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना है। औद्योगिक विकास से जो आर्थिक गतिविधि होगी, उसका फायदा अपने आप निचले वर्गों को मिलता रहेगा।

investopedia.com/terms/t/trickl…
नेहरू के समय में ये औद्योगिक विकास सरकारी संस्थानों के जरिये किया गया था, वहीँ राजीव कुमार जी का मानना है कि अब ये काम प्राइवेट सेक्टर के हवाले कर देना चाहिए। गौरतलब है कि 1967 में पनपी नक्सलवाद के समस्या के पीछे नेहरू महलानोबिस प्लान को भी जिम्मेदार बताया जाता है,
क्यूंकि उस औद्योगिक विकास का फायदा सिर्फ पूंजीपतियों को मिला वहीँ गरीब और आदिवासी तबके से विकास के नाम पर बांधों और फैक्ट्रियों के लिए उनकी जमीनें भी छीन ले गयी थी।

openthemagazine.com/voices/the-rea…
बैंक निजीकरण के मामले में इनके बयान से पता लगता है कि इस समय सरकार की नीति लोगों में कन्फ्यूजन बनाये रखने की है। आजकल ये इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल्स के क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं।

thehindubusinessline.com/economy/auto-i…
ये सरकार के FAME II कार्यक्रम के ज़रिये 2030 देश के सभी वाहनों को इलेक्ट्रिक बनाना चाहते हैं (अमेरिका ने इसके लिए समय सीमा 2035 रखी है)। कुछ विशेषज्ञों का कहना है इलेक्टिक व्हीकल की नीति पर सरकार को दोबारा सोचने के जरूरत है

business-standard.com/article/news-i…
क्यूंकि आज भी बैटरी और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के लिए आवश्यक Rare Earth Elements की 97% सप्लाई चीन से होती है और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को बिना सोचे समझे लागू करना भारत को ऑटोमोबाइल क्षेत्र में भी चीन पर निर्भर बना सकता है।

thefederal.com/opinion/in-the…
सरकार के बाकी आर्थिक सलाहकारों की तरह इनका भी ये मानना है की देश में बेरोजगारी जैसी कोई समस्या नहीं है और रोजगार के मामले में हम प्री-कोरोना लेवल पर आ चुके हैं।

businessworld.in/article/Rural-…
ये मिडिल क्लास को किसी भी तरह की सरकारी मदद के खिलाफ हैं और मानते हैं कि मिडिल क्लास को किसी भी तरह की राहत से सरकार पर व्यय का जबरदस्त बोझ पड़ेगा।

indianexpress.com/article/india/…

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14 Mar
मुंबई एक ज़माने में सात द्वीपों का समूह हुआ करता था जो कि आधिकारिक रूप से सुल्तान बहादुर शाह के पास था। उधर हुमायूँ की बढ़ती शक्ति को देख कर सुल्तान ने पुर्तगालियों की मदद लेने की योजना बनाई।

#StrikeToSaveIndia
सन 1534 में बसाइन की संधि के तहत सुल्तान ने मुंबई को पूरी तरह से पुर्तगालियों के हवाले कर दिया। बाद में अंग्रेजों ने मुंबई के आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक महत्व को समझा और एक वैवाहिक संधि के तहत पुर्तगालियों से मुंबई को दहेज़ में मांग लिया।

#StrikeToSaveIndia
अंग्रेजी राजा ने मात्र दस पौंड प्रति वर्ष में मुंबई ईस्ट इंडिया कंपनी को लीज पर दे दी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई के सातों द्वीपों को मिला कर आधुनिक रूप दिया। आज मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है। बेवकूफ आदमी के लिए हीरे और कांच के टुकड़े में कोई फर्क नहीं होता।

#StrikeToSaveIndia
Read 7 tweets
14 Mar
पहले अलास्का रूस का भाग हुआ करता था। रूस के राजा अलेक्सेंडर द्वितीय को लगा कि अलास्का एक वीरान क्षेत्र है जहां बर्फ और बर्फीले जानवरों के अलावा कुछ नहीं मिलता। रूस के राजा को अलास्का की सुरक्षा भी महंगा काम लगता था।

#StrikeToSaveIndia
अलास्का को बेकार की जमीन मान कर 1867 में रूस ने अलास्का मात्र 7.2 मिलियन डॉलर्स में अमेरिका को बेच दिया जो आज के हिसाब से 895 करोड़ रूपये बैठता है। जहां रूस ने अलास्का को बेकार मान कर अमेरिका को बेचा था वहीँ उसे खरीद कर अमेरिका की लॉटरी ही लग गयी।

#StrikeToSaveIndia
1896 में अलास्का में भारी मात्रा में सोना मिला। बाद में अलास्का में पेट्रोलियम और गैस भी भरपूर मात्रा में मिले। विशेषज्ञों के अनुसार अलास्का की धरती में आज भी लगभग 15 लाख करोड़ रूपये का तेल और गैस मौजूद है। रूस आज भी अपनी इस गलती पर पछताता है।

#StrikeToSaveIndia
Read 5 tweets
13 Mar
उस समय तक देश में केवल एक ही चैनल आता था, दूरदर्शन। दूरदर्शन पर सबके लिए कुछ न कुछ आता था, किसानों से लेकर घरेलु महिलाओं और छात्रों से लेकर व्यवसाइयों लोगों तक। नीम का पेड़ और रामायण महाभारत जैसे सीरियल दूरदर्शन पर ही आये।

#StopSellingIndia
दिन में दो बार समाचार भी आते थे। वीकेंड पर फिल्म भी आती थी। अगर बाकी सरकारी चैनलों कि बात करें तो अच्छी अर्थपूर्ण चर्चा के लिए राज्यसभा टीवी ने अपना अलग स्थान बना लिया है (अब सरकार ने राज्यसभा टीवी को बंद करके केवल संसद टीवी शुरू किया है)।
#StopSellingIndia
दूरदर्शन हर भाषा के लिए अलग क्षेत्रीय चैनल भी चलाता है। मगर कई लोगों का कहना था कि दूरदर्शन बहुत बोरिंग चैनल है। इस पर तड़क-भड़क नहीं है, ग्लैमर नहीं है। फिर आये निजी चैनल। सब के लिए स्पेशल चैनल।
#StopSellingIndia
Read 7 tweets
13 Mar
नेताओं से भी ज्यादा खतरनाक हैं ये बिना रीढ़ के नौकरशाह। नेता तो आएंगे और चले जाएंगे। नेताओं को तो जनता हर पांच साल बाद परख लेती है। नौकरशाहों की एक एग्जाम पास कर लेने के बाद कोई परख नहीं होती।

#StopSellingIndia

businesstoday.in/current/econom… via @BT_India
ये नौकरशाह ही हैं जो सरकारी फरमानों को पूरा करने के लिए बैंक बंद करवाते फिरते हैं, शाखा प्रबंधकों पर FIR करवाते फिरते हैं, बैंकों के बाहर शहरभर का कचरा डलवा कर अपने मानसिक दिवालियेपन का साक्षात् प्रदर्शन करते हैं।
योजना आयोग में भी तो नौकरशाह ही भरे थे, जो एक ढंग की योजना नहीं बना पाते थे (MGNREGA में योजना आयोग का हाथ नहीं था। अब योजना आयोग की जगह नीति आयोग आ गया है। यहां भी नौकरशाह ही भरे हैं।

#StopSellingIndia
#StopSellingIndia
#StopPrivatization
Read 8 tweets
11 Mar
कहानी थ्रेड : #शापित_राजा

एक बार की बात है। भयंकर सूखा पड़ा। मानसरोवर झील पूरी तरह सूख गई। वहां रहने वाले हंसों के लिए जीवन का संकट खड़ा हो गया। हंसों ने निश्चय किया कि दक्षिण की तरफ जाएंगे। हंस अपने बच्चों को लेकर अस्थायी आवास की खोज में दक्षिण की तरफ बढ़ चले।
लेकिन हंसों के बच्चे छोटे थे, तो ज्यादा नहीं उड़ पाए और थक गए। रास्ते में एक राज्य पड़ता था। हंसों के निर्णय लिया कि बच्चों को वहीं छोड़ दिया जाए। हंस उस राज्य के राजा के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। कहा कि, आप कुछ दिन हमारे बच्चों की देखभाल कीजिये।
जब वर्षा होगी तो मानसरोवर झील दोबारा भर जाएगी तब हम अपने बच्चों को ले जाएंगे।राजा मान गया। आश्वासन पाकर हंस अपने बच्चों को वहीं छोड़कर उड़ गए। राजा ने हंसों के बच्चों की जिम्मेदारी माली को देदी। राजा के साथ दो समस्याएं थीं। एक तो राजा को कोढ़ की बीमारी थी जिससे वो बाद परेशान था।
Read 11 tweets
9 Mar
थ्रेड: #BankBachao_DeshBachao

अंग्रेजों के आने से पहले भारत एक कृषि संपन्न देश था। अंग्रेजों ने अठारवीं और उन्नीसवीं सदी में जमीन पर टैक्स बहुत बढ़ा दिए थे। साथ ही टैक्स वसूलने के लिए सूर्यास्त पद्धति लागू कर दी थी।
इस पद्धति में ये नियम था कि अगर सूर्यास्त होने तक टैक्स नहीं चुकाया तो जमीन पर कानूनी रूप से अंग्रेजों का कब्ज़ा हो जाता था। अब अंग्रेज तो खेती करने से रहे, उनको मतलब था केवल अपने टैक्स से। तो अंग्रेज जमीन की बोली लगाते थे, और जमीन के लिए भूखे बैठे जमींदार जमीन खरीद लेते थे।
अब समस्या ये कि खेती तो जमींदार भी नहीं करते थे और न ही वे गांव में रहते थे। लेकिन अगर टैक्स देना है तो जमीन पर खेती तो करवानी पड़ेगी। तो वे जमीन को गांव में रहने वाले छोटे जमींदार को ठेके पे दे देते थे। लेकिन समस्या फिर वही। खेती तो छोटे जमींदार भी नहीं करते।
Read 12 tweets

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